Hanuman Chalisa

सरल और स्पष्ट है गुरुनानक देवजी का व्यक्तित्व

Webdunia
* गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व
 

 
गुरु नानक देवजी सिख धर्म के संस्थापक ही नहीं, अपितु मानव धर्म के उत्थापक थे। वे केवल किसी धर्म विशेष के गुरु नहीं अपितु संपूर्ण सृष्टि के जगद्गुरु थे। 'नानक शाह फकीर। हिन्दू का गुरु, मुसलमान का पीर। उनका जन्म पूर्व भारत की पावन धरती पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन 1469 को लाहौर से करीब 40 मील दूर स्थित तलवंडी नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम कल्याणराय मेहता तथा माता का नाम तृपताजी था। 
 
भाई गुरुदासजी लिखते हैं कि इस संसार के प्राणियों की त्राहि-त्राहि को सुनकर अकाल पुरख परमेश्वर ने इस धरती पर गुरु नानक को पहुंचाया, 'सुनी पुकार दातार प्रभु गुरु नानक जग महि पठाइया।' उनके इस धरती पर आने पर 'सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधू जगि चानणु होआ' सत्य है, नानक का जन्मस्थल अलौकिक ज्योति से भर उठा था। उनके मस्तक के पास तेज आभा फैली हुई थी। 
 
पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब उनके दर्शन किए उसी क्षण भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक ईश्वर ज्योति का साक्षात अलौकिक स्वरूप है। बचपन से ही गुरु नानक का मन आध्यात्मिक ज्ञान एवं लोक कल्याण के चिंतन में डूबा रहता। बैठे-बैठे ध्यान मग्न हो जाते और कभी तो यह अवस्था समाधि तक भी पहुंच जाती।
 
गुरु नानक देवजी का जीवन एवं धर्म दर्शन युगांतकारी लोकचिंतन दर्शन था। उन्होंने सांसारिक यथार्थ से नाता नहीं तोड़ा। वे संसार के त्याग संन्यास लेने के खिलाफ थे, क्योंकि वे सहज योग के हामी थे। उनका मत था कि मनुष्य संन्यास लेकर स्वयं का अथवा लोक कल्याण नहीं कर सकता, जितना कि स्वाभाविक एवं सहज जीवन में। 
 
इसलिए उन्होंने गृहस्थ त्याग गुफाओं, जंगलों में बैठने से प्रभु प्राप्ति नहीं अपितु गृहस्थ में रहकर मानव सेवा करना श्रेष्ठ धर्म बताया। 'नाम जपना, किरत करना, वंड छकना' सफल गृहस्थ जीवन का मंत्र दिया।
 
यही गुरु मंत्र सिख धर्म की मुख्य आधारशिला है। यानी अंतर आत्मा से ईश्वर का नाम जपो, ईमानदारी एवं परिश्रम से कर्म करो तथा अर्जित धन से असहाय, दुःखी पीड़ित, जरूरततमंद इंसानों की सेवा करो। 
 
गुरु उपदेश है, 'घाल खाये किछ हत्थो देह। नानक राह पछाने से।' इस प्रकार श्री गुरुनानक देवजी ने अन्न की शुद्धता, पवित्रता और सात्विकता पर जोर दिया। 
 
 

गुरु नानक देव एक मर्तबा एक गांव में पहुंचे तो उनके लिए दो घरों से भोजन का निमंत्रण आया। एक निमंत्रण गांव के धनाढ्य मुखिया का था, दूसरा निर्धन बढ़ई का था।


 
नानक जी ने मुखिया के घी से बने मिष्ठान को ग्रहण न करके बढ़ई किसान की रूखी रोटियां को सप्रेम स्वीकार किया। इस पर मुखिया ने अपना अपमान समझा। गुरुजी ने मुखिया की रोटियों को निचोड़ा तो उसमें से रक्त टपका। दूसरी ओर किसान की रोटियों को निचोड़ा तो उसमें से निर्मल दूध की धारा फूट पड़ी। 
 
गुरुनानक देवजी ने कहा कि मुखिया की कमाई, जो अनीति, अधर्म, अत्याचार, शोषण से प्राप्त की कमाई है जबकि काश्तकार ने यह अन्न ईमानदारी, मेहनत से प्राप्त किया है। इसमें लेशमात्र भी अनीति, अन्याय, शोषण, मलिनता नहीं है। कु-अन्न के प्रभाव से मन मलिन, प्रदूषित तथा विकारों से युक्त हो जाता है। ऐसा भोजन कितना भी स्वादिष्ट हो, वह ग्राह्य नहीं है। शुद्ध, सात्विक, नीति-धर्म का पालन करते हुए प्राप्त किया हो, वह आहार मानव मन को विकार रहित, निर्मल, पवित्र और सात्विक बनाता है। 
 
