मानसरोवर में हुई मोरारी बापू की 700वीं रामकथा

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प्रसिद्ध रामकथा वाचक मोरारी बापू ने अपने जीवन की 700वीं 'रामकथा' कैलाश मानसरोवर में पूरी की। यहां के वातावरण की जो 7 अनुभूतियां उन्हें हुईं, वे कथा के समापन पर उनकी आंखों से झरती रहीं और रोम-रोम में मानो राम बस गए हों।

शिक्षक से रामकथा वाचक बने मोरारी बापू के अनुसार आप विश्वास करें या न करें लेकिन यह सच है कि 15 दिन तक मुझे ‍नींद नहीं आई। मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन कैलाश मानसरोवर के अलौकिक वातावरण और साक्षात शिव की अनुभूति की वजह से मैं सो नहीं पाया।

ऐसी बात भी नहीं थी कि मैं जानबूझकर जागरण कर रहा था। यहां पर इतनी ठंड थी कि सांस लेना भी मुश्किल था, लेकिन प्रभुकृपा से शारीरिक कष्टों के बावजूद यहां पर आकर ऐसा लगा मानो जीवन सफल हो गया।

कैलाश मानसरोवर में 'रामकथा' के यजमान था सचदेव परिवार। कथा की पूर्णाहु‍ति के पश्चात बापू ने बताया कि मैं इस परिवार का शुक्रिया अदा करता हूं जिसकी वजह से मैं यहां तक पहुंच पाया और सैकड़ों सुनने वाले भी धर्मालुओं ने भी मुझे हड्‍डी गला देने वाली सर्दी में भी सुना।

उन्होंने यह भी बताया कि जब भारत से हम कैलाश मानसरोवर की दुर्गम यात्रा पर आ रहे थे, तब रास्ते में ही सचदेव परिवार की एक बेटी नहीं रही। रास्ते में ही किसी तरह उसका अं‍तिम संस्कार किया और फिर आगे के लिए चल पड़े। शोक के बाद भी सचदेव परिवार ने रामकथा स्थगित नहीं की। ऐसे यजमान सिर्फ भारतीय ही हो सकते हैं।

बापू के मुताबिक यहां पर उनकी 700वीं कथा थी और जो मुझे सात अनुभूतियां हुईं वे इस प्रकार रहीं-

1. विशेष कृपा : प्रभु की विशेष कृपा रही कि मैं यहां के वातावरण को झेल पाया। मैं उम्र के जिस पड़ाव पर हूं, उसे देखकर मैंने महसूस किया कि यदि ईश्वर की असीम कृपा नहीं रहती तो मैं यहां पर कथा वाचन ही नहीं कर पाता।

2. विशेष कलाओं की अनुभूति : कैलाश मानसरोवर में मुझे विशेष कलाओं की अनुभूति हुई, विशेषकर गायन में। मैदानी इलाकों में गायन की शैली भिन्न होती है और यहां की शैली अलग तरह की थी।

3. विशिष्ट कथा शैली : यहां आकर मेरे कथा वाचन की हमेशा रहने वाली शैली भी बदल गई। ऐसा अनुभव हुआ जिस प्रकार भगवान शिव ने उमा (पार्वती) को रामकथा सुनाई थी, उसी प्रकार मैं भी सुन रहा हूं।

4. काल : काल की चेतना ने मुझे बनाए रखा। जब मैंने रामकथा की शुरुआत की थी तब केवल 5 श्रोता ही थे, लेकिन आज इसे सुनने वाले लाखों हैं।

5. कीर्तन : यहां पर मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे गिरनार पर्वत की तलहटी में जहां मेरा जन्म स्थान है, वहां के पर्वतों से भी राम धुन आती रहती है, वैसे ही यहां के पर्वतों से भी राम धुन आ रही है।

6. कैवल्य की अनुभूति : शरीर के रहते हुए भी मुझे यहां कैवल्य की अनुभूति हुई मानो मैं साधना में लीन हो गया। मैं कहीं और पहुंच गया था।

7. कृतकृत्य का भाव : मुझे कैलाश मानसरोवर पर रामकथा कहते हुए कृतकृत्य के भाव की अनुभूति हुई। लगा कि मेरा जीवन धन्य हो गया। जैसे बाबा तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में काग भुसुंडी द्वारा गरुड़ को जब रामकथा सुनाई, तब गरूड़जी ने कहा 'हे नाथ मैं कृतकृत्य हो गया', ठीक उसी तरह मैं भी यहां आकर कृतकृत्य हो गया। जिस उद्देश्य से मैं यहां आया था, वह सफल हो गया। महादेव की कृपा से मैंने यहां आकर परम विश्राम को पा लिया। ( वेबदुनिया न्यूज)

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