न्याय की जीत हुई है, 22 साल लंबी प्रक्रिया समाप्त : अटार्नी जनरल

Webdunia
गुरुवार, 30 जुलाई 2015 (21:22 IST)
नई दिल्ली। याकूब मेमन को आज फांसी दिए जाने से कुछ ही समय पहले आए उच्चतम न्यायालय के फैसले पर अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने आज कहा, ‘उन परिवारों के लिए न्याय की जीत हुई, जिनके परिजनों ने 1993 के मुंबई बम धमाकों में जान गंवाई थी।’ 
रोहतगी ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि लंबी प्रक्रिया समाप्त हुई है। दोषी को 22 साल अवसर दिया गया था मेमन की पुनर्विचार याचिका और दया याचिका खारिज की गई थी। उसे खुली अदालत में उसकी पुनर्विचार याचिका पर दोबारा सुनवाई का अधिकार भी मिला।’ 
 

मेमन को दिए गए अवसरों और सभी कानूनी उपायों को उसके आजमाने को स्पष्ट करते हुए रोहतगी ने कहा, ‘एक सुधारात्मक याचिका दायर की गई थी और उसे इस साल 21 जुलाई को खारिज कर दिया गया। एक नई रिट याचिका पर 27 जुलाई से कल तक सुनवाई हुई। महाराष्ट्र के राज्यपाल और राष्ट्रपति ने भी फिर से उसकी दया याचिकाएं खारिज कर दीं। 
 
उसके बाद उच्चतम न्यायालय में मध्य रात्रि में एक नई याचिका दायर की गई और आखिरकार यह इस रूप में परिणत हुआ।’ ऐतिहासिक सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय की सराहना करते हुए रोहतगी ने कहा, ‘मैं खुश हूं कि उच्चतम न्यायालय ने इस चुनौती का सामना किया। उसने मेमन जैसे कैदी की याचिका पर सुनवाई की, जो 257 लोगों की हत्या में शामिल था। यह अब भारत की सभी अदालतों के लिए रोल मॉडल है और न्याय का प्रकाशस्तंभ है।’

रोहतगी ने कहा, ‘शीर्ष अदालत के प्रति सम्मान काफी बढ़ गया है। एक अप्रत्याशित सुनवाई के तहत उसने तड़के तीन बजे सुनवाई की क्योंकि फांसी सुबह सात बजे दी जानी थी। इस तथ्य के बावजूद उसने सुनवाई की कि पीठ ने दोषी की याचिका पर कल सुबह साढ़े 10 बजे से शाम साढ़े चार बजे तक सुनवाई करते हुए दोनों पक्षों की बातों को सुना।’ 
 
इसी तरह की राय जाहिर करते हुए पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने कहा, ‘मुझे बेहद गर्व है कि हमारे पास ऐसी न्यायपालिका है, जो लोगों के अधिकारों के प्रति इतनी संवेदनशील है।’ 
 
मौत की सजा का सामना कर रहे सभी दोषी अब अपनी फांसी से कुछ घंटे पहले पूरी रात सुनवाई की मांग कर सकते हैं, इस चिंता पर प्रतिक्रिया जताते हुए मौजूदा और पूर्व दोनों अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह ऐसा मामला था जिसमें उच्चतम न्यायालय के इस तरह के कदम की जरूरत थी और सभी मामले अलग हैं।
 
रोहतगी ने कहा, ‘अप्रत्याशित सुनवाई पहले भी हुई हैं। उच्चतम न्यायालय भेदभाव नहीं करता है। उसने कानून के गौरव को बहाल रखा है। दोषी की ताजा दया याचिकाओं की वजह से अंतिम समय पर सुनवाई को उच्चतम न्यायालय राजी हुआ। वह याचिका कल दायर की गई थी।’ 
 
उन्होंने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में दूसरा और कोई रास्ता नहीं था।’ सोराबजी ने कहा, ‘यह एक विशेष मामला था।’ यह सभी मामलों में मध्य रात्रि में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के प्रचलन को बढ़ावा नहीं देगा। (भाषा)
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