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जब राहुल गांधी ने मां की पेशानी चूमी

फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता श्रीमती सोनिया गांधी ने बीते शनिवार को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय में आयोजित एक समारोह में राहुल गांधी को पार्टी के अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी सौंपी। इस मौक़े पर राहुल गांधी ने अपनी मां की पेशानी (माथे) को चूमकर अपने जज़्बात का इज़हार किया।
 
हमेशा मौक़े की ताक में बैठे रहने वाले 'राष्ट्रवादी' लोगों ने इस बात पर ही बवाल खड़ा कर दिया। उनका कहना था कि राहुल गांधी ने अपनी मां की पेशानी चूमकर विदेशी होने का सबूत दिया है। उन्हें सोनिया गांधी के पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए था। ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी पहली बार ट्रोल हुए हैं। एक गिरोह उन्हें और उनकी मां को हमेशा विदेशी साबित करने पर आमादा रहता है। 
 
दरअसल, सियासत का कोई मज़हब नहीं होता। सियासत का सिर्फ़ मक़सद होता है और वह है सत्ता हासिल करना। येन-केन-प्रकारेण यानी किसी भी तरह सत्ता हासिल करना। साम, दाम, दंड, भेद तो सियासत के हथियार रहे ही हैं। कहने को भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन यहां की सियासत धर्म की बैसाखियों के सहारे ही आगे बढ़ती है। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे है। ये एक ऐसी पार्टी है, जो धार्मिक मुद्दों को आधार बनाकर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ती है, वह मुद्दा राम मंदिर का हो या फिर सांप्रदायिकता को हवा देने का कोई और मामला।
 
भारतीय जनता पार्टी सत्ता के लिए न सिर्फ़ धर्म की राजनीति करती है, बल्कि अगड़े-पिछड़े तबक़े के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने में ज़रा भी गुरेज़ नहीं करती। इसके बनिस्बत कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, मार्क्सवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और इसी तरह के अन्य दलों ने हमेशा जनता की आवाज़ उठाई है, उनके हक़ की बात की है। 
 
चुनाव के दौरान हर बार की तरह इस मर्तबा भी भारतीय जनता पार्टी ने धर्म को मुद्दा बनाकर देश में एक और विवाद पैदा कर दिया था। सर्व घोषित राष्ट्रवादी पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी का मानना है कि मंदिर वही लोग जा सकते हैं जिनके पुरखों ने मंदिर बनवाया हो। पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी चुनावी मुहिम के दौरान गुजरात के कई मंदिरों में पूजा-अर्चना की थी। इसी कड़ी में वे सोमनाथ के मंदिर भी गए और वहां भी पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद लिया। 
 
इस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तंज़ किया, 'आपके परनाना ने नहीं बनवाया सोमनाथ मंदिर।' यानी जिनके पुरखों ने मंदिर बनवाए हैं, वही मंदिर जा सकते हैं। इतना ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी का यह भी कहना है कि राहुल गांधी ने सोमनाथ मंदिर की उस विज़िटर्स बुक में अपना नाम लिखा है, जो ग़ैरहिन्दुओं के लिए रखी गई है। इसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने भी दस्तख़्त किए हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इसकी प्रतियां जारी करते हुए राहुल गांधी के 'हिन्दू' होने पर सवाल उठाए हैं। 
 
विवाद गहराता देख कांग्रेस को प्रेस कांफ़्रेंस कर सफ़ाई पेश करनी पड़ी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि राहुल गांधी न सिर्फ़ 'हिन्दू' हैं, बल्कि 'जनेऊधारी' भी हैं। अपने बयान के पक्ष में कांग्रेस ने तीन तस्वीरें जारी की हैं। एक तस्वीर में राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी के अंतिम संस्कार के दौरान अस्थियां इकट्ठा कर रहे हैं, दूसरी तस्वीर में वे जनेऊ पहने नजर आ रहे हैं, जबकि तीसरी तस्वीर में वे अपनी बहन प्रियंका के साथ खड़े हैं।
 
इतना ही नहीं, कांग्रेस सोनिया गांधी, राजीव गांधी, इंदिरा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की वे तस्वीरें सोशल मीडिया पर प्रसारित कर रही हैं जिनमें उन्हें हिन्दू कर्मकांड करते हुए दिखाया गया है। रणदीप सुरजेवाला ने भाजपा पर घटिया स्तर की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि न तो यह हस्ताक्षर राहुल गांधी का है और न ही यह वह रजिस्टर है, जो एंट्री के वक़्त राहुल गांधी को दिया गया था। 
 
