जलवायु परिवर्तन की मार घटा सकती है गेहूं और चावल की पैदावार

Webdunia
शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021 (12:31 IST)
नई दिल्ली, जलवायु परिवर्तन का असर फसल उत्पादन पर भी पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को देखते हुए कहा जा रहा है कि भारत में वर्षा-सिंचित चावल की पैदावार में वर्ष 2050 तक 2.5 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है।

जबकि, सिंचित चावल की पैदावार में वर्ष 2050 तक 07 प्रतिशत और वर्ष 2080 तक 10 प्रतिशत की कमी होने का अनुमान है। गेहूं एवं मक्के की फसल पर भी जलवायु परिवर्तन का विपरीत असर पड़ रहा है।

वर्ष 2100 में गेहूं की पैदावार में 06 से 25 प्रतिशत और मक्का की पैदावार में 18 से 23 प्रतिशत की कमी हो सकती है। हालांकि, जलवायु के करवट बदलने का असर चने की पैदावार पर सकारात्मक रूप से पड़ सकता है।
भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर केंद्रित राष्ट्रीय जलवायु अनुकूल कृषि में नवप्रवर्तन (एनआईसीआरए) के अध्ययन का हवाला देते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संसद में यह जानकारी दी है।

एनआईसीआरए के अध्ययन में एक आश्चर्यजनक तथ्य यह उभरकर आया है कि जलवायु परिवर्तन के बावजूद चने की उत्पादकता में 23-54 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। कृषि मंत्री ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले तीन दशकों के दौरान राष्ट्रीय औसत तापमान और अत्यधिक वर्षा की आवृत्ति में वृद्धि स्पष्ट रूप से देखने को मिली है। उन्होंने कहा कि इस तरह का मौसमी बदलाव अलग-अलग वर्षों में प्रमुख फसलों के उत्पादन में उतार-चढ़ाव का कारण बनता है।

कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के अध्ययन के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा वर्ष 2011 में एनआईसीआरए परियोजना की शुरुआत की गई थी। इस परियोजना का मुख्‍य उद्देश्‍य अनुकूलन एवं प्रशमन प्रक्रियाओं के विकास के साथ-साथ कृषि में होने वाले नुकसान को कम करके भारतीय कृषि को बढ़ावा देना है।

कृषि मंत्री ने बताया है कि आईसीएआर द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रति भारतीय कृषि की संवेदनशीलता का मूल्यांकन किया गया है। ऐसा एक मूल्यांकन भारत के 573 ग्रामीण जिलों (अंडमान एवं निकोबार तथा लक्षद्वीप को छोड़कर) के लिए किया गया है। इनमें से 109 जिलों को 'बहुत अधिक जोखिम वाले जिलों' की श्रेणी में रखा गया है। जबकि, 201 जिलों को 'जोखिम-ग्रस्त' श्रेणी में रखा गया है।

एकीकृत सिमुलेश मॉडलिंग अध्ययन का हवाला देते हुए कृषि मंत्री ने जानकारी दी है कि देश के 256 जिलों में वर्ष 2049 तक अधिकतम तापमान में 1-1.3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। जबकि, 157 जिलों में अधिकतम तापमान 1.3-1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है। तापमान बढ़ोतरी की रेंज 199 जिलों में 1.3 डिग्री सेल्सियस से अधिक और 89 जिलों में 1.6 डिग्री सेल्सियस से कम रहने का अनुमान लगाया गया है। अध्ययनकर्ताओं का स्पष्ट तौर पर कहना है कि ताप दबाव (हीट स्ट्रेस) का असर इन जिलों में गेहूं की खेती पर पड़ सकता है।

जलवायु परिवर्तन के दौरान खाद्यान्न उत्पादन बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक तापमान एवं सूखा प्रतिरोधी फसल किस्मों का विकास कर रहे हैं। एनआईसीआरए परियोजना के अंतर्गत उन्नत वंशक्रम के गेहूं जनन-द्रव्य (जर्म-प्लाज्म) और अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में उगाए जाने वाली गेहूं की किस्मों की सूखा एवं ताप सहन करने की क्षमता का परीक्षण किया जा रहा है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा उच्च पैदावार देने वाली ऐसी फसल किस्में जारी की गई हैं, जो अधिक ताप और सूखा सहन कर सकती हैं। इनमें, एचडी-2967 और एचडी-3086 जैसी किस्में शामिल हैं, जिनकी देश के उत्तर-पश्चिमी एवं उत्तरी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खेती हो रही है। (इंडिया साइंस वायर)

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Lok Sabha Chunav : रायबरेली में प्रियंका गांधी संभाल रहीं भाई राहुल का चुनावी कैंपेन, PM मोदी को लेकर लगाया यह आरोप

Sandeshkhali Case : बैरकपुर में प्रधानमंत्री मोदी का दावा, बोले- प्रताड़ित महिलाओं को धमका रहे TMC के गुंडे

केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव में दी 10 गारंटी, कहा फेल हुआ भाजपा का प्लान

Gold ETF से निवेशकों ने अप्रैल में निकाले 396 करोड़, जानिए क्‍या है कारण...

FPI ने मई में की 17000 करोड़ से ज्‍यादा की निकासी, चुनाव काल में क्‍या है विदेशी निवेशकों का रुख

पाक अधिकृत कश्मीर में चौथे दिन भी हड़ताल जारी, स्थिति तनावपूर्ण

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की केजरीवाल को सीएम पद से हटाने वाली याचिका

Lok Sabha Elections LIVE: पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा, जम्मू कश्मीर में सबसे कम मतदान

पीएम मोदी आज शाम वाराणसी में, करेंगे 6 किलोमीटर लंबा रोड शो

CBSE 10th Result 2024 : सीबीएसई 10वीं बोर्ड का परीक्षा परिणाम घोषित, 93.6% विद्यार्थी उत्तीर्ण

अगला लेख