कुछ पुराणों अनुसार नागों के प्रमुख पांच कुल थे- अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला।
कुछ पुराणों के अनुसार नागों के अष्टकुल क्रमश: इस प्रकार हैं:- वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय।
अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं। नागों का पृथक नागलोक पुराणों में बताया गया है। अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है। असम, नागालैंड, मणिपुर, केरल और आंध्रप्रदेश में नागा जातियों का वर्चस्व रहा है।
भारत में उपरोक्त आठों के कुल का ही क्रमश: विस्तार हुआ जिनमें निम्न नागवंशी रहे हैं- नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश हैं।
1.
शेषनाग : शेषनाग के बारे में कहा जाता है कि इसी के फन पर धरती टिकी हुई है यह पाताल लोक में ही रहता है। चित्रों में अक्सर हिंदू देवता भगवान विष्णु को शेषनाग पर लेटे हुए चित्रित किया गया है।
मान्यता है कि शेषनाग के हजार मस्तक हैं। दो मुंह वाला सर्प तो आम बात हैं। हाल ही में एक खबर छपी थी कि हैदराबाद में पांच मुंह वाला सर्प देखा गया जिसके देश भर में चित्र जारी किए गए थे।
शेष को ही अनंत कहा जाता है ये कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी और प्रथम नागराज थे। कश्मीर के अनंतनाग जिला इनका गढ़ था।
2.
वासुकी : नागों के दूसरे राजा वासुकी का इलाका कैलाश पर्वत के आसपास का क्षेत्र था। पुराणों अनुसार वासुकी नाग अत्यंत ही विशाल और लंबे शरीर वाले माने जाते हैं। समुद्र मंथन के दौरान देव और दानवों ने मंदराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी को ही नेती (रस्सी) बनाया था।
3.
तक्षक : तक्षक ने शमीक मुनि के शाप के आधार पर राजा परीक्षित को डंसा था। उसके बाद परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग जाति का नाश करने के लिए नाग यज्ञ करवाया था। माना जाता है कि तक्षक का राज तक्षशिला में था।
4.
कर्कोटक : कर्कोटक और ऐरावत नाग कुल का इलाका पंजाब की इरावती नदी के आसपास का माना जाता है। कर्कोटक शिव के एक गण और नागों के राजा थे।
नारद के शाप से वे एक अग्नि में पड़े थे, लेकिन नल ने उन्हें बचाया और कर्कोटक ने नल को डस लिया, जिससे राजा नल का रंग काला पड़ गया। लेकिन यह भी एक शाप के चलते ही हुआ तब राजा नल को कर्कोटक वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए।
शिवजी की स्तुति के कारण कर्कोटक जनमेजय के नाग यज्ञ से बच निकले थे और उज्जैन में उन्होंने शिव की घोर तपस्या की थी। कर्कोटेश्वर का एक प्राचीन उपेक्षित मंदिर आज भी चौबीस खम्भा देवी के पास कोट मोहल्ले में है। वर्तमान में कर्कोटेश्वर मंदिर हरसिद्धि के प्रांगण में है।