भाजपा के विधायकों से वन-टू-वन चर्चा करने वाले हैं शिवराज

राजवाड़ा 2 रेसीडेंसी

अरविन्द तिवारी
बात यहां से शुरू करते हैं : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सुहास भगत को भाजपा से वापस बुलाने के साथ ही मध्य प्रांत के लिए बौद्धिक प्रमुख का दायित्व तो सौंपा, लेकिन मुख्यालय जबलपुर कर दिया। अब समस्या दूसरी है, संगठन महामंत्री रहते हुए भगत ने दिवंगत अनिल माधव दवे के उपक्रम समग्र नर्मदा के मुख्यालय नदी का घर को अपना दूसरा मुकाम बना लिया था। उनका ज्यादातर कामकाज वहीं से चलता था। नई भूमिका में आने के बाद नदी के घर में भगत की आवाजाही कम होना भी स्वाभाविक है। ऐसे में अब यह बात भी चल पड़ी है कि इस संस्थान की कमान भी कहीं भगत के हाथों से लेकर किसी और को न सौंप दी जाए। यह आसान काम भी नहीं है। वैसे भगत की पूरी रुचि यहां अपना वर्चस्व बरकरार रखने की है। देखते हैं आगे क्या होता है।
 
वक्त वक्त की बात है... : बात ज्यादा पुरानी नहीं है, जब नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह और सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया दोनों मुख्यमंत्री के खासमखास हुआ करते थे। आंखों के तारे कहे जाने वाले ये दोनों मंत्री अब मुख्यमंत्री की गुड लिस्ट में नहीं हैं। भूपेंद्र सिंह तो इन दिनों चुप्पी साधे हुए हैं और अपने मंत्रालय के कामकाज में भी ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं। भदौरिया को विभागीय कामकाज में ही भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मातहत अफसर उनसे ज्यादा किसी और के निर्देशों को तवज्जो दे रहे हैं। अपनी पसंद के अफसर को वे राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी का मुखिया भी नहीं बनवा पाए और वहां मुख्यमंत्री की पसंद के सेवानिवृत्त अफसर काबिज हो गए। इस दूरी के कई कारण बताए जा रहे हैं।
 
क्यों परेशान है भाजपा के विधायक? : पचमढ़ी में अपनी कैबिनेट के साथियों के साथ चिंतन बैठक के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब जल्दी ही भाजपा के विधायकों से वन-टू-वन करने वाले हैं। दरअसल मुख्यमंत्री के पास लंबे समय से यह फीडबैक आ रहा है कि विधायक दो कारणों से बड़े परेशान हैं और इसका सीधा असर उनके परफार्मेंस यानी क्षेत्र के विकास पर भी पड़ रहा है। पहला कारण यह सामने आ रहा है कि मंत्री विधायकों की सुन नहीं रहे हैं और उनके कामों में अड़ंगे डाल रहे हैं। कई विधायकों की अपने प्रभारी मंत्री से भी नहीं पट रही है। दूसरा कारण यह है कि बची-कुची कसर नौकरशाही पूरी कर रही है। 'सरकार' के निर्देश के बावजूद अफसर विधायकों के काम में अड़ंगे डाल रहे हैं। वैसे एक सैकड़ा विधायक आने वाले चुनाव में मैदान से बाहर होने की स्थिति में हैं।
 
बदले-बदले नजर आ रहे हैं राव : अपने पर बार-बार उंगली उठने के बाद अब मध्यप्रदेश भाजपा के प्रभारी मुरलीधर राव थोड़ा संभलकर चल रहे हैं। वे समझ गए हैं कि मध्यप्रदेश के दिग्गजों से पार पाना आसान नहीं है। उनके बिगड़े बोल अब सुधरने लगे हैं। सरकारी तामझाम से भी वे दूरी बनाने लगे हैं। पिछले दिनों दिल्ली और भोपाल में हुई भाजपा की दो अलग-अलग बैठकों में राव का अंदाज देख पार्टी के सांसद और वरिष्ठ पदाधिकारी भी चौंक गए। मूलत: संघ के प्रचारक और फिर स्वदेशी जागरण मंच में अहम भूमिका निभाने वाले राव का सारा फोकस अब 2023 के चुनाव पर है और वे इसके लिए बूथ स्तर से लेकर प्रदेश भाजपा तक कोई कवायद बाकी नहीं रख रहे हैं।
 
