क्या आपका भी है चमकते चांद से दमकता रिश्ता

स्मृति आदित्य
स्मृति आदित्य

चांद, चन्द्रमा, शशि, सोम या मून, कहने को इतने नाम है और महसूस करें तो एक असीम शीतलता देता प्रकृति का चमकीला चमत्कार। कवियों की लेखनी का प्रेरणा स्त्रोत है चांद, वहीं प्रेमियों के विरह का कोमल सहारा भी। उसके हर रूप का विशिष्ट महत्व है। दूज का चांद, चौदहवीं का चांद, शरद-पूर्णिमा का चन्द्रमा, चतुर्थी का चन्द्र और ईद का चांद ! हर चन्द्रमा की अपनी एक अलग मोहक, मधुर कहानी है। चन्द्रमा शिक्षा देता है अपने रूपों के माध्यम से, प्रतीक्षा, धीरज और आस्था की।
 
चतुर्थी की तिथि को ही चन्द्र देरी क्यों करता है ? ईद का चांद ही हमारे सब्र का इम्तहान क्यों लेता है ? वास्तव में चन्द्रमा के इंतजार में अनूठी मिठास छुपी है। जब भूख से व्याकुल, करवा चौथ या किसी बड़ी चतुर्थी के चांद की प्रतीक्षा होती है तब कितनी आकुलता और बेसब्री होती है कदमों में! कैसे-कैसे विचार आते हैं!
 
'इतनी इमारतें खड़ी हो गई हैं आजू-बाजू . . . . कैसे दिखेगा अगर उदय हो भी गया। फिर लगता है लो बादलों को भी अभी ही आना था। शायद पेड़ के पीछे हो न . . . . न इस तरफ उजाला है . . . .।'
 
चारों तरफ गर्दन घुमाने के साथ-साथ दीपक, जल, दूध, फूल, कुंकुं, अबीर, प्रसाद सब थाल में सजते जाते हैं तभी आगे वाली इमारत पर दीप जल उठता है और बैचेनी चरम सीमा पर पहुंच जाती है, 'कितनी बार कहा है, एक मंजिल और उठा लो। ऐसे समय में ही तो परेशानी होती है।'
 
तभी बादलों का रूपहली चमकीली किनारों से सजा पर्दा आहिस्ता से हटाते हुए सौम्य सुरीला, चमकता चांद इस उतावलेपन पर मुस्करा ही उठता है। बस, अब जो किलकती, चिहुँकती बच्चों जैसी भोली पुलक हृदय में स्फुरित होती है, उसे किन शब्दों में, कैसे अभिव्यक्त किया जाए ? भावातिरेक में कुछ भी तो समझ में नहीं आता कि इस चांद का क्या किया जाए जो इतनी आकुल प्रतीक्षा के उपरान्त मिला है ?
 
कभी फूल, कभी अर्ध्य, कभी कुंकुं और कभी दूध चढ़ाते हुए कहां ध्यान रहता है वह मंत्र जो चन्द्रमा के समक्ष बोलना था, वह मनोकामना जो दिनभर से संजोकर रखी थी, वह विधि-विधान जो पुस्तक में पढ़ा था।
 
कुछ भी तो ध्यान नहीं रहता है बस, खो जाते हैं चांद की चमकती दुनिया में और फिर जैसे ही उस चमकीली रूपहली दुनिया से निकलकर यथार्थ की छत पर ध्यान जाता है तुरन्त याद आता है - वह मंत्र, वह मनोकामना, वह पूजन विधि, किन्तु तब तक चन्द्रमा अपने चमकते हाथों से बादलों की गुदगुदी रजाई में किसी शैतान बच्चे की भांति मुंह ढंक लेता है और एक हल्का-सा असंतोष छा जाता है पर यह संतोष बहुत बड़ा होता कि चांद देख लिया और इस बड़े संतोष को अपार हर्ष के साथ महसूसते हुए सारे असंतोष भुला दिए जाते हैं।
 
शरद की पूनम रात में चांद शबाब पर होता है। अमृत बरसाता हुआ,धवल चांदनी बिखेरता हुआ और पूरा का पूरा दिल में उतरता हुआ। कुछ-कुछ केसरिया, कुछ-कुछ बादामी। जैसे केसर महक उठी हो गहरे नीले आकाश में। चांद के इस सजीले-सलोने रूप पर कौन नहीं मुस्कराता होगा? आप भी कभी चांद को किसी पुराने फिल्मी नगमें के साथ निहारें, विश्वास कीजिए चांद अपना सारा सौन्दर्य आप पर वार देगा। फिलहाल, देखिए, चांद से आत्मीय रिश्ते ने कवि गुलजार से कितनी खूबसूरत त्रिवेणियां लिखवा डालीं।
 
* रात के पेड़ पे कल ही देखा था 
चांद, बस पक के गिरने वाला था 
सूरज आया था, जरा उसकी तलाशी लेना।
 
* मां ने इक चांद सी दुल्हन की दुआएं दी थीं,
आज की रात जो फुटपाथ से देखा मैंने/ 
रात भर रोटी नजर आया है वो चांद मुझे'।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

इस रजाई के आगे बड़े ब्रांड के हीटर भी हैं फेल, जानिए कौन सी है ये जादुई रजाई

हर शहर में मिलती है मुरैना की गजक, जानिए क्यों है इतनी मशहूर?

क्या सिर्फ ठंड के कारण ज्यादा कांपते हैं हाथ पैर? पूरी सच्चाई जानकर हो जाएंगे हैरान

भारत की पवित्र नदियों पर रखिए अपनी बेटी का नाम, मीनिंग भी हैं बहुत खूबसूरत

क्या सुबह के मुकाबले रात में ज्यादा बढ़ता है ब्लड प्रेशर? जानिए सच्चाई

सभी देखें

नवीनतम

Republic Day Wishes 2025 : भारत की विविधता, एकता और लोकतंत्र को दर्शाने वाले 10 देशभक्ति कोट्स

तिल संकटा चौथ पर कौन सा प्रसाद चढ़ाएं श्रीगणेश को, जानें तिल का महत्व और भोग की विधि

Saif Ali Khan Attack with Knife: चाकू के वार से गले की नसों पर हमला, जानिए कितना है खतरनाक?

पीरियड्स में महिला नागा साधु कैसे करती हैं महाकुंभ में स्नान, ये हैं नियम

76th Republic Day : गणतंत्र दिवस पर 10 लाइन में निबंध

अगला लेख