बड़ा सवाल! क्या नोटबंदी से कालेधन पर रोक लगेगी?

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बीते दो-तीन सप्ताह के दौरान 500 और 1000 के पुराने नोट के चलन को बंद करने के फैसले पर काफी कुछ कहा गया है लेकिन फिर भी नोटबंदी, विमुद्रीकरण और काले धन को लेकर लोगों में बहुत भ्रम बना हुआ है। इसलिए बेहतर होगा कि इन शब्दों को सही संदर्भों में समझने का प्रयास करें तभी वांछित प्रयासों और उनके असर के बारे में कुछ निर्णायक तौर पर कहा जा सकेगा।  
 
अर्थशास्त्र में कालेधन का मतलब ऐसी गैर कानूनी आय से है, जिस पर कानूनसम्मत कर नहीं चुकाया गया हो। इसका स्रोत कुछ भी हो सकता है। पैसा चाहे रिश्वत में लिया गया हो या मादक पदार्थों की तस्करी, बिक्री से प्राप्त आय, गैर कानूनी आय कही जा सकती है। आमतौर पर माना जाता है कि 'कालेधन' का अर्थ ऐसे पैसे से है जिसे सूटकेस में बंडलों के रूप में रखा जाता है। इसका उपयोग भी गैस कानूनी कामों के लिए किया जाता है।  
 
विमुद्रीकरण (डीमॉनिटाइजेशन) को लेकर लोगों में बहुत सारी गलतफमियां हैं। पहली तो यही कि गैर-कानूनी ढंग से कमाए, जमा किए गए नोटों को निशाना बनाकर कालाधन समाप्त किया जाता है।
 
हमें समझना होगा कि जिन लोगों के पास गैर-कानूनी तरीके से की गई आमदनी होती है, उसे केवल विमुद्रीकरण से बंद नहीं किया जाता है। इसलिए जो पैसा बैंकों में जमा कराया जा रहा है, उसमें पूरा का पूरा काला धन है क्योंकि गैर कानूनी तरीके से जमा किए गए नोटों की चलन में इतनी अधिक संख्या नहीं होती है कि हजारों करोड़ के नोट बैंकों में जमा होते जाएं।    
 
जिन लोगों के पास गैर कानूनी कमाई का हिस्सा होता है, वे इस बात को भलीभांति जानते हैं कि इन्हें कैसे खर्च किया जाए। यह पैसा बाजार में खर्च होता है, कर्ज के तौर पर दूसरों के पास पहुंचता है। इन्हें दूसरों से बदला जाता है, जमीन जायदाद खरीदे जाते हैं, महंगी शादियां की जाती हैं और सैर सपाटों पर बेहिसाब पैसा खर्च किया जाता है। ऐसे लोगों के पास कुछ पैसा अपने जरूरी खर्च के लिए भी होता है, लेकिन ब्लैक मनी के नाम पर इन पैसों पर झाड़ू फेरने से काला धन समाप्त नहीं हो जाता है।     
 
जिस तरह सरकार ने पाक सीमा में जाकर 'सर्जिकल स्ट्राइक' की थी और उस स्ट्राइक का कोई वांछित असर नहीं निकला है, संभव है कि नोटबंदी का असर भी कुछ ऐसा ही हो। सरकार के कथित सर्जिकल स्ट्राइक के बाद नियंत्रण रेखा पर, अंतरराष्ट्रीय सीमा पर होने वाली गोली बारी से, आतंकवादियों की घुसपैठ और उनके सैन्य बलों पर हमलों में भारत ने अब तक कम से कम 27 सैनिकों को खोया है। आपने सर्जिकल स्ट्राइक भी की, एक बार दुश्मन के सैनिकों को भी मारा लेकिन न तो सीमा पार से निर्दोष लोगों पर होने वाली गोलीबारी रुकी और न ही आतंकवादियों की घुसपैठ और उनके हमले रुके। संभव है कि कालाधन पर मोदी की सर्जिकल स्ट्राइक का भी कुछ ऐसा ही असर हो। इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि हमारे बलों के 74 कर्मी मारे गए हैं।   
 
