Say No to Drugs : दम मारो दम, 'बढ़' जाए गम

स्मृति आदित्य
नशा, नाश करता है ये बात आज बॉलीवुड भी मान रहा है.. आप भी मान लीजिए। 'से नो टू ड्रग्स' का नारा लगाने वाली कन्याओं का ही अब तो कहना मान लीजिए आखिर क्यों कह रही थीं वे ... Say no to Drugs...देख लिए न नतीजे...?  
 
सवाल यह है कि यह लत, नशा, आदत आखिर क्यों और कैसे लगती है? हम सबको कहीं न कहीं किसी न किसी चीज का नशा होता है किसी को पढ़ने का, किसी को बागवानी का, किसी को पूजा का, किसी को पेंटिंग का लेकिन जहां तक ऐसे सात्विक नशे की बात है, यह जिंदगी में जरूरी है, यह नशा सृजन करता है, करवाता है, यह नशा फर्श से अर्श पर पंहुचा देता है, यह नशा फलक पर बैठा देता है किसी को खाक से उठाकर। वास्तव में यह नशा नशा नहीं, एक तरह की लगन होती है, एकाग्रता होती है....पर अति तो यहां भी वर्जित ही कही गई है। 

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फिर एक नशा होता है सफलता का, सत्ता का, पैसों का, वर्चस्व का, लोकप्रियता का, खूबसूरती का, प्यार का और उम्र का, एक खुमारी होती है, तब लगता है जो मेरे पास है बस वही सर्वश्रेष्ठ है, मैं ही सबसे बेहतर हूं... जब ये सब नया-नया होता आदमी या औरत के पैर जमीन पर नहीं होते... फिर धीरे-धीरे समझदारी आती है, या फिर कोई झटका लगता है दिल-दिमाग ठिकाने पर आ जाते हैं... 
 
अब बात करें उस नशे की जिसने ना जाने कितनी जिंदगियां लील ली है, जाने कितने परिवार इस नशे से तबाह हुए हैं। जाने कितने रिश्तों ने इस नशे की वजह से दम तोड़ा है,‍जाने कितनी देह खोखली की है जिसने ...। 
 
यह है बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, भांग, शराब, गांजा, चरस, अफीम, हेरोइन, ब्राऊन शुगर, स्मैक, हशिश,कोकीन हैश, वीड और ना जाने क्या-क्या... ये सब नशे बर्बादी की राह पर लेकर जाते हैं.... आप चाहे कितने ही मासूम और सच्चे हो लेकिन किसी भी तरह से आप प्रतिबंधित ड्रग्स या नशे का आदतन सेवन करते हैं तो यह न सिर्फ सरकार और देश की नजर में अपराध है बल्कि देश में होने वाले कई कई अपराधों की बजबजाती नालियां यहां से बहती हैं। 
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आंकड़े डरा देंगे आपको जब आप जानेंगे कि नशे की वजह से कितनी दुर्घटनाएं होती हैं, कितनी हत्या, आत्महत्या, चोरी, डकैती, तस्करी, जालसाजी, जिस्मफरोशी, लूटपाट और विभत्सताएं होती हैं। यहां तक कि नशे की गिरफ्त में आया इंसान अपने अंग तक बेचने को बाध्य हो जाता है मात्र चंद लम्हों के नशे के पैसे जुटाने के लिए.... 
 
नशे का दिल-दिमाग और शरीर पर असर हर जगह वही है, बस फर्क इतना है कि इन आलीशान महलों-बंगलों में रहने वाले लोगों का नशा मंहगा होता है, नशे की चपेट में आने के इनके कारण अलहदा होते हैं, इनके सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम अलग होते हैं। 
 
लेकिन अपराध की सारी राहें एक जगह जाकर एक सी हो जाती हैं। फिर कोई फर्क नहीं रह जाता है एक गरीब के नशे और अमीर के नशे में.... अतिरेक में जाकर दोनों ही गलियाते हैं, दोनों ही होशो-हवास खो बैठते हैं, एक नाली, गटर या सड़क पर पड़ा मिलता है दूसरा बॉडी गार्ड के सहारे चमचमाती कार में घसीटते हुए अट्टालिकाओं में पंहुचाया जाता है। नशे की हालत में इन्हें लगता है कि ये किसी और दुनिया में चले गए हैं लेकिन जब लौट कर आते हैं तब उल्टी ये भी करते हैं, वो भी करते हैं, सिर इनका भी भन्नाता है उनका भी ... किसी के लिए ये हैंगओवर है तो किसी के लिए रात का उतारा...       

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बात जब स्त्रियों की आती है तो फिर वही कि नशे की लती यहां 'वो' भी है जो महलों में रहती है और ये भी है जो झुग्गियों में बसती है। अपनी देह दोनों ही नहीं संभाल पाती है... दोनों ही अगर सुरक्षित नहीं हैं तो छल से धोखे से अपनी अ स्मिता गंवाती है, अगले दिन पछताती है फिर कसम खाती है फिर एक हुक उठती है उसी नशे की शरण में फिर पंहुच जाती है.... फिर फिर बर्बाद होने के लिए... यह नशा क्षणिक ऊर्जा देता है, पल भर का उत्साह देता है, खुशी के अतिरेक का भ्रम देता है और साथ में देता है उपहार कई तरह की मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, संवेगात्मक और भावनात्मक बीमारी व कमजोरी का... 
 
आप चाहे कितने गाने गा लीजिए नशे में कौन नहीं है मुझे बताओ जरा ....नशा शराब में होता तो नाचती बोतल, पहला नशा, पहला खुमार... लेकिन सच तो यह है कि 'दम मारो दम, मिट जाए गम' नहीं आज की तारीख में दम मारो दम, 'बढ़' जाए गम... सही बोल है...अगर समझ सकें तो समझ लीजिए...     

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