Special Report: अकबर इलाहाबादी को प्रयागराजी करना अदब से छेड़छाड़

हिमा अग्रवाल
बुधवार, 29 दिसंबर 2021 (18:51 IST)
भले ही इलाहाबाद का नाम प्रयागराज कर दिया गया हो, लेकिन उसकी सांस्कृतिक, साहित्यिक और सामाजिक विरासत के रूप में पहचान इलाहाबाद के नाम से ही है। संभव है कि आने वाली पीढ़ियां इलाहाबाद की जगह प्रयागराज बोलने लगें लेकिन लोगों की जुबां से अभी भी इलाहाबाद ही निकलता है।

हर शहर के कुछ आइकॉन होते हैं, कुछ वस्तुएं, कुछ विशेषताएं और विरासत भी। अमरूद कल भी इलाहबादी था और आज भी वही है। इसे सरकारी पन्नों में कुछ भी दर्ज कर लो लेकिन जुबां से इलाहाबादी ही निकलेगा। तखल्लुस तो इसके आगे की चीज है। यह व्यक्ति की अपनी पसंद और अपना अधिकार है।
 
अकबर हुसैन रिज़बी ने अगर अपना तखल्लुस इलाहाबादी चुना और वे अकबर इलाहाबादी के नाम से पूरी दुनिया में जाने जाते हैं तो उनका नाम आज अकबर प्रयागराजी करना अनुचित ही नहीं बल्कि निंदनीय ही कहा जाएगा। 
अभी हाल में शायर अकबर इलाहाबादी के नाम के आगे से इलाहाबादी हटाकर उच्च शिक्षा विभाग ने अकबर प्रयागराजी कर दिया।
 
आयोग की बेवसाइट पर अकबर प्रयागराजी लिखा देखकर उत्तर प्रदेश के साहित्यकारों ने इसकी निंदा की है। जैसे ही ये मामला सामने आया तो आयोग का विरोध होना लाजिमी था। विरोध होते ही उच्च शिक्षा विभाग बैकफुट पर आ गया और उसने अपने बेवसाइट से प्रयागराजी शब्द बदल कर इलाहबादी कर दिया। विभाग की तरफ से पुराना ही नाम पुनः बेवसाइट पर लिख दिया गया हो, लेकिन फिर भी बौद्धिक वर्ग इससे आहत हुआ है और उसकी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई है।

मेरठ के जाने माने साहित्यकार निर्मल गुप्त का कहना है कि नाम बदलने से यादें नहीं जातीं। किसी स्थान के नाम के साथ वहां की सांस्कृतिक समझ भी जुड़ी होती है, जो उसे एक विशेष पहचान दिलाती है। हर शहर का एक अपना आधिकारिक नाम होगा और एक निकनेम। जैसे प्रबल प्रताप सिंह सामाजिक नाम है और पिंकू निकनेम। ऐसे ही टीकाराम सामाजिक पहचान है और टिंकू निकनेम।

वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर जोशी मानते हैं कि इस तरह की हरकत शिक्षित समाज में अक्षम्य की श्रेणी में आती है। आप किसी भी जीवित व्यक्ति का नाम या उपनाम निर्धारित नहीं कर सकते। यह निजता के अधिकार में शामिल है। अगर मैं कल अपना नाम हरि अकबराबादी लिखने लगूं तो यह मेरा मौलिक अधिकार है, जो संवैधानिक भी है। इसी तरह आप किसी मरहूम का नाम या तखल्लुस बदलकर इतिहास को विकृत करने का अपराध करते हैं और यह अपराध घटित हुआ है, जिसकी नियमानुसार सजा भी मिलनी चाहिए। हरि जोशी इसे गंगा-जमुनी तहजीब पर हमला मानते हैं। वह यहीं नहीं रुकते बल्कि इसे देश को खंड-खंड करने की गहरी साजिश का हिस्सा करार देते हैं।

मध्यप्रदेश की शायरा अपर्णा पत्रिकर इस कृत्य पर कहती हैं- किसी का भी नाम बदलकर किसी भी चीज़ या व्यक्ति या शहर के मूल भाव को नहीं बदला जा सकता। तखल्लुस किसी भी शाईर के निजी चुनाव की बात है। सूरज में लगे धब्बा, फितरत के करिश्मे हैं/बुत हमको कहे काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है.. जैसा कलाम कहने वाले मरहूम अज़ीम शाईर जनाब अकबर इलाहाबादी साहब के नाम के साथ इस मूर्खतापूर्ण व्यवहार की निंदा तो लाजिमी है बल्कि मेरी नज़र में ये काम मूर्खता का चरम है।

शायरा अपर्णा पात्रिकर का कहना है कि इलाहबाद के प्रयागराज हो जाने से न गंगा अपनी दिशा और दशा बदल सकती है न ही वहां की गंगा-जमुनी तहज़ीब बदल सकती है। उनका मानना है कि ऐसे बेतुके कार्यों से कुछ लोगों का अहंकार तुष्ट हो सकता है और बस वही हो भी रहा है, लेकिन गुजारिश है कि इस खेल से अदब को दूर ही रखा जाए तो बेहतर होगा।

उच्च शिक्षा आयोग ने अकबर इलाहाबादी के अलावा तेग इलाहाबादी और राशिद इलाहाबादी जैसे शायरों का नाम के आगे लगे टाइटल बदल दिया। आयोग की वेबसाइट में 'अबाउट इलाहाबाद' वाले कालम में सबके नामों के आगे लिखे टाइटल इलाहाबादी को हटाकर प्रयागराजी किया गया है। आयोग द्वारा नामचीन लोगों की पहचान बदलने पर साहित्य जगत स्तब्ध है और वह इसे राजनीति से प्रेरित कदम बता रहा है।
 
बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि जिन साहित्यकारों से भारत का नाम है, विदेशों में एक पहचान है, उनके नाम के आगे छेड़छाड़ करना बिल्कुल गलत है। साहित्यिक जगत की कड़ी आलोचना के बाद उच्च शिक्षा आयोग ने अपनी वेबसाइट से सभी साहित्यकारों के नाम के आगे लिखे प्रयागराजी शब्द को हटाकर पुन इलाहाबादी लिख दिया है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह भी है की नई फोटो पर तिलक लगाकर बेवसाइट पर लगाना भी कुछ और संकेत दे रहा है। हालांकि इस पूरे मामले पर आयोग की तरफ से कोई बयान नही आया है।

उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा आयोग ने दी सफाई : उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग की वेबसाइट पर अकबर इलाहाबादी का टाइटल बदलने के मामले में आयोग ने सफाई दी है। आयोग ने कहा कि उन्होंने किसी के नाम से कोई छेड़छाड़ नहीं की और न ही किसी का नाम बदला है। सोशल मीडिया पर चल रही खबरें फर्जी व भ्रामक हैं। आयोग के उप सचिव डॉ. शिव जी मालवीय की तरफ से यह प्रेस नोट जारी किया गया है।

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