नरोदा गाम नरसंहार मामले में पूर्व मंत्री माया कोडनानी समेत सभी आरोपी बरी

Webdunia
गुरुवार, 20 अप्रैल 2023 (18:02 IST)
Naroda Gam massacre case: गुजरात की एक विशेष अदालत ने बृहस्पतिवार को 2002 के नरोदा गाम दंगों के मामले में गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी सहित सभी 68 आरोपियों को बरी कर दिया। अहमदाबाद के नरोदा गाम में गोधरा मामले के बाद भड़के दंगों में मुस्लिम समुदाय के 11 सदस्यों के मारे जाने के दो दशक से अधिक समय बाद विशेष अदालत का यह फैसला आया है।
 
पीड़ितों के परिवारों के एक वकील ने जहां कहा कि फैसले को गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जाएगी क्योंकि उन्हें न्याय से वंचित किया गया है, वहीं घटना के 21 साल बाद आए फैसले को आरोपियों और उनके रिश्तेदारों ने सच की जीत करार दिया।
 
अहमदाबाद स्थित विशेष जांच दल (एसआईटी) मामलों के विशेष न्यायाधीश एसके बक्शी की अदालत ने नरोदा गाम दंगों से जुड़े इस बड़े मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया। गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में आग लगाए जाने के बाद राज्यभर में दंगे भड़क गए थे। इस मामले की जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने की थी।
 
संक्षिप्त फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद कुछ आरोपियों ने अदालत के बाहर ‘जय श्री राम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए। जिन आरोपियों को बरी किया गया उनमें गुजरात सरकार में मंत्री रहीं कोडनानी (67), विहिप के पूर्व नेता जयदीप पटेल और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी शामिल हैं।
 
इस मामले में कुल 86 आरोपी थे, जिनमें से 18 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई, जबकि एक को अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 169 के तहत साक्ष्य के आभाव में पहले आरोपमुक्त कर दिया था। सीआरपीसी की धारा 169 साक्ष्य की कमी होने पर अभियुक्त की रिहाई से संबंधित है। मामले में बरी किए गए सभी 67 आरोपी पहले से ही जमानत पर थे।
 
अहमदाबाद में अदालत परिसर के बाहर भावनात्मक दृश्य था क्योंकि फैसले के बारे में जानने के बाद अभियुक्तों के रिश्तेदार एक-दूसरे से गले मिलकर रोने लगे। कुछ आरोपियों ने अदालत परिसर से बाहर आने के बाद ‘जय श्री राम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए।
 
डबडबाई आंखों के साथ 49 वर्षीय आरोपी समीर पटेल ने फैसले के बाद कहा कि मैं भगवान और न्यायपालिका का आभारी हूं कि न्याय मिला। हम सभी बेगुनाह थे और यह आज अदालत के सामने साबित हो गया। पिछले 21 सालों में हमारे परिवार वालों ने बहुत कुछ सहा है। मैं बेहद खुश हूं और राहत महसूस कर रहा हूं कि फैसला हमारे पक्ष में आया।
 
बरी किए गए आरोपियों में से एक ने कहा कि विशेष अदालत के फैसले ने उन लोगों का पर्दाफाश कर दिया है जिन्होंने उसके जैसे निर्दोष लोगों को फंसाने की साजिश रची थी। उन्होंने कहा कि अदालत ने मामले के सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद अपना आदेश पारित किया है। सत्य की सदा विजय होती है, आज फिर साबित हो गया।
 
मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली तत्कालीन गुजरात सरकार में मंत्री रहीं कोडनानी ने बरी किए जाने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि आज सच में सच्चाई की जीत हुई है।
 
उल्लेखनीय है कि कोडनानी और बाबू पटेल ऊर्फ बाबू बजरंगी को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में गोधरा कांड के बाद 2002 में हुए दंगों से संबंधित मामले में एसआईटी अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उच्च न्यायालय ने बाद में कोडनानी को बरी कर दिया था, लेकिन मामले में बजरंगी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था। नरोदा पाटिया में 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी।
नरोदा ग्राम मामले में आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 143 (गैरकानूनी जमावड़ा), 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों से लैस होकर दंगा करना), 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत मुकदमा चल रहा था। 

एक दिन पहले गोधरा स्टेशन के पास भीड़ द्वारा साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 बोगी में आग लगाने के विरोध में बुलाए गए बंद के दौरान 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के नरोदा गाम क्षेत्र में दंगे भड़क गए थे। ट्रेन की बोगी में आगजनी की घटना में कम से कम 58 यात्री, जिनमें ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे, जलकर मर गए थे।
 
अमित शाह ने कोडनानी के पक्ष में दी थी गवाही : तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, जो अब केंद्रीय गृह मंत्री हैं, सितंबर 2017 में कोडनानी के बचाव पक्ष के गवाह के रूप में निचली अदालत में पेश हुए थे। भाजपा की पूर्व मंत्री कोडनानी ने अदालत से अनुरोध किया था कि शाह को यह साबित करने के लिए बुलाया जाए कि वह गुजरात विधानसभा में और बाद में अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल में मौजूद थीं, न कि नरोदा गाम में, जहां नरसंहार हुआ था।
 
छह अलग-अलग न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की है। 2010 में जब मुकदमा शुरू हुआ, तब एसएच वोरा पीठासीन न्यायाधीश थे। बाद में उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया। उनके बाद मामले को संभालने वाले विशेष न्यायाधीशों में ज्योत्सना याग्निक, केके भट्ट और पीबी. देसाई शामिल थे। ये सभी मुकदमे के लंबित रहने के दौरान सेवानिवृत्त हो गए।
 
अधिवक्ता चेतन शाह ने कहा कि विशेष न्यायाधीश एमके दवे अगले न्यायाधीश थे, लेकिन मुकदमे के समापन से पहले उनका तबादला कर दिया गया। नरोदा गाम में नरसंहार 2002 के उन 9 बड़े सांप्रदायिक दंगों के मामलों में से एक था, जिसकी जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त एसआईटी ने की थी और जिसकी सुनवाई विशेष अदालतों ने की थी।

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