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घोर नाइंसाफी, शांति के नोबल पुरस्कार के असली हकदार तो ट्रंप ही थे

गिरीश पांडेय
आठ महीने। आठ युद्ध। इनमें से कुछ युद्ध तो अब विश्वयुद्ध या परमाणु युद्ध का खौफ पैदा कर रहे थे। ऐसी हालात में इन सभी युद्धों का युद्धविराम। इन युद्धविरामों का मतलब जान-माल की भारी तबाही को रोकना है। आसान नहीं है ये काम। मेरी समझ से तो यह असंभव है। दुनिया में जारी संघर्षों को देखते हुए – चाहे वह मध्य पूर्व की अस्थिरता हो, यूक्रेन का संकट हो, या अन्य क्षेत्रीय विवाद – युद्धविराम हासिल करना किसी चमत्कार से कम नहीं लगता। इतिहास गवाह है कि ऐसे प्रयास अक्सर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी या बाहरी हस्तक्षेपों के कारण विफल हो जाते हैं। लेकिन अगर हम गहराई से सोचें, तो क्या वाकई कोई ऐसा व्यक्ति या शक्ति है जो इस असंभव को संभव बना सके?
 
जो हुआ वह या तो भगवान कर सकते थे या ट्रंप : इस असंभव को सिर्फ दो ही लोग संभव बना सकते हैं। एक तो सर्वशक्तिमान परम पिता परमेश्वर और दूसरे दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क USA (संयुक्त राज्य अमेरिका) के बेहद ताकतवर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। परम पिता परमेश्वर तो ठहरे, 'दाता'। वह तो कुछ मांगने से रहे। वैसे उनके पास कमी भी क्या है! वे तो हमेशा से ही शांति और करुणा के प्रतीक रहे हैं, लेकिन मानवीय मामलों में उनका हस्तक्षेप आस्था का विषय है। रही बात डोनाल्ड ट्रंप की, तो उनके दावों के अनुसार उनके काम और भूमिका के मद्देनजर वह हर लिहाज से शांति के नोबेल पुरस्कार के हकदार थे। ट्रंप ने अपने कार्यकाल में शांति प्रयास के कई दावे किए। ये दावे एक नहीं कई बार किए गए। तब भी किए गए जब संबंधित किसी देश ने उनके दावों को सिरे से नकार दिया।
 
नोबेल समिति के फैसले से ट्रंप के साथ शांति प्रिय पाकिस्तान, इजराइल और कंबोडिया के करोड़ों लोगों की भावनाएं भी आहत
 
ट्रंप को को ही शांति का नोबल पुरस्कार मिले इसके लिए उनको पाकिस्तान, इज़राइल और कंबोडिया जैसे शांतिप्रिय देशों का समर्थन भी तो था। इन देशों के नेताओं ने ट्रंप की नीतियों को सराहा और उन्हें नोबेल के लिए नामांकित करने की बात की। नोबेल समिति ने न केवल ट्रंप की भावनाओं को बल्कि उनको पुरस्कार देने का समर्थन करने वाले देशों के करोड़ों लोगों की भावनाओं को भी आहत किया। यह फैसला कई लोगों को राजनीतिक पूर्वाग्रह से प्रेरित लगता है, जहां वैश्विक शांति के प्रयासों को नजरअंदाज किया गया।
 
बड़ा दिल दिखाएं, मचाडो :  अपना नोबल उसके असली हकदार ट्रंप को सौंप दें
 
मेरा निजी तौर पर वेनेज़ुएला की मुख्य विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो से अनुरोध है कि वह बड़ा दिल दिखाएं। गलती से नोबेल समिति ने उनको जो पुरस्कार दिया है, वह उसे पुरस्कार के असली हकदार ट्रंप साहब को सम्मानपूर्वक सौंप दें। सोचें! आपने तो सिर्फ वेनेज़ुएला में लोकतंत्र की लड़ाई लड़ी है। आपकी लड़ाई सराहनीय है। लेकिन ट्रंप सर को देखिए अपने देश के लोगों के साथ ही पूरी दुनिया से शांति स्थापित करने के लिए लड़ रहे हैं। उनके दावों पर यकीन करें तो आठ माह में आठ युद्ध रुकवाने वाले ट्रंप एक ही हैं। पूरी उम्मीद है कि रहेंगे। इस इतिहास पुरुष को नोबेल देकर हम उनका नहीं नोबेल का सम्मान बढ़ाएंगे।
 
मारिया से अपील : मारिया कोरिना जी, हमारी परंपरा में स्त्री त्याग की प्रतिमूर्ति रही है। इसे एक बार फिर साबित करने का सु-अवसर आपके पास है। ध्यान रखिएगा! किसी की जिंदगी में सु-अवसर बार-बार नहीं आते। दे दीजिए ना! भगवान आपका भला करे।

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