Dharma Sangrah

जूता एक बार फिर सुर्खियों में

गिरीश पांडेय
जूता—जिसका असली मकसद पैरों को राह के कांटों, कंकड़-पत्थरों से बचाना था—कभी-कभी अपने मूल काम से हटकर भी सुर्खियों में आ जाता है। खासकर तब, जब कोई इसे पैरों से निकालकर हथियार बना ले। इन दिनों फिर वही हुआ है। मामला राजधानी दिल्ली का है, वो भी सुप्रीम कोर्ट से जुड़ा। लिहाजा, चर्चा का दायरा भी बड़ा है।
 
एक थी पनही, रिश्ते में ये जूते की दादी लगती थी : जूते की खोज करने वाले ने शायद कभी इसके इस उपयोग के बाबत सोचा हो, पर हम भारतीयों को जूते के इस उपयोग का पता तभी चल गया था जब बाबा के जमाने में यह पनही हुआ करती थी। तभी हमने इसे 'मल्टीपरपज़ टूल' बना दिया था—
 
तब घर के किसी मवेशी के मरने के बाद उसकी खाल उतारने के लिए ले जाने वाले, बाबा के नाप की एक-दो पनही बना देते थे। यह एक अघोषित शर्त थी। पनही पैर बचाती थी या काटती थी, यह आज तक अबूझ सवाल है। पहनते ही पैर छिल जाते, तो अइया उसमें कड़वा तेल डाल कर नरम करतीं। तब भी मुहावरा था — 'ईहे मुंहवा पान खाला, ईहे मुंहवा पनही!' मतलब साफ था — कब किसे पान पेश करना है और कब पनही, ये वक्त तय करता था।
 
तब भी पनही स्टेटस सिंबल थी। पैर काटने के बावजूद लोग मेले ठेले बाजार या रिश्ते में जाने के लिए इसे पहनते थे — क्योंकि 'पनहीवाले' होना, 'नंगे पांव' रहने से बेहतर माना जाता था। पनही बाबा और बैलों के साथ ही अतीत में चली गई। अब कोई याद भी नहीं करता। पर उस दौर में भी गुस्सा पनही से ठंडा किया जाता था। 
 
जूता मारने वालों से ज़्यादा कुशल होते हैं गिनने वाले जूते की मार का क्या कहना! कभी फेंक कर मारे जाने के कारण यह सुर्खियों में आता है, तो कभी कम समय में “रिकॉर्ड प्रहार” के लिए। मारने वाले से ज़्यादा कुशल तो गिनने वाले होते हैं — जो तुरंत बता देते हैं कि कितनी देर में कितने जूते पड़े। कभी-कभी तो जूते 'भिगो-भिगो' कर मारे जाते हैं — ताकि असर सीधा दिल पर पड़े। और हां, 'पैसे ले लो, जूते दे दो' जैसे गीतों ने जूते के क्रेज को नई ऊंचाई दी थी — और सालियों के लिए बोनस भी बना दिया था। कई बार तो जूते से ज़्यादा दाम जूता चुराने वालों को देने पड़ते हैं!
 
जूते मारने की गणित भी अलग होती है : एक डायलॉग अब तक याद है — बात पांच दशक पुरानी है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के दिनों की। मेरे मित्र पंकज उपाध्याय के ताऊजी पुलिस में दरोगा थे। एक बार बिना वर्दी के हमसे मिलने आए। रिक्शेवाला ज़्यादा किराया मांग बैठा। ताऊजी गरजे — 'निकालूंगा जूता… मारूंगा सौ, गिनूंगा एक!' मैं और रिक्शेवाला दोनों सहम गए। मन ही मन हिसाब लगाया — अगर ये ‘सौ’ में ‘एक’ गिन रहे हैं, तो बेचारे के पांच-दस भी पड़े तो राम नाम सत्य है! 
 
जूते की चर्चा से हताश हैं चप्पल और सैंडिलें : आज जूते को मिलती लगातार सुर्खियों से चप्पल और सैंडिलें हताश हैं। डर है कहीं ये डिप्रेशन में न चली जाएं। जबकि निकालकर मारना तो इन्हें आसान है!
 
