देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा देने वाले जