Maratha reservation bill passed in Maharashtra Assembly : महाराष्ट्र सरकार ने शिक्षा और नौकरियों में मराठा समुदाय के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव रखा। मंगलवार को यह बिल विधानसभा में पास हो गया। सीएम एकनाथ शिंदे ने चर्चा के दौरान कहा कि मैंने शिवाजी की प्रतिमा के सामने कसम खाई थी कि मैं मराठाओं को आरक्षण दूंगा।
उन्होंने कहा कि ओबीसी आरक्षण को बिना हाथ लगाए मराठा को आरक्षण दिया जाएगा। शिंदे ने कहा कि मेरी कसम पूरी हुई। बता दें कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की तीसरी सरकार होगी, जो हाल के वर्षों में मराठाओं को आरक्षण देने का फैसला किया है।
भूख हड़ताल खत्म करने का आग्रह : मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने बताया कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे से अपनी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल खत्म करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार समुदाय को आरक्षण देने के बारे में सकारात्मक है। सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे फिलहाल मराठा आरक्षण को लेकर जालना जिले में अपने पैतृक स्थान पर 10 फरवरी से अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं।
बता दें कि मुख्यमंत्री कार्यालय ने कहा था कि रिपोर्ट से सरकार को आवश्यक आंकड़ों के साथ मराठा समुदाय के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने वाला कानून बनाने में मदद मिलेगी। इस व्यापक कवायद में लगभग 2.5 करोड़ परिवारों को शामिल किया गया। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुनील शुक्रे ने रिपोर्ट उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की उपस्थिति में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को सौंपी थी। सरकार ने शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की समुदाय की मांगों पर चर्चा के लिए 20 फरवरी को एक विशेष सत्र की भी घोषणा की है।
क्या है मराठा आरक्षण का इतिहास : 1980 में पहली बार मराठा आरक्षण की मांग मंडल आयोग के बाद शुरू हुई, जो मराठा नेता अन्ना साहब पाटिल ने शुरू की थी। आरक्षण और मराठा समुदाय की अन्य मांगों पर चर्चा के लिए आज महाराष्ट्र विधानमंडल का एक विशेष सत्र आयोजित किया गया है। फडणवीस सरकार ने 2018 में आरक्षण दिया था। तीन केंद्रीय और तीन राज्य आयोग ने मराठाओं को पिछड़ा मानने से इनकार कर दिया।
चव्हाण सरकार में 16% आरक्षण : साल 2014 में पृथ्वीराज चव्हाण सरकार ने मराठा समाज को 16% आरक्षण दिया, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था। साल 2016-17 कोपर्डी की घटना के बाद महाराष्ट्र फिर एक बार मराठा आरक्षण की मांग तेज हुई। इसके बाद 2018 में फडणवीस सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा होने के आधार और मराठा समाज को 16% आरक्षण देने का फैसला किया। लेकिन 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे घटाकर शिक्षा में 12% और नौकरी में 13 प्रतिशत कर दिया। हालांकि 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे कोई असाधारण स्थिति नहीं दिखती, जिसके आधार पर मराठा को पिछड़ा मानते हुए उन्हें आरक्षण दिया जाए।
अब महाराष्ट्र में आरक्षण की स्थिति
SC: 13 प्रतिशत, ST: 07 प्रतिशत, OBC: 19 प्रतिशत
विमुक्त और भटकी हुई जनजाति : 11 प्रतिशत
एसईबीसी (सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) : 02 फीसदी
कुल मिलाकर : 52 फीसदी
अगर इसमें ईडब्ल्यूएस (EWS) के 10 फीसदी को जोड़ दें, तो आंकड़ा 62 फीसदी हो जाता है। अब अगर आज मराठा समुदाय को 10% आरक्षण दिया जाता है, तो यह आंकड़ा 70 पार कर जाएगा। सवाल है कि क्या इस बार सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण टिक पाएगा।
Edited by Navin Rangiyal