सरकार के इस कदम से मिलेगी भ्रष्टाचारी बाबुओं को राहत!

Webdunia
रविवार, 3 मई 2015 (14:34 IST)
नई दिल्ली। भ्रष्टाचार के मामलों में बाबुओं को अवकाश ग्रहण करने के बाद अभियोजन से बचाने का प्रावधान करने वाले भ्रष्टाचार निरोधक कानून में प्रस्तावित संशोधन पर नौकरशाहों को जहां राहत मिली है वहीं कानूनी विशेषज्ञ इसकी निंदा कर रहे हैं।
 
नौकरशाह महसूस करते हैं कि प्रस्तावित संशोधन से नीतिगत पंगुता पर काबू पाने में मदद मिलेगी, लेकिन कानूनी विशेषज्ञों ने योग्य प्राधिकरण की मंजूरी के बगैर आपराधिक कार्रवाई से उन्हें खुली छूट देने के कदम पर सवालिया निशान लगाए हैं।
 
भ्रष्टाचार निरोधक कानून में संशोधन को कैबिनेट की मंजूरी मिलने की आलोचना करने वालों की दलील है कि अगर कोई नौकरशाह अवकाश ग्रहण कर लेता है या इस्तीफा दे देता है तब भी अपराधी तो अपराधी है। उनका कहना है कि संशोधन इस तरह किया जाना चाहिए था कि कानून ज्यादा व्यावहारिक बने और व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने वाले बाबुओं के लिए यह रुकावट बने।
 
नौकरशाहों ने इस पर राहत की सांस ली है और अधिकतम सजा को 5 साल से 7 साल करने के लिए भ्रष्टाचार निरोधक कानून में प्रस्तावित संशोधन का यह कहते हुए स्वागत किया है कि कुछ रुकावट होनी चाहिए ताकि कोई व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने की हिम्मत नहीं करे। 
 
सेंट्रल आईएएस एसोसिएशन के सचिव संजय भूसरेड्डी ने मंजूरी के मुद्दे पर कानूनी विशेषज्ञों की राय से असहमति जताते हुए कहा कि प्रशासन में नीतिगत पंगुता खत्म करने के लिए इस तरह का कदम जरूरी है।
 
बहरहाल, एसएन ढींगरा और आरएस सोढ़ी जैसे अवकाशप्राप्त न्यायाधीशों एवं वरिष्ठ वकील अनिल दीवान ने अवकाश ग्रहण करने के बाद भी नौकरशाहों को बचाने पर आपत्ति जताई और कहा कि समूचा प्रस्ताव सही रास्ते पर नहीं दिख रहा। भूसरेड्डी ने कहा कि नौकरशाह पेशेवर हैं और अपना काम ईमानदारी से करने वालों को सुरक्षा देने की जरूरत है।
 
उन्होंने कहा कि हम सभी पेशेवर हैं और खासकर जो लोग अपना काम ईमानदारी से करते हैं उन्हें सुरक्षा देने की जरूरत है। अगर हमें नीतिगत पंगुता से बचना है और अगर हम चाहते हैं कि नौकरशाह या उच्चतम स्तर पर नीति निर्धारण करने वाला प्राधिकार सही दिशा में फैसला करे तो व्यवस्था को राष्ट्र निर्माण में निवेश सुनिश्चित करने के लिए उचित माहौल प्रदान करना होगा। 
 
उन्होंने कहा कि हम सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों का स्वागत करते हैं, क्योंकि यह देश के प्रशासन और शासन के समग्र हित में है तथा अगर जांच एजेंसी पाती है कि किसी ने कोई अपराध किया है या कोई भ्रष्ट है तो ऐसे शख्स को बचाने का कोई कारण नहीं है।
 
उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से सीबीआई या कोई एजेंसी नियुक्त की जाती है। अगर कोई स्वतंत्र एजेंसी कहती है कि किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया है या वह भ्रष्ट है तो मैं कोई कारण नहीं देखता कि ऐसे शख्स को क्यों बचाया जाए। 
 
दीवान और सोढ़ी ने भी इस पर सवाल खड़े किए। सोढ़ी ने कहा कि सरकारी सेवक को आश्वासन दिया गया है कि महज इस कारण उनके खिलाफ प्रतिशोधात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी कि उन्होंने कोई फैसला किया है। जब तक कोई लोक सेवक बेईमानी से काम नहीं करता, उसे सुरक्षा दी जाएगी। राजग सरकार ने 29 अप्रैल की कैबिनेट बैठक में भ्रष्टाचार निरोधक कानून में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
 
प्रस्तावित संशोधन में जांच एजेंसी के लिए अपने आधिकारिक कार्यों या दायित्वों के निर्वहन में किसी लोक सेवक की तरफ से लिए गए फैसले या सिफारिशों से संबंधित अपराधों की जांच के लिए लोकपाल या लोकायुक्त से पूर्व मंजूरी पाना अनिवार्य किया गया है। (भाषा) 
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