दिल्ली में केजरीवाल का 'लोकतिलक'

वृजेन्द्रसिंह झाला
पिछली बार दिल्ली में 49 दिन की सरकार चलाने के बाद इस्तीफा देने वाले अरविन्द केजरीवाल का एक बार फिर राजधानी में 'लोकतिलक' हो ही गया। जनता ने ऐतिहासिक बहुमत देकर उनका 'अभिषेक' तो किया है, लेकिन इसके साथ ही जिम्मेदारी का बड़ा बोझ भी उनके कंधों पर डाल दिया है। 
 
यह जिम्मेदारी इसलिए भी बड़ी हो जाती है क्योंकि केन्द्र में उन नरेन्द्र मोदी की सरकार है, जो पहले गुजरात, फिर लोकसभा चुनाव के बाद लगातार चुनावी सफलताएं हासिल करते आ रहे थे। दिल्ली में आकर उनका विजय रथ रुक गया। केजरीवाल को दिल्ली के लोगों ने 70 में से 67 जिताकर राजनीतिक विश्लेषकों भी चौंका दिया था क्योंकि किसी ने भी इस जीत की कल्पना नहीं की थी। कांग्रेस तो चूंकि शुरू से ही मुकाबले में नजर नहीं आ रही थी, लेकिन भाजपा को इस करारी हार के सदमे से संभलने में लंबा वक्त लगेगा। 
पिछली बार 49 दिन में सत्ता छोड़ने वाले केजरीवाल को लोगों ने भगोड़ा समेत कई विशेषणों से नवाजा था, लेकिन मु्‍ख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जिस तरह से सधा हुआ भाषण उन्होंने दिया है, उससे लगता है कि पिछली गलतियों को वे कतई दोहराना नहीं चाहते। उन्होंने अपने सहयोगियों और कार्यकर्ताओं को भी नसीहत भी दी है कि वे अहंकार न करें। आम आदमी पार्टी की लोकसभा चुनाव में करारी हार को उन्होंने पार्टी का अहंकार ही बताया। उन्होंने कहा कि ईश्वर ने हमें अहंकार की ही सजा दी थी। 
 
दिल्ली के आठवें मुख्‍यमंत्री बने केजरीवाल ने यह भी संकेत दिए कि वे सभी दलों के साथ तालमेल कर दिल्ली की सत्ता चलाएंगे। एक ओर जहां उन्होंने किरण बेदी को अपनी बड़ी बहन बताते हुए उनसे मार्गदर्शन लेने की बात कही तो दूसरी ओर कांग्रेस नेता अजय माकन के अनुभवों का लाभ लेने की बात भी कही। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जरूर उन्होंने अपना पुराना ही राग अलापा है। उन्होंने कहा है कि कोई रिश्वत मांगता है तो मना न करें और उसकी रिकॉर्डिंग कर सरकार को सौंपें। 
 
दिल्ली में दूसरी बार शपथ लेने वाले केजरीवाल ने रामलीला मैदान में मौजूद लोगों को आश्वस्त किया है वे दिल्ली की जनता के लिए 24 घंटे काम करेंगे। उन्होंने यहां खुद को एक आम आदमी के रूप में ही प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि मैंने मुख्‍यमंत्री पद की शपथ नहीं ली है, बल्कि दिल्ली की जनता मुख्‍यमंत्री बनी है। लगे हाथ उन्होंने मीडिया को भी बता दिया वह काम के लिए समय सीमा नहीं बनाए क्योंकि दिल्ली की जनता ने पांच साल तक काम करने का जनादेश दिया है। हालांकि यह तो वक्त ही बताएगा कि अरविन्द दिल्ली की जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं। अभी तो बस उनकी यह शुरुआत है।
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