बेचारी सैंडिल! : एक समय इसका भी जलवा था। भोजपुरी गायक बालेश्वर यादव जब गाते थे — 'चप्पल की ऊंचाई अगर ऐसे ही बढ़ती रही, तो हर सैंडिल के नीचे डंडा लगा दिया जाएगा'— तो पूरा मंच झूम उठता था। तब सैंडिलें भी गर्व से मुस्कराती थीं। पर अब चप्पल और जूते के बीच ये सैंडविच बन गईं। घर की 'चट्टी' और 'खड़ाऊ' तो बंटवारे में हिस्सा ही नहीं पा सकीं। और पीटी शू तो पीटी पीरियड के साथ ही इतिहास हो गया।
 
बंटवारे में सबसे लाभ में रही चप्पल : चप्पल सबसे समझदार निकली। इसने घर, बाहर और बाथरूम—तीनों पर कब्जा कर लिया। अपने लचीलेपन और सस्ते रखरखाव की वजह से इसकी रेंज बढ़ती गई। फीता टूटा तो बदल दो, और फिर चल पड़ो।
 
घिसी चप्पल का दर्शन : घिसी चप्पल पहनने का सुख ही अलग है। पैर का आधा हिस्सा चप्पल में, आधा ज़मीन पर, यानी 'ज़मीन से जुड़े रहने' का वास्तविक अनुभव। घिसी चप्पल चोरी हो जाए तो दुख नहीं होता। और अगर थोड़ी देर इंतज़ार करो, तो बदले में कोई दूसरी घिसी हुई चप्पल ज़रूर मिल जाती है — वो भी मुफ़्त में और 'संवेदनात्मक' रूप से फिट। यही कारण है कि 'चप्पल घिसना' अब तक ज़िंदा मुहावरा है।
 
हाल के दिनों में जब माननीयों ने 'हवाई जहाज' में 'हवाई चप्पल' का जिक्र किया, तो इसका स्टेटस और बढ़ गया।
अब यह केवल फ़ुटवियर नहीं, समरसता का प्रतीक बन गई है।
 
जूते की सीमाएं : जूते की चमक अपनी जगह, पर इसकी सीमाएं भी हैं। इसका दायरा चप्पल जितना विस्तृत नहीं हो पाया। ऑफिस और ट्रैक तक तो ठीक, पर किचन और बाथरूम में इसकी एंट्री वर्जित है। कभी नागरा जूता उम्रदराज लोगों की पहचान था। हर काबिल बेटा पिता के लिए साल में एक-आध जोड़ी ज़रूर लाता था। बरसाती जूते-चप्पल की भी कभी सीज़नल धूम थी। अब नहीं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

लॉन्ग लाइफ और हेल्दी हार्ट के लिए रोज खाएं ये ड्राई फ्रूट, मिलेगा जबरदस्त फायदा

इस आदत से इंसानी दिमाग हो जाता है समय से पहले बूढ़ा, छोटी उम्र में बढ़ जाता है बुढ़ापे वाली बीमारियों का खतरा

मजबूत और लंबे बालों के लिए 5 बेस्ट विटामिन जो करेंगे कमाल, जानिए हर एक के फायदे

7 फल जिनमें शुगर की मात्रा सबसे ज्यादा, डाइट में शामिल करने से पहले जरूर जानें

शुगर लेवल बैलेंस करने वाले 5 आयुर्वेदिक फूड्स, रोजाना करें डाइट में शामिल

सभी देखें

नवीनतम

Childrens Day 2025 speech: 14 नवंबर, नेहरू जयंती और बाल दिवस के लिए बेस्ट हैं ये 9 स्पीच आइडियाज

Childrens Day 2025: 14 नवंबर: बाल दिवस पर जानें, 2 मिनट का छोटा और सरल भाषण

Nehru Jayanti 2025: जयंती विशेष: पंडित जवाहरलाल नेहरू के जीवन से जुड़ी 11 रोचक जानकारियां

Jawaharlal Nehru Jayanti 2025: एक गुलाब, एक राष्ट्र निर्माता: बच्चों के प्यारे 'चाचा नेहरू' की कहानी

डायबिटीज के मरीजों में अक्सर पाई जाती है इन 5 विटामिन्स की कमी, जानिए क्यों है खतरनाक

अगला लेख