बारामूला (जम्मू कश्मीर)। सेना ने कहा है कि कट्टरता के रास्ते से कश्मीर घाटी की युवा आबादी के नौजवानों को दूर करने के लिए नागरिक-सैन्य कार्यक्रम 'सही रास्ता' में हिस्सा लेने के बाद उनके रवैए में एक स्पष्ट बदलाव आया है। एक साल पहले पहल की शुरुआत के बाद से अब तक 130 युवाओं ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया है।
एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने कहा कि सेना और जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य आतंकवाद और मौत के विकल्प के तौर पर शांति और समृद्धि के लिए कश्मीरियत के दृष्टिकोण के जरिए कमजोर युवाओं की चेतना को संबोधित करना और हिंसा के चक्र को तोड़ना है।
उन्होंने कहा, एक साल पहले पहल की शुरुआत के बाद से अब तक 130 युवाओं ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया है, और मनोवैज्ञानिक प्रभाव तथा प्रतिभागियों द्वारा अपनाए गए सही तरीके, दोनों के संदर्भ में बदलाव देखा गया है, केवल एक बहुत छोटे हिस्से में ही कोई परिवर्तन नहीं देखा गया।
सही रास्ता पहल के तहत उन युवाओं की पहचान की जाती है, जो या तो कट्टरपंथी हो गए हैं या उस रास्ते पर जा रहे हैं। उन्हें 21 दिनों के आवासीय कार्यक्रम के माध्यम से मुख्यधारा में जोड़ा जाता है, जिसके दौरान विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ, इसके अलावा, सेना के कई वरिष्ठ अधिकारी उनसे बातचीत करते हैं।
सूत्रों ने कहा कि यह पहल घाटी में आतंकवाद का मुकाबला करने में सेना की दोतरफा रणनीति का भी हिस्सा है। पहले, सैन्य अभियानों के माध्यम से आतंकवादियों का सफाया किया जाता था लेकिन अब इससे पहले कि कमजोर युवाओं को लालच दिया जाए और नापाक कृत्य करने के लिए कट्टरपंथी बनाया जाए, यह कदम उनके बीच कट्टरपंथ के मूल कारणों पर प्रहार करने वाली है।
पहल के अंतर्गत, 16-25 वर्ष की आयु के युवाओं के छह बैच में से अधिकतर उत्तरी कश्मीर से हैं, वे सभी सही रास्ता कार्यक्रम से गुजरे हैं, जिसे सेना प्रतिभागियों के लिए सीखने के मजेदार अनुभव के रूप में वर्णित करती है।
अधिकारी ने कहा, हम उन्हें आवास, भोजन प्रदान करते हैं और उनके स्वास्थ्य और कल्याण का ध्यान रखते हैं तथा बातचीत के अलावा पिकनिक एवं अन्य मनोरंजक गतिविधियों के माध्यम से उनके विचारों पर सवाल किए बिना उन्हें सही रास्ता दिखाने की कोशिश करते हैं, ताकि वे खुद जान सकें कि क्या सही है और क्या गलत है।
सेना के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस कार्यक्रम के लिए एक बहुत ही अनुभवी मनोवैज्ञानिक भी शामिल हैं, इसके अलावा शिक्षा, खेल और उद्योग जैसे विभिन्न क्षेत्रों के कई विशेषज्ञ इन युवाओं से मिलने जाते हैं और कार्यक्रम के दौरान उनसे बातचीत करते हैं। उन्होंने कहा, अब इन सभी युवाओं में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है, हमें उम्मीद है कि इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाएगा।
श्रीनगर में चिनार कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एडीएस औजला ने पूर्व में कहा था कि भोले-भाले युवाओं को कट्टरता के रास्ते से दूर करने के लिए सही रास्ता कार्यक्रम चलाया जा रहा है और सेना उस दिशा में केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन के साथ मिलकर सभी प्रयास कर रही है।
श्रीनगर स्थित चिनार कोर कश्मीर घाटी में नियंत्रण रेखा (एलओसी) की रखवाली के लिए जिम्मेदार है। सूत्रों ने कहा कि इन युवाओं की पहचान जम्मू-कश्मीर पुलिस, सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और अन्य लोगों से मिली जानकारी के आधार पर की जाती है और उनके माता-पिता या परिवार के अभिभावकों की सहमति के बाद वे कार्यक्रम में शामिल होते हैं तथा इसके अंत में उन्हें सुरक्षित रूप से अपने घरों के लिए वापस भेज दिया जाता है।
श्रीनगर स्थित काउंटर इंसर्जेंसी फोर्स (किलो) के एक शीर्ष सैन्य अधिकारी ने कहा कि सलाहकारों में नेता, मौलवी, पुलिस अधिकारी और अन्य शामिल हैं, जो इन लड़कों के साथ संवाद करते हैं। उन्होंने कहा, और ये कट्टरपंथी लड़के एक ऐसे रास्ते पर जा रहे होते हैं, जो उन्हें एक आतंकवादी समूह में भर्ती होने की ओर ले जा सकता है।
कार्यक्रम के लगभग 21 दिनों के बाद उनके दृष्टिकोण में प्रत्यक्ष परिवर्तन दिखाई देता है, वह है चीजों को देखने का नजरिया। और अब तक, हमारे यहां ऐसी घटनाएं नहीं हुई हैं जहां कार्यक्रम के बाद ये युवा गलत रास्ते पर लौटे हों। इसलिए, यह एक अच्छी उपलब्धि है।
पहल के कार्यक्रम प्रबंधक मेहराज मलिक ने कहा कि कि कट्टर बनाया जाना एक धीमी और क्रमिक प्रक्रिया है और सोशल मीडिया आज इसमें एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। मलिक ने कहा, जब हमने प्रतिभागियों से पूछा कि उन्होंने भटकाव का रास्ता क्यों चुना, तो उन्होंने हमें बताया कि यह अक्सर धर्म के कारण होता है।
आतंकवादियों, नापाक मंसूबे वालों और ओजीडब्ल्यू (आतंकियों के मददगार) का गठजोड़ ऐसे युवाओं को कट्टरपंथ के लिए प्रेरित करता है जो या तो बहुत कमजोर होते हैं या जीवन में निराश होते हैं। कट्टरपंथी बनाने के लिए धर्म की गलत व्याख्या की जाती है या उनमें बदले की भावना पैदा की जाती है।
उन्होंने कहा, कार्यक्रम के दौरान, हम उनसे पूछते हैं कि उन्हें क्या गलत लगता है और वे किस बारे में गलत महसूस करते हैं, और फिर उनकी गलत धारणाओं या धर्म की गलत व्याख्याओं के बारे में समझाकर उन्हें सही रास्ता दिखाते हैं। मलिक ने कहा कि मुख्य रूप से बारामूला में हैदरबेग क्षेत्र में सेना अड्डे पर यह कार्यक्रम आयोजित होता है।
मलिक ने कहा कि कार्यक्रम के अंतिम दिन एक तरह का सम्मान समारोह होता है, जहां सेना के अधिकारी आते हैं और इन युवाओं को सुरक्षित उनके घर वापस भेज दिया जाता है। उन्होंने कहा, आखिरी दिन, जब उनके माता-पिता या अभिभावक सैनिकों को देखते हैं, तो यह सुरक्षाबलों की मौजूदगी से घाटी में सुरक्षा के माहौल के बारे में परिवार के सदस्यों के मन में भी विश्वास पैदा करता है।(भाषा)
Edited by : Chetan Gour