ख़ुद के 'ग़ैर हिन्दू' होने पर राहुल गांधी का कहना है, 'मैं मंदिर के भीतर गया। तब मैंने विज़िटर्स बुक पर हस्ताक्षर किए। उसके बाद भाजपा के लोगों ने दूसरी पुस्तिका में मेरा नाम लिख दिया।' उन्होंने कहा, 'मेरी दादी (दिवंगत इंदिरा गांधी) और मेरा परिवार शिवभक्त है। लेकिन हम इन चीज़ों को निजी रखते हैं। हम आमतौर पर इस बारे में बातचीत नहीं करते हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि यह बेहद व्यक्तिगत मामला है और हमें इस बारे में किसी के सर्टिफ़िकेट की आवश्यकता नहीं है।' उन्होंने यह भी कहा, 'हम इसका 'व्यापार' नहीं करना चाहते हैं। हम इसको लेकर दलाली नहीं करना चाहते हैं। हम इसका राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं।' 
 
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी का कहना है कि राहुल गांधी जन्म से ही ग़ैरहिन्दू हैं। उनका दावा है कि पढ़ाई के दौरान राहुल गांधी ने कई जगहों पर ख़ुद का कैथोलिक क्रिश्चियन के तौर पर अपना मज़हब दर्ज कराया है। सनद रहे, सुब्रमण्यम स्वामी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी कैथोलिक क्रिश्चियन बताते हैं। ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी के कथित 'ग़ैरहिन्दू' होने को लेकर पहली बार हंगामा बरपा है। इससे पहले भी उन पर ग़ैरहिन्दू होने के आरोप लगते रहे हैं। यहां तक कि उनकी मां सोनिया गांधी के मज़हब को लेकर भी ऐसी ही बातें फैलाई जाती रही हैं। उनके दादा फ़िरोज़ गांधी, परदादा जवाहरलाल नेहरू और उनके पिता के मज़हब को लेकर भी विरोधी सवाल उठाते रहे हैं।
 
राहुल गांधी किस मज़हब से ताल्लुक़ रखते हैं या वे किस मज़हब को मानते हैं, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। दरअसल, फ़र्क़ मज़हब से नहीं पड़ता, फ़र्क़ किसी के अच्छे या बुरे होने से पड़ता है। राहुल गांधी एक अच्छे इंसान हैं। वे ईमानदार हैं, मिलनसार हैं। वे लोगों के दर्द को महसूस करते हैं, उनके सुख-दु:ख में शरीक होते हैं। वे मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं, तो मज़ारों पर फूल और चादर भी चढ़ाते हैं। वे चर्च जाते हैं, तो गुरुद्वारों में माथा भी टेकते हैं। वे एक ऐसी पार्टी के नेता हैं, जो सर्वधर्म सद्भाव में विश्वास करती है। इसलिए अब राहुल गांधी को कह देना चाहिए कि वे सर्वधर्म में य़कीन रखते हैं, उनके लिए सभी मज़हब बराबर हैं ताकि मज़हब के झगड़े ही ख़त्म हो जाएं।
 
यह देश का दुर्भाग्य है कि यहां बुनियादी ज़रूरतों और विकास को मुद्दा नहीं बनाया जाता। इसके लिए सिर्फ़ सियासी दलों को दोष देना भी सही नहीं है, क्योंकि अवाम भी वही देखना और सुनना चाहती है, जो उसे दिखाया जाता है, सुनाया जाता है। जब तक स्कूल, अस्पताल, रोज़गार और बुनियादी ज़रूरत की सुविधाएं मुद्दा नहीं बनेंगी, तब तक सियासी दल मज़हब के नाम पर लोगों को बांटकर सत्ता हासिल करते रहेंगे, सत्ता का सुख भोगते रहेंगे और जनता यूं ही पिसती रहेगी। अब वक़्त आ गया है। 
 
जनमानस को धार्मिक मुद्दों को तिलांजलि देते हुए राजनेताओं से कह देना चाहिए कि उसे मंदिर-मस्जिद नहीं, खाना चाहिए, बिजली-पानी चाहिए, स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी चाहिए, अस्पताल चाहिए, रोज़गार चाहिए। अवाम को वे सब बुनियादी सुविधाएं चाहिए जिसकी उसे ज़रूरत है।
 
और जहां तक राहुल गांधी के अपनी मां की पेशानी चूमने का सवाल है, तो ये किसी भी इंसान का ज़ाती मामला है कि वे अपने जज़्बात का इज़हार किस तरह करता है। इस तरह की बातों को फ़िज़ूल में तूल देना किसी भी सूरत में सही नहीं है।

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