अरे वाह..! बहुत खूब..! क्या बात है...!

शैली बक्षी खड़कोतकर
ब्रिटिश कम्पनी वर्जिन के रिचर्ड ब्रैसन फिर सुर्खियों में हैं। साल भर की सवैतनिक पेरेंटल लीव की घोषणा के साथ। पिछले वर्ष वे स्टाफ के लिए असीमित छुट्टियों का तोहफा लेकर आये थे। इसी तरह सूरत के एक व्यापारी ने दिवाली पर कर्मचारियों को फ्लैट, कार, ज्यूलरी का बोनस दिया और अब सूरत के ही निजी स्कूल ने शिक्षकों को दो पहिया वाहनों की सौगात दी। 
 

जाहिर है, ये सभी उपहार, रियायते कंपनी की नियमावली में नहीं थी। न भी मिलते तो कर्मचारी नाराज नहीं होते।  फिर कंपनी पर इस अतिरिक्त आर्थिक भार और विशेष उदारता का कारण? 
 
ये सारे लोग कुशल प्रबंधक हैं। एक छोटे से कदम से लाखों दिलों में पैठ बनाने का हुनर जानते हैं। उन्होंने न सिर्फ अपने कर्मचारी बल्कि मीडिया के जरिये उनसे जुडे विश्व के असंख्यक लोगों के बीच कंपनी की साख और छवि एक झटके में बेहतरीन बना दी। 
 
और सबसे अहम् उन्होंने अपने कर्मचारियों को अपनेपन की उस मजबूत डोर से बांध लिया हैं कि प्रतिस्पर्धियों के लिए इसे तोड़ना आसान तो नहीं होगा। 
 
आखिर स्नेह, सराहना, सम्मान, की चाह किसे नहीं होती। पर जरा गौर करें क्या हम निजी रिश्तों में -कई बार यही कृपण नहीं हो जाते हैं? जानते-मानते हुए भी बताने-जताने से चूक जाते हैं। बिजली-सी कौंधती हैं, स्वीकार्यता भी होती हैं, मन ही मन कह भी लेते हैं, शायद,  “आज चाय में कुछ खास हैं। ” 
 
“ अरे, बड़ी ताजी और सस्ती सब्जी ले आए”
 
“आज तो बच्चे मेहमानों के सामने बहुत अच्छे से पेश आए।”

लेकिन अक्सर ये छोटे-छोटे जुमले मन ही में तिरोहित हो जाते हैं। कभी हम अखबार, टी.वी.या मोबाइल में घुसे होते हैं, कभी गैस पर चढ़ी सब्जी याद आ जाती है। कभी ज्यादा जरुरी विचार या बात अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं या फिर फॉर ग्रेंटड वाला एटीट्युड “इसमें कहने वाली क्या बात है।”
 
अपनों के लिए हर बार महंगे उपहार, सौगातो की जरुरत नहीं, बस दो मीठे बोल और प्रशंसा भरी दृष्टि ही काफी है। किसी अपने की नज़र में महत्त्व का अहसास बहुत सुकून देता है। अपनत्व से की गई प्रशंसा जीने की नई पुलक जगा देती है। जिसके लिए हम कुछ करें, उसके द्वारा की गई सराहना, संबंधों में नई ऊर्जा भर देती है। 
 
चाय में कुछ खास न भी हो लेकिन कह देने भर से अगली कई चाय उत्साह से बनाई और सर्व की जाएगी।  समझदारी भरी खरीदारी के लिए जनाब 4 दुकान तलाशते नज़र आएंगे और बच्चे तो जरा-सा प्रोत्साहन पाकर ही लहलहा उठेंगे। 
 
हां, लेकिन दूसरों से उम्मीद करने की बजाय खुद पहल करें, फिर देखे यह प्यारभरा संक्रमण कैसे फैलता है।  
 तो कह कर देखे, आज किसी अपने से –
 
“अरे वाह..! बहुत खूब..! क्या बात है...! “
 
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