परहित सरिस धरम नहीं भाई,
परपीड़ा सम नहीं अधमाई।
रामचरित मानस की ये पंक्तियां चिंतन-मनन की औपचारिकताओं को छोड़ किसी प्रण का प्राण बन जाती हैं, तो हमारी संवेदनाएं हर बार अभूतपूर्व सुख का अनुभव करती हैं। जीवन के प्रति संवेदनहीनता का दु:ख भी इन्हीं पक्तियों में समाहित है।
अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त समाजशास्त्री, लेखक एवं सोशल एक्टिविस्ट डॉ. अंकुर पारे ठेठ बचपन की यादों को जतन से एकत्र करते हुए कहते हैं कि मेरे गांव दुलिया (हरदा) में रामायण पाठ के काफी आयोजन होते थे। मैं भी मेरे दादाजी चन्द्रगोपाल पारे की उंगली थामे इस धार्मिक आयोजन में पहुंचता और पूरे मनोयोग से रामायण की चौपाई, दोहे और सोरठों को सुना करता। न जाने कैसे उक्त पंक्तियां मेरे दिलोदिमाग में चस्पा हो गईं। बार-बार इन्हें गुनगुनाता और दादाजी से इसका अर्थ समझता-बुझता रहा। तब मुझे जरा इल्म नहीं था कि कालांतर में इन दो पक्तियों में छुपा एक वृहत दर्शन मेरे जीवन का लक्ष्य तय करेगा।
यूं जागा जज्बा :
बचपन में अंकुर की आंखों के सामने गाय का बछड़ा खौलते डामर में जा गिरा। अंकुर चीख पड़े और स्वयं की परवाह किए बगैर बछड़े को डामर के कटे ड्रम से बाहर खींच लाए। इस कवायद में उनका एक हाथ बुरी तरह झुलस गया। इस घटना को याद करते हुए डॉ. अंकुर पारे फरमाते हैं कि तब मेरी देह को निश्चित बहुत कष्ट हुआ, लेकिन मेरी अंतरात्मा एक अद्भुत सुख का अनुभव करती रहीं। इस सुखद अनुभव की भावभीनी गंध ने मेरी चेतना को नए सरोकार दिए।
मिशन :
डॉ. अंकुर पारे विस्थापितों के अधिकार एवं उत्थान के लिए कई वर्षों से मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, गुजरात, उत्तराखंड, झारखंड, महाराष्ट्र आदि राज्यों में कार्य कर रहे हैं और सामाजिक वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। डॉ. अंकुर पारे 19 राष्ट्रीय शोध परियोजनाओं पर काम कर चुके हैं। उनकी हाल में ही 'विस्थापित परिवारों का समाजशास्त्रीय अध्ययन' पुस्तक प्रकाशित हुई है।
डॉ. अंकुर पारे ग्रामीण विकास के लिए जागरूकता अभियान एवं शिविरों का आयोजन करते हैं। उन्नत कृषि, जैविक खाद्य आदि के लिए निशु:ल्क शिविर लगाते हैं। धारणीय विकास के लिए जल-संरक्षण, सोख्ता पीठ आदि के लिए कार्य करते हैं। महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम एवं युवाओं को स्वरोजगार प्रशिक्षण आदि के नि:शुल्क शिविरों का आयोजन करते हैं। वृद्धों की सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं के निवारण के लिए शिविरों का आयोजन करते हैं। सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल विवाह, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या आदि के लिए कार्य करते हैं।
सम्मान एवं पुरस्कार :
डॉ. अंकुर पारे को अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं। उन्हें भारत सरकार द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय सेवा योजना पुरस्कार एवं मप्र सरकार द्वारा मध्यप्रदेश राज्यस्तरीय राष्ट्रीय सेवा योजना पुरस्कार दिया जा चुका है। अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर उनके कई रिसर्च पेपर प्रकाशित हो चुके हैं और सेमिनार, वर्कशॉप और कॉन्फ्रेंस में वे भाग ले चुके हैं।
- विकास यादव
साभार- अवनि पब्लिक रिलेशन