गीत : सब्र की भी एक सीमा है

Webdunia
ओमप्रकाश ‘मधुर’
 
आपके घर के तमस का सूर्य है दोषी नहीं,
कूप का दादुर कहाता आत्म-संतोषी नहीं
जब खड़ी दीवार होगी रवि-किरन को डांटकर ,
जब धरा विक्षिप्त होगी आसमा को बांटकर।
शीश, धड़, कर पैर में
जब तक समन्वय है नहीं सांस लेकर भी मृतक सम
जीव, संशय है नहीं।

मांग कर जो पेट भरता, क्रान्ति-उद्घोषी नहीं
ये कहां की रीत है जिसको चुना, उसने धुना
आह हम भरते रहे, उसने किया सब अनसुना।
 
सब्र की भी एक सीमा है,
जिसे हम छोड़कर, विप्लवी यदि हो गए 
सब बंधनों को तोड़कर।
क्योंकि पोषी लोक के, तंत्र  के पोषी नहीं
कायरों, गद्दार लोगों की
कमी कोई नहीं,चल रहे हैं ,
पांव के नीचे ज़मीं कोई नहीं
क़ौम को मुर्दा न होने दो
वतन के वालिओ, देखना, पौधे न मुरझाएं
चमन के मालियों।
ओ सुरा के सेवको!तुम हो सुधा-कोषी नहीं 
आप के घर के तमस का सूर्य है दोषी नहीं....  
Show comments

ग्लोइंग स्किन के लिए चेहरे पर लगाएं चंदन और मुल्तानी मिट्टी का उबटन

वर्ल्ड लाफ्टर डे पर पढ़ें विद्वानों के 10 अनमोल कथन

गर्मियों की शानदार रेसिपी: कैसे बनाएं कैरी का खट्‍टा-मीठा पना, जानें 5 सेहत फायदे

वर्कआउट करते समय क्यों पीते रहना चाहिए पानी? जानें इसके फायदे

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है खाने में तड़का, आयुर्वेद में भी जानें इसका महत्व

इन विटामिन की कमी के कारण होती है पिज़्ज़ा पास्ता खाने की क्रेविंग

The 90's: मन की बगिया महकाने वाला यादों का सुनहरा सफर

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

गर्मियों में ये 2 तरह के रायते आपको रखेंगे सेहतमंद, जानें विधि

क्या आपका बच्चा भी चूसता है अंगूठा तो हो सकती है ये 3 समस्याएं