मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भाजपा की हार के 10 बड़े कारण

Webdunia
मंगलवार, 11 दिसंबर 2018 (23:35 IST)
नई दिल्ली। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदीभाषी बेल्ट में जनता द्वारा भारतीय जनता पार्टी को विधासभा चुनाव में नकारना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए एक तरह से खतरे की घंटी है, खासकर अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव को लेकर...मध्यप्रदेश में जहां कांग्रेस और भाजपा में कांटा पकड़ टक्कर हुई तो छत्तीसगढ़ में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। राजस्थान में भी जनता ने भाजपा की रानी को सबक सिखाया और गद्दी से नीचे उतार फेंका। आइए जानते हैं भाजपा की तीन राज्यों हार के प्रमुख कारण... 
 
 
1. सत्ता विरोधी लहर : मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में 15 सालों से भाजपा की सत्ता थी और इस बार सत्ता विरोधी लहर का ही परिणाम है, जिसका खामियाजा भाजपा को भुगताना पड़ा है। राजस्थान में भी वसुंधरा राजे को सत्ता विरो‍धी लहर के कारण जनता ने राजगद्दी से उतार दिया। तीनों ही जगह की सरकार का लोगों पर नकारात्मक असर पड़ा। ऐसा लगता है लोग भाजपा सरकार से ऊब गए थे। एंटीइनकमबेंसी का सीधा लाभ कांग्रेस को मिला। 
 
2. नोटबंदी, जीएसटी और एट्रोसिटी एक्ट : मोदी सरकार द्वारा लगाई नोटबंदी के लोगों को सकारात्मक परिणाम नहीं दिखे। केंद्र की सरकार नोटबंदी से जितना फायदा लेना चाहती थी वह नहीं उठा पाई। बिना तैयारी के नोटबंदी करने से आमजन परेशान हुआ। 
 
नोटबंदी के बाद जीएसटी ने व्यापारी वर्ग को नाराज किया। एट्रोसिटी एक्ट के चलते सवर्ण और पिछड़े भाजपा से नाराज हो गए। एट्रोसिटी एक्ट को लेकर प्रदेश में मंत्रियों और भाजपा नेताओं को लोगों ने काले झंडे दिखाए और विरोध किया। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के 'माइ का लाल' वाले भाषण को भी कांग्रेस ने खूब भुनाया। एट्रोसिटी एक्ट लेकर सोशल मीडिया पर भी खूब विरोध हुआ। 
 
3 अति-आत्मविश्वास : भाजपा की हार का एक हार का कारण यह भी रहा कि उसके नेताओं का  अति-आत्मविश्वास उसे ले डूबा। सत्ता के मद में डूबे भाजपाई नेताओं को पूरा विश्वास था कि वे अपनी-अपनी सरकारें बचा लेने में कामयाब होंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जनता ने उन्हें करारा सबक सिखाया। 
 
4. बागियों ने बिगाड़ा खेल : भाजपा की हार का एक प्रमुख कारण उसके बागी भी रहे। मध्यप्रदेश में रामकृष्ण कुसमारिया, सरताजसिंह जैसे बागियों ने पार्टी का खेल बिगाड़ा। इन्हें टिकट न मिलने से इनमें से कई नेताओं ने या तो कांग्रेस का दामन पकड़ लिया या फिर निर्दलीय मैदान में उतरकर भाजपा के वोटों को सैंध लगाई।
 
बागियों की वजह से भी राजस्थान में भाजपा का खेल बिगड़ गया। वरिष्ठ नेता घनश्याम तिबाड़ी ने पार्टी से अलग होकर भारत वाहिनी पार्टी का गठन किया, विधायक ज्ञानदेव आहूजा पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़े, पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंतसिंह के बेटे चुनाव से ठीक पहले भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए।
 
5. कांग्रेस की एकजुटता : गुजरात में अच्छा प्रदर्शन और कर्नाटक में जीत ने कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का आत्म विश्वास बढ़ाया, जिससे उन्होंने एकजुट होकर चुनाव लड़ा। इसी एकजुटता के कारण कांग्रेस राजस्थान में 5 साल के वनवास के बाद दोबारा सत्ता पर काबिज होने जा रही है। सचिन पायलट जैसे युवा नेता का प्रदेश अध्यक्ष होने के बाद मैदानी मेहनत करके बूथ स्तर पर कांग्रेस में नई जान फूंकना भी भाजपा की हार का एक बड़ा कारण बना। छत्तीसढ़ और मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की एकजुटता के कारण वह अपना दबदबा बनाने में सफल रही।
 
6. कार्यकर्ताओं की नाराजी : कई जगह भाजपा को कार्यकर्ताओं की नाराजी झेलनी पड़ी। कई सीटों पर मेहनती नेताओं को छोड़कर कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए नेताओं को टिकट दे दिया गया। इससे कई सीटों पर  कार्यकर्ताओं ने चुनाव में पूरे मन से काम नहीं किया। इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। 
 
7. राहुल गांधी का आक्रामक प्रचार : तीनों प्रदेशों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आक्रामक प्रचार किया। कांग्रेस की जनसभाओं की तुलना की जाए तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी से ज्यादा मेहनत की है। उन्होंने प्रदेश की शिवराज सरकार के साथ ही केंद्र की मोदी सरकार पर भी निशाना साधा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मध्यप्रदेश में 10 सभाएं कीं तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 21 जनसभाएं कर कांग्रेस का प्रचार किया।
 
8. मोदी का टूटता तिलस्म : नरेन्द्र मोदी का तिलस्म भी तीनों राज्यों में टूटता नजर आया। मोदी की सभा में भले ही हजारों लोग जमा हुए हो लेकिन तीन राज्यों के परिणाम बता रहे है कि उनकी लोकप्रियता अब पहले जैसी नहीं रही। जुमलों से वे आमसभा में भले ही तालियां बटोरते हों लेकिन चुनाव परिणामों से यह साफ हो गया है कि जनता पर उनका जादू अब कम होता जा रहा है।
 
9  टिकट वितरण को लेकर असंतोष : कांग्रेस आलाकमान ने जीत-हार के समीकरण को देखते हुए उम्मीदवारों को टिकट दिया। इतना ही नहीं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने अपनी नर्मदा यात्रा के दौरान हर सीट पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद स्थापित किया और अपनी इस जमीनी रिपोर्ट को आलाकमान को बताया। यही रिपोर्ट कहीं न कहीं उम्मीदवारों के चयन का आधार भी बनी।
 
10. किसानों की नाराजी : मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार से किसान नाराज थे। विशेषकर मंदसौर में किसान किसान आंदोलन का भाजपा को नकारात्मक नुकसान उठाना पड़ा। उल्लखनीय है कि यहां पर फसल मूल्य बढ़ोतरी के लिए प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस ने गोली चलाई थी और यहीं से शिवराज सरकार की छवि किसान विरोधी की बन गई थी।

मंदसौर के बाद यह आंदोलन प्रदेश के कई जिलों में फैला था। किसानों प्रदेश सरकार से इस नाराजी कांग्रेस ने इसे अपने पक्ष में भुनाया। कांग्रेस के संकल्प पत्र में किसानों के कर्ज माफ करने का उल्लेख किया था, जिसका उसे फायदा भी मिला।

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