सेना में भर्ती के लिए भारत सरकार की 'अग्निपथ' योजना के विरोध में देश के 'अग्निवीर' सड़कों पर उतर आए हैं। बिहार और हरियाणा समेत आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों को युवाओं ने हकीकत में अग्निपथ बना दिया है। बिहार में ट्रेन जला दी गई, वाहन जला दिए गए। सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने की उम्मीद पाले युवा देश के संसाधनों को ही नुकसान पहुंचाने में लग गए हैं। आखिर सरकार की इस योजना से युवा क्यों नाराज हैं? भारतीय सेना पर इसका सकारात्मक असर होगा या फिर नकारात्मक? वेबदुनिया से बातचीत में ऐसे ही कई सवालों के जवाब दिए हैं कर्नल निखिल दीवानजी ने।
सेना में अधिकारियों की भर्ती के लिए युवाओं को ट्रेंड करने वाले कर्नल निखिल कहते हैं कि दरअसल, सरकार को सेना की पेंशन भारी पड़ रही है। 2004 में अर्द्धसैनिक बलों समेत सेंट्रल गवर्नमेंट की सेवाओं में पेंशन खत्म की जा चुकी है। पेंशन का प्रावधान अब सिर्फ सेना में ही है और रिटायरमेंट के बाद सैनिकों को सरकार लंबे समय तक पेंशन देती है, जो शायद उसे भारी लग रही है। इसीलिए इस स्कीम को लाया गया है। भर्ती किए जाने वाले 75 फीसदी 'अग्निवीरों' को 4 साल बाद घर भेज दिया जाएगा, ऐसे में सरकार पर पेंशन के बोझ से बच जाएगी।
हालांकि कर्नल दीवानजी कहते हैं कि सरकार डिफेंस में काम कर रहे सिविलियंस की पेंशन खत्म कर सकती है, लेकिन सेना से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। वे कहते हैं कि इन सैनिकों का मासिक पैकेज 60-70 हजार (सभी सुविधाओं और भत्तों समेत) होगा, इन्हें सेना से बाहर होने के बाद कौन इतना वेतन देगा? क्या ये सैनिक भी कम वेतन पर काम करने को तैयार होंगे? ऐसी एक नहीं कई समस्याएं हैं।
पहले पुनर्वास के बारे में सोचना था : कर्नल निखिल कहते हैं कि इस योजना को लागू करने से पहले सरकार को उनके पुनर्वास के बारे में सोचना था। 4 साल बाद उन्हें कहां काम मिलेगा, उनका किस तरह पुनर्वास होगा, इसकी फिलहाल कोई ठोस योजना दिखाई नहीं दे रही है। क्या गारंटी है कि अभी 'अग्निवीरों' को नौकरी देने के दावे करने वाली सरकारें भविष्य में अपनी बात पर कायम रहेंगी। क्योंकि इसको अभी कोई भी आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ है।
ऐसे में यह चिंता न सिर्फ उन युवाओं की है बल्कि उनके परिजनों की भी है। पूर्व सैनिकों को ही पर्याप्त मौके नहीं मिल पा रहे हैं, ऐसे में 'अग्निवीरों' को नौकरियों में कितनी प्राथमिकता मिलेगी यह सोचने वाली बात है। 10वीं, 12वीं पास ये अग्निवीर क्या निजी क्षेत्रों में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट युवाओं से प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे?
क्या ये जवान सियाचिन जाएंगे : कर्नल सवाल उठाते हैं क्या 'अग्निपथ' योजना में भर्ती होने वाले सैनिक सियाचिन और लद्दाख जाएंगे? हो सकता है वे इस आधार पर मना कर दें कि हमें तो सिर्फ 4 साल ही काम करना है। ऐसे में हम खतरे वाले स्थानों पर क्यों जाएं। ऐसे में वे भगोड़े भी हो सकते हैं। फिर आप उनका कोर्ट मार्शल करते बैठिए। इसमें अनावश्यक रूप से सेना और सैन्य अधिकारियों की ऊर्जा खत्म होगी।
सुरक्षा पर सवाल : दीवानजी कहते हैं कि यूं तो सेना का हर क्षेत्र संवेदनशील है, लेकिन ये सैनिक यदि संवेदनशील स्थानों पर तैनात होंगे तो इनमें से कुछ 'सेवामुक्ति' के बाद सुरक्षा के लिए खतरा भी उत्पन्न कर सकते हैं, क्योंकि आप इन्हें छिपाकर तो रख नहीं पाएंगे। कई बार सुरक्षा से जुड़े मामलों पर चर्चा के दौरान सैनिक भी शामिल होते हैं।
इस तरह बनेगा आत्मनिर्भर भारत : कर्नल दीवानजी कहते हैं कि ज्यादा अच्छा होता कि यह योजना आर्मी ट्रेड्समैन (कुक, नाई, धोबी, मोची) के लिए लाई जाती। या फिर डिप्लोमा होल्डर्स इंजीनियर के लिए लाई जाती। 4 साल की सेवा के बाद ये सभी वर्ग अपने परंपरागत धंधे में लौट सकते हैं। चूंकि घर वापसी पर इन्हें मिलने वाले करीब 12 लाख रुपए से ये अपना व्यवसाय शुरू कर सकते थे। चूंकि ये सभी अपने-अपने क्षेत्र के स्किल्ड होंगे, ऐसे में इनके समक्ष रोजगार का संकट भी नहीं होगा। इस तरह हम आत्मनिर्भर भारत की ओर भी कदम बढ़ा सकते हैं।
कुछ और भी सुझाव : कर्नल निखिल कहते हैं कि एक नया डिफेंस एनपीएस स्थापित किया जाए जिसमें सरकार का योगदान 30 से 50 प्रतिशत होना चाहिए ताकि जल्दी सेवानिवृत्ति की भरपाई की सके। वे कहते हैं सरकार पहले ही शॉर्ट सर्विस ऑफिसरों की भर्ती से पेंशन बिल को कम रही है। शॉर्ट सर्विस वाले कई अधिकारियों की हालत खराब है। कलर सर्विस बढ़ाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस योजना में खिलाड़ियों की भर्ती की जा सकती है, जो बाद में कोच बन सकते हैं।
प्रदर्शनकारियों से अपील : कर्नल दीवानजी कहते हैं कि प्रदर्शनकारियों को हिंसा और तोड़फोड़ नहीं करना चाहिए। देश की संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। जिन युवाओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो जाएगी, उन्हें न सिर्फ सेना बल्कि अन्य विभागों में भी नौकरी नहीं मिल पाएगी। उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखनी चाहिए।