जब काले धन की बात आती है तो इसकी सर्वाधिक मात्रा राजनीतिक दलों के पास होती है। पैसों की सबसे ज्यादा जमाखोरी राजनीतिक दल करते हैं क्योंकि वे भी इसी पैसे के बल पर चुनाव लड़ते हैं। नोटबंदी को लेकर सरकार का सबसे बड़ा निशाना विपक्ष‍ी दलों पर होता है लेकिन वह सबसे ज्यादा पैसे एकत्र करती है। ऐसे में नोटबंदी के इस फैसले के जरिए विपक्षी राजनीतिक पार्टियां पर निशाना साधा जा सकता है, वहीं सत्तारूढ़ दल को इसका सबसे ज्यादा लाभ मिलता है।  
 
इस समस्या का असली इलाज यही है कि आप सभी राजनीतिक दलों को पारदर्शिता, कानून के अनुसार जानकारी देने और अपने खातों की निष्पक्ष जांच कराने के प्रावधान पहले अनिवार्य किए जाएं। आज की तारीख में अज्ञात स्रोतों से एकत्र किए गए फंड के मामले में सर्वाधिक फंड, 977 करोड़ रुपए भाजपा और एनडीए सदस्यों के पास है। 
 
इसी तरह वर्ष 13-14 और 14-15 के बीच सत्ता में रही कांग्रेस के पास 969 करोड़ की राशि थी। देश के राजनीतिक दलों को बड़ी मात्रा में धनराशि मिलती है, लेकिन अगर उन्हें मिलने वाले पैसे की रा‍शि 20 हजार से कम होती है जो इन्हें देने वाले की पहचान और राशि नहीं बताने की छूट होती है। विमुद्रीकरण से पहले राजनीतिक दलों के फंड्स, नेताओं के खातों आदि की जांच सार्वजनिक होनी चाहिए ताकि काले धन की गंगोत्री पर ही सबसे पहले अंकुश लगाया जा सके। कम से कम नोटबंदी से तो कालेधन पर अंकुश नहीं पाया जा सकेगा।  
 
इस फैसले का कई मोर्चों पर सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। इसका सबसे बड़ा नतीजा यह दिख रहा है कि सरकार मानती है कि समूचा देश ही मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों तक सीमित है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था और लोगों को तो भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। बैंकों और एटीएम के सामने खड़े लोगों की हालत से जाना जा सकता है कि एटीएम में अभी भी लोग पैसा नहीं निकाल पा रहे हैं। मुबई और दिल्ली में प्रतिदिन कम से कम 130 करोड़ रुपए मूल्य के कैश की जरूरत होती है, लेकिन रिजर्व बैंक इन दोनों शहरों में 25-30 करोड़ का कैश ही भेज पा रही है। यह देश के दो बड़े महानगरों का हाल है।
 
नोटबंदी के फैसले को बढ़चढ़ कर बताने वाली सरकार इसके नुकसान को कमतर बताने की कोशिश कर रही है। जबकि बहुत से नुकसानों को साफ देखा जा रहा है- लंबी कतारों में लोग समय जाया कर रहे हैं, गैर-संगठित क्षेत्रों में पैसों की कमी हो गई है, मजदूरों का काम छिन गया है और कई लोगों की मौत भी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्‍या में लोगों को मुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। 
 
अर्थव्यवस्था पर इसके गंभीर परिणाम भी जल्द महसूस किए जाएंगे और ग्रामीण बाजारों में मंदी महूसस की जा रही है। इंदिरा गांधी इंस्टीच्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च की निधि अग्रवाल और सुधा नारायण के अध्ययन के मुताबिक नोटबंदी के फैसले के एक सप्ताह के अंदर कई चीजों की आवक मंडी में काफी तेज़ी से गिरी। मंडियों में कपास की आवक में 30 फीसदी की कमी हुई तो सोयाबीन की आवक 87 फ़ीसदी गिर गई। जबकि पिछले साल इस अवधि में इस तरह की गिरावट नहीं आई थी। 
 
जब किसानों के पास नकदी की कमी है तो खेतिहर मजदूर और स्थानीय कामगारों की तकलीफें भी बढ़ी हैं। काम न मिलने के कारण वे भूखों मरने की हालत में पहुंच गए हैं। मनरेगा के मजदूरों की मजदूरी मिलने का कोई ठिकाना नहीं है। बैंक में पैसा नहीं है तो एटीएम में पैसा कहां से आएगा? यही स्थिति सामाजिक सुरक्षा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन और बुर्जुगों को मिलने वाली पेंशन की है। यह पेंशन लाखों लोगों के लिए जिंदगी की डोर है लेकिन गांवों में हाशिए पर रह रहे लोगों के लिए यह बहुत डरावनी स्थिति है।
 
