मोक्ष तक जाने का सरल मार्ग है गुरु नानक देव का जीवन दर्शन

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सिख धर्म के दस गुरुओं की कड़ी में प्रथम हैं गुरु नानक। गुरु नानक देव से मोक्ष तक पहुंचने के एक नए मार्ग का अवतरण होता है। इतना प्यारा और सरल मार्ग कि सहज ही मोक्ष तक या ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है।
 
भारतीय संस्कृति में गुरु का महत्व आदिकाल से ही रहा है। कबीर साहब ने कहा था कि गुरु बिन ज्ञान न होए साधु बाबा। तब फिर ज्यादा सोचने-विचारने की आवश्यकता नहीं है बस गुरु के प्रति समर्पण कर दो। हमारे सुख-दु:ख और हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य गुरु को ही साधने दो। ज्यादा सोचोगे तो भटक जाओगे। अहंकार से किसी ने कुछ नहीं पाया। सिर और चप्पलों को बाहर ही छोड़कर जरा अदब से गुरु के द्वार खड़े हो जाओ बस। गुरु को ही करने दो हमारी चिंता। हम क्यों करें।

 
गुरु नानक देव का जीवन दर्शन : कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को राएभोए के तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर गुरु नानक का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है।
 
माना जाता है कि 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र भी उन्हें हुए। 1507 में वे अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर यात्रा के लिए निकल पड़े। 1521 तक उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख स्थानों का भ्रमण किया।


कहते हैं कि उन्होंने चारों दिशाओं में भ्रमण किया था। लगभग पूरे विश्व में भ्रमण के दौरान नानक देव के साथ अनेक रोचक घटनाएं घटित हुईं। 1539 में उन्होंने देह त्याग दी।

 
नाम धरियो हिंदुस्तान : कहते हैं कि नानकदेवजी से ही हिंदुस्तान को पहली बार हिंदुस्तान नाम मिला। लगभग 1526 में जब बाबर द्वारा देश पर हमला करने के बाद गुरु नानक देवजी ने कुछ शब्द कहे थे तो उन शब्दों में पहली बार हिंदुस्तान शब्द का उच्चारण हुआ था-
 
खुरासान खसमाना कीआ 
हिंदुस्तान डराईआ।
 
गुरुनानक का दर्शन : नानकदेव क्या थे और नानक का दर्शन क्या था? ये सब निरर्थक बातें हैं। नानक के व्यक्तित्व में सभी गुण थे। नानकदेवजी ने रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में सदैव अपनी आवाज बुलंद की। संत साहित्य में नानक अकेले चमकते सितारे हैं। कवि हृदय नानक की भाषा में फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी, संस्कृत और ब्रजभाषा के शब्द समा गए थे। 
 
नानकदेवजी के सिद्धांत :
1. ईश्वर एक है।
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
3. जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है।
4. सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
5. ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए।
6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
7. सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता मांगना चाहिए।
8. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
10. मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। 

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