फादर्स डे स्पेशल : पहेली

ब्रजेश कानूनगो
वे थे 
मैं था 
सब था 
वे थे वे 
मैं मैं था 
सब था अलग अलग
 
उनमें नहीं था मैं 
मुझमें तो कतई 
नहीं होते थे वे
 
अब मैं हूं  
नहीं हैं वे 
 
पढ़कर सुनाता हूं पत्नी को 
कुमार अम्बुज की कविताएं
सुनाने लगते हैं वे 
धर्मयुग से नईम के नवगीत
 
ओह! मैं हूं  
वे भी हैं 
 
उनके जैसा मैं 
मेरे जैसे वे 
सब कुछ पहले जैसा.
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