इसी प्रकार ईश्वरीभाव एवं भय के साथ पूरी ईमानदारी के साथ कर्म करने की बात भी गुरुजी ने कही। गुरुनानक देवजी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व जितना सरल, सीधा और स्पष्ट है, उसका अध्ययन और अनुसरण भी उतना ही व्यावहारिक है। गुरु नानक वाणी, जन्म साखियों, फारसी साहित्य एवं अन्य ग्रंथों के अध्ययन से यह सिद्ध होता है।
 
गुरुनानक ने सभी धर्मों को श्रेष्ठ बताया। जरूरत है धर्म के सत्य ज्ञान को आत्मसात कर अपने व्यावहारिक जीवन में लाने की। गुरुजी ने धार्मिक एवं सामाजिक विषमताओं पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने वाणी में हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए एकात्मकता के बीज बोए। उनका मत था कि संपूर्ण सृष्टि का ईश्वर एक है। हम सब तो उसके बंदे हैं- 'एक पिता एकस के बारिक'। हमारा धर्म एक है। गुरुजी स्वयं एकेश्वर में पूर्ण विश्वास रखते थे। उनका दृष्टिकोण समन्वयवादी था। 
 
वे कहते हैं- 'सबको ऊंचा आखिए/ नीच न दिसै कोई।' गुरुजी ने ऐसे मनुष्यों को प्रताड़ित किया है, जिनके मन में जातीय भेदभाव है और कहा कि वह मनुष्य नहीं, पशु के समान है- जीनके भीतर हैं अंतरा जैसे पशु तेसे वो नरा'। ऊंच-नीच के भेदभाव मिटाने के लिए गुरुजी ने कहा कि मैं स्वयं भी ऊंची जाति कहलाने वालों के साथ नहीं बल्कि मैं जिन्हें नीची जात कहा जाता है, उनके साथ हूँ। 'नीचा अंदरि नीच जाति, नीचिंहु अति नीचु/ नानक तिन के संग साथ, वडिया सिऊ किया रीस। 
 
गुरुनानक देवजी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व जितना सरल, सीधा और स्पष्ट है, उसका अध्ययन और अनुसरण भी उतना ही व्यावहारिक है। गुरु नानक वाणी, जन्म साखियों, फारसी साहित्य एवं अन्य ग्रंथों के अध्ययन से यह सिद्ध होता है कि गुरुनानक उदार प्रवृत्ति वाले स्वतंत्र और मौलिक चिंतक थे। 
 
एक सामान्य व्यक्ति और एक महान आध्यात्मिक चिंतक का एक अद्भुत मिश्रण गुरु नानकदेवजी के व्यक्तित्व में अनुभव किया जा सकता है। 'वे नबी भी थे और लोकनायक भी, वे साधक भी थे और उपदेशक भी, वे शायर एवं कवि भी थे और ढाढ़ी भी, वे गृहस्थी भी थे और पर्यटक भी।'
 
- स. प्रीतमसिंह छाबड़ा 
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Karwa chauth 2025 date: करवा चौथ कब है वर्ष 2025 में?

Narak chaturdashi 2025: नरक चतुर्दशी कब है 19 या 20 अक्टूबर 2025, रूप चौदस का स्नान कब होगा?

Weekly Horoscope October 2025: सितारे आपके द्वार! अक्टूबर का नया सप्ताह, जानें किस्मत, करियर और प्रेम का हाल

India Pakistan War: क्या सच में मिट जाएगा पाकिस्तान का वजूद, क्या कहते हैं ग्रह नक्षत्र?

धन बढ़ाने के 5 प्राचीन रहस्य, सनातन धर्म में है इसका उल्लेख

सभी देखें

धर्म संसार

08 October Birthday: आपको 8 अक्टूबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

Aaj ka panchang: आज का शुभ मुहूर्त: 08 अक्टूबर, 2025: बुधवार का पंचांग और शुभ समय

Kartik Month 2025: कार्तिक मास में कीजिए तुलसी के महाउपाय, मिलेंगे चमत्कारी परिणाम बदल जाएगी किस्मत

Karwa Chauth Vrat 2025: करवा चौथ व्रत रखने से पहले जान लें पूरे दिन के मुख्य नियम, क्या करें, क्या न करें?

Diwali 2025: धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, अन्नकूट, गोवर्धन और भाई दूज की पूजा के शुभ मुहूर्त

अगला लेख