जानिए कब शुरू हो रही है केदारनाथ समेत चार धाम की यात्रा

WD Feature Desk
गुरुवार, 20 मार्च 2025 (16:51 IST)
Chardham Yatra 2025: कहा जाता है कि पुण्य फलों की प्राप्ति के लिए जीवन में एक बार चार धाम यात्रा जरूर करनी चाहिए। इस यात्रा में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के दर्शन किए जाते हैं। इस साल चार धाम यात्रा (Chardham Yatra 2025) अक्षय तृतीया यानी 30 अप्रैल 2025 से शुरू होने जा रही है। इस दिन गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के दर्शन हो सकेंगे। वहीं बद्रीनाथ के कपाट 04 मई 2025 को खुलेंगे और केदारनाथ धाम के कपट 02 मई 2025 को सुबह 07 बजे खुलेंगे।

क्या है चार धाम यात्रा का महत्व (Char Dham Yatra Significance)
शास्त्रों के अनुसार चारधाम यात्रा करने से भक्त के पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार चार धाम की यात्रा करने वाले व्यक्ति को दोबारा मृत्यु लोक में जन्म नहीं लेना पड़ता और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि यह यात्रा व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्ग पर भी बढ़ने में मदद करती है।

यमुनोत्री

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। यमुना नदी को भारत की सबसे पवित्र नदियों में उच्च स्थान प्राप्त है। यमुना नदी को पुराणों में भगवान सूर्य की पुत्री और यम देव की बहन भी बताया जाता है। यमुनोत्री का मुख्य आकर्षण देवी यमुना का मंदिर और जानकीचट्टी में पवित्र तापीय झरना है।

गंगोत्री

उत्तराखंड के गढ़वाल में गंगोत्री हिमनद से निकलती है।गंगोत्री, गंगा नदी का उद्गम स्थल है जिसे चारधाम यात्रा का दूसरा पड़ाव माना जाता है। गंगा नदी को कलयुग का तीर्थ भी माना जाता है। मन्यता है कि गंगोत्री धाम का दर्शन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

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केदारनाथ (Kedarnath)

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है केदारनाथ मंदिर। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था। कालांतर में मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा करवाया था।
 शिवपुराण के अनुसार इस स्थान पर विष्णु भगवान के अवतार नर-नारायण पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव का रोजाना पूजा किया करते थे, तब शिव जी ने उन्हें वरदान दिया था कि वह यहीं विराजमान होंगे।

बद्रीनाथ (Badrinath)

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित चार धामों में से एक है बद्रीनाथ धाम जो भगवान विष्णु को समर्पित है।  मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु 6 महीने विश्राम करते हैं। इस मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी
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