हिन्दी कविता : बरसे जब-जब बादल

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पुरुषोत्तम व्यास
उड़ता-उड़ता गाता पक्षी
उसके आंगन मेरे आंगन
यादों की समीर बही
बरसे जब-जब बादल.....
अम्बर स्वच्छ सुंदर-सा
सरिता भी नई-नई
कागज की नाव बह पड़ी 
बरसे जब-जब बादल.......
 
चारों दिशाएं खिली-खिली
 
रातरानी भी महका रही
झूम रही वादियां- 
बरसे जब-जब बादल......
 
मिलती वह
झूलता सावन के झूलों में
लिखता सुंदर-सी कविता
बरसे जब-जब बादल...। 
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