हम साथ-साथ हैं : अरुण यादव फिर कमलनाथ के साथ दिखने लगे हैं। खंडवा उपचुनाव के बाद से यादव ने कमलनाथ से दूरी बना ली थी और गाहे-बगाहे उनके वक्तव्यों से यही संदेश मिल रहा था कि वे कमलनाथ से नाराज हैं। पिछले दिनों यादव ने दिल्ली दरबार में दस्तक दी और इसी के बाद उनके प्रदेश की राजनीति में फिर सक्रिय होने की बातें सामने आने लगीं। कहा यह जाने लगा कि पार्टी उन्हें राज्यसभा में मौका दे सकती है। पिछले दिनों कमलनाथ जब चैत्र नवरात्रि के मौके पर सलकनपुर में देवी के दरबार में मत्था टेकने गए तो सज्जन सिंह वर्मा के साथ ही यादव भी उनके साथ थे। देखते हैं यह साथ दोनों नेता कब तक निभा पाते हैं।
 
तन्खा फिर जा सकते हैं राज्यसभा : मध्यप्रदेश से राज्यसभा की तीन सीटें आने वाले समय में रिक्त हो रही हैं। इनमें से दो पर भाजपा नेताओं का संसद के उच्च सदन में जाना तय है। तीसरी सीट कांग्रेस को मिलना है। अभी तक यह माना जा रहा था कि कांग्रेस ख्यात विधिवेत्ता और कम समय में कांग्रेस की राजनीति में ऊंचा मुकाम हासिल करने वाले जी-23 ग्रुप के सदस्य विवेक तन्खा को शायद ही मौका दे। लेकिन द कश्मीर फाइल्स को लेकर देश में जो माहौल बना और इसके बाद कश्मीर से जुड़े मुद्दों पर मुखर होते हुए तन्खा ने राज्यसभा में प्राइवेट बिल लाने की जो पहल की उसके बाद यह माना जा रहा है कि एक बार फिर कांग्रेस तन्खा को मौका दे सकती है।
 
अलका उपाध्याय को मिला एक्सटेंशन : मध्यप्रदेश कॉडर की धुरंधर आईएएस अफसर और फिलहाल नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया की चेयरमैन अलका उपाध्याय अब एक साल और इसी पद पर रहेंगी। दरअसल उपाध्याय को केंद्र में प्रतिनियुक्ति की अवधि पूर्ण होने के बाद वापस मध्यप्रदेश लौटना था, लेकिन उनके कामकाज से बेहद खुश चल रहे विभाग के मंत्री नितिन गडकरी ने उन्हें एक साल और वहीं रखने की अनुशंसा की, जिसे मान लिया गया है। वैसे गडकरी के साथ काम करना आसान नहीं है, इसी विभाग में अतिरिक्त सचिव रहे मध्यप्रदेश के ही केसी गुप्ता प्रतिनियुक्ति की अवधि पूर्ण होने के पहले ही मध्यप्रदेश लौट आए थे। कारण आप समझ ही रहे होंगे।
 
चलते-चलते : कभी अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ सदन के बाहर और अंदर बेहद मुखर रहने वाले जबलपुर के वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई इन दिनों जिस अंदाज में 'सरकार' के साथ खड़े होकर विरोधियों पर वार कर रहे हैं, उसकी इन दिनों नेताओं के साथ ही नौकरशाहों के बीच भी बड़ी चर्चा है। सुना है विधायक जी की अब पूरी सुनी भी जा रही है।
 
पुछल्ला : मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति के तीन दिवसीय आयोजन का समापन राज्यपाल मंगू भाई पटेल की मौजूदगी में हुए सम्मान समारोह से हुआ। इस कार्यक्रम में समिति के सभापति वरिष्ठ कवि सत्यनारायण सत्तन की गैरमौजूदगी का कारण कोई समझ नहीं पा रहा है। 

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