इस स्तर पर लिया गया नोटबंदी का फैसला अर्थव्यवस्था पर खेला गया एक बड़ा जुआ है जिसके पूरे असर के बारे में अनुमान लगा पाना बेहद मुश्किल है। अगर लंबे समय तक आर्थिक मंदी आई और तो अगले कुछ महीनों में और बुरे प्रभाव दिखने शुरू होंगे। जैसे रबी फ़सल की बुआई में देरी का असर, फसलों की पैदावार पर भी होगा। जब काम देने वालों के पास नकदी की कमी होगी तो मजदूरों की नौकरियां जाएंगी। उनके काम हाथ से जाएंगे और बहरहाल, इस जुए में ना केवल आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले सूचकांक दांव पर लगे हैं, बल्कि लोगों की जिंदगियां भी दांव पर लग गई हैं। इस नोटबंदी का सबसे घातक पहलू यह है कि जब लोगों के पास हाथों में पैसा होना चाहिए तब उन्हें थोड़ी सी रकम के लिए बैंकों, एटीएम के सामने कई कई दिनों तक लाइन लगाकर खड़ा होना पड़ रहा है। 
 
कहा जा रहा है कि नोटबंदी से ब्लैक मनी बाहर निकलेगी और जाली नोट एक झटके में खत्म हो जाएगी। बैंकिंग सिस्टम में नकदी बढ़ेगी और सरकार की टैक्स वसूली बढ़ेगी। बैंकों में नकदी बढ़ने से ब्याज दरों में कमी आएगी। टैक्स देने वालों की संख्या बढ़ेगी और कैशलेस इकोनॉमी को बढ़ावा मिलेगा।
 
हालांकि नोटबंदी के खिलाफ तर्क ये भी दिए जा रहे हैं कि इससे काला धन पैदा होने के रास्ते बंद नहीं होते हैं क्योंकि काले धन का बहुत कम हिस्सा कैश में होता है। 86 फीसदी करेंसी अचानक चलन से बाहर होने से नकदी की किल्लत पैदा हो जाएगी। करेंसी गायब होने से कैश में चलने वाला कारोबार ठप होगा। नकद लेनदेन पर 80 फीसदी निर्भर ग्रामीण इलाकों में हालत खस्ता है। सरकार ने आधी-अधूरी तैयारी के साथ नोटबंदी का फैसला किया है। यही नहीं बैंकिंग सिस्टम हालात संभालने में नाकाम रहा है। नए नोट की जमाखोरी बढ़ रही है क्योंकि लोग पैसे खर्च करने से बच रहे हैं।
 
एक अनुमान के मुताबिक जीडीपी के 12 फीसदी के बराबर नोट चलन में हैं, और 28 अक्टूबर तक 17.77 लाख करोड़ रुपए के नोट चलने में थे। कुल करेंसी का 86 फीसदी 500 रुपए और 1000 रुपए के नोट चलन में थे। गौरतलब है कि देश में ब्लैक मनी का सटीक आंकड़ा नहीं है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक जीडीपी का 20 फीसदी ब्लैक इकोनॉमी है। 10 साल में 4027 अरब डॉलर काला धन पैदा हुआ है। लेकिन नोटबंदी को कारगर बनाने के लिए बेनामी ट्रांजैक्शन बिल, रियल एस्टेट बिल, जीएसटी, बैंक खातों में सीधे सब्सिडी, आधार नंबर के आधार पर पेमेंट, चुनावी फंडिंग नियमों में बदलाव, घूसखोरी और टैक्स रेट कम करने जैसे सुधारों को लाने की जरूरत थी लेकिन लगता है कि चुनावी नफा नुकसान को ध्यान में रखते हुए यह अति‍वादी कदम उठा लिया गया है। कम्युनिष्ट  चीन में ऐसा करने के लिए सरकार को चालीस वर्ष देने पड़े लेकिन हमारे देश के कर्णधार सब कुछ रातों रात करने का करिश्मा दिखाना चाहते हैं। 
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