जम्मू। अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के सारे अनुमान धरे रह गए हैं। जिस लोहे की ग्रिल का सहारा अमरनाथ के हिमलिंग को बचाने के लिए लिया गया था वह भी उसे पिघलने से इसलिए नहीं बचा पाई क्योंकि इस बार 18 फुट का हिमलिंग पिघल कर अब 4 फुट का रह गया है और ऐसा भक्तों की सांसों की गर्मी के कारण नहीं हुआ है बल्कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण है।
अब इससे निपटने का तरीका अत्याधुनिक तकनीक का ही सहारा है। पर श्राइन बोर्ड फिलहाल तकनीक का सहारा क्यों नहीं ले पा रहा है इसके पीछे के कारण स्पष्ट नहीं हैं।
श्राइन बोर्ड के अधिकारियों के बकौल, अमरनाथ की गुफा को तकनीक के सहारे ठंडा और वातानुकूलित बनाने की योजना श्राइन बोर्ड ने उसी समय तैयार की थी जब वह अस्तित्व में आया था। लेकिन यह मामला कई साल तक कोर्ट में रहा जिस कारण श्राइन बोर्ड इस संबंध में कोई कदम उठाने से परहेज कर रहा है।
वे कहते हैं कि गुफा को पूरी तरह से वातानुकूलित करने, आइस स्केटिंग रिंक तकनीक का इस्तेमाल करने की योजना है। इसी के तहत कई अन्य प्रस्तावों पर भी विचार किया गया था जिनमें एयर कर्टन, रेडियंटस कूलिंग पैनलस और फ्रोजन ब्राइन टे का इस्तेमाल भी था।
उनका कहना था कि इनमें से कई तकनीकों का सफल प्रयोग मुंबई, श्रीनगर तथा गुलमर्ग में कर लिया गया था लेकिन अमरनाथ गुफा में इनका प्रयोग करने से पूर्व ही माननीय कोर्ट ने इन सब पर रोक उस समय कुछ साल पहले लगा दी थी जब गुफा में कथित तौर पर कृत्रिम हिमलिंग बनाने का मामला उठा था।
हालांकि वे कहते थे कि श्राइन बोर्ड के अधिकारियों को रेडियंट कूलिंग पेनलस का विकल्प बहुत ही जायज लगा था लेकिन हाईकोर्ट द्वारा इस पर रोक लगा दिए जाने के कारण मामला अंतिम चरण में जाकर रूक गया था।
कुछ उन उन्मादी श्रद्धालुओं के हाथों से, जो यात्रा शुरू होने से पहले ही गुफा तक पहुंच जाते रहे हैं, हिमलिंग को बचाने की खातिर बोर्ड ने कुछ उपाय जरूर कर दिए थे जो अतीत में भक्तों की भीड़ के आगे टिक नहीं पाए थे और इस बार भक्तों की सांसों की गर्मी के स्थान पर मौसम की गर्मी ने हिमलिंग को पिघला दिया है।
वैसे यह कोई पहली बार नहीं है कि हिमलिंग तेजी से पिघला हो बल्कि पिछले कई सालों से यह देखने को मिल रहा है हिमलिंग यात्रा शुरू होने के कुछ ही दिनों के उपरांत पूरी तरह से पिघल जाता रहा है। हालांकि तब इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग के साथ साथ उन लाखों भक्तों की सांसें भी जिम्मेदार होती थीं जो दर्शनार्थ गुफा तक पहुंचते थे।
विशेषज्ञों के मुताबिक अमरनाथ ग्लेशियरों से घिरा है। ऐसे में ज्यादा लोगों के वहां पहुंचने से तापमान के बढ़ने की आशंका होगी। इससे ग्लेशियर जल्दी पिघलेंगे। साल 2016 में भी भक्तों की ज्यादा भीड़ के अमरनाथ पहुंचने से हिमलिंग तेजी से पिघल गया था।
आंकड़ों के मुताबिक उस वर्ष यात्रा के महज 10 दिन में ही हिमलिंग पिघलकर डेढ़ फीट के रह गए थे। तब तक महज 40 हजार भक्तों ने ही दर्शन किए थे। साल 2016 में प्राकृतिक बर्फ से बनने वाला हिमलिंग 10 फीट का था। जो अमरनाथ यात्रा के शुरूआती सप्ताह में ही आधे से ज्यादा पिघल गया था। ऐसे में यात्रा के शेष 15 दिनों में दर्शन करने वाले श्रद्धालु हिमलिंग के साक्षात दर्शन नहीं कर सके थे।
साल 2013 में भी अमरनाथ यात्रा के दौरान हिमलिंग की ऊंचाई कम थी। उस वर्ष हिमलिंग महज 14 फुट के थे। लगातार बढ़ते तापमान के चलते वे अमरनाथ यात्रा के पूरे होने से पहले ही अंतरध्यान हो गए थे।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार साल 2013 में हिमलिंग के तेजी से पिघलने का कारण तापमान में वृद्धि था। उस वक्त पारा 34 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया था।
2018 में भी बाबा बर्फानी के तेजी से पिघलने का सिलसिला जारी था। 28 जून से शुरू हुई 60 दिवसीय इस यात्रा में एक महीने बीतने पर करीब दो लाख 30 हजार यात्रियों ने दर्शन किए थे। मगर इसके बाद दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं का बाबा बर्फानी के साक्षात दर्शन नहीं हुए। बाबा दर्शन देने से पहले ही अंतरध्यान हो गए थे।