मेरा ब्लॉग : इल्तिजा (सेहबा जाफरी की रचना)

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सेहबा जाफरी 
सिगरेट के 
एक बेमानी से छल्ले में
तूने मुझे ढूंढा था
मुझसे हवा ने चुग़ली खाई 
मुझे किरन ने छुप के बताया
तूने !

बाज़ारों की रौनक़ में 
मुझको खोजा था
एक अच्छे व्यापारी जैसा
मुझे शहर की तमाम 
रोशनियों ने खबर दी
तूने कली-कली महक-महक 
बारहां मुझे तलाशा
किसी मासूम बच्चे की मानिंद
कि मुझको उदास शबनम
तेरी बेकली की दास्तां सुना रही थी
चांद रात में आंसू-आंसू
मेरे खोने पे रोया था तू
कि मुझको तारों के लश्करों ने 
सहम-सहम की सुनाया था सब
कहां से मिलती नज़ारों में मैं
कहां छुपी थी बहारों में मैं
न चांद रातों में
न नर्म बातों में
कि मुझको तूने खुद से छुपकर
अपने दिल में बैठा रखा था
राज़्दां कोईं था नही 
और खुद ने भी तो भुला रखा था
दिल के इस बंद हाशिये मे 
वक़्त की गर्द जम गई है
कि यूं ही तन्हां बैठे बैठे
मेरी रगें भी अकड़ गई हैं
आ कि आकर के ढूंढ मुझको
खयालों के क़लम को रोश्नायी दे दे
या फिर सदियों के सख़्त क़ैद से 
आ के मुझको रिहाई दे दे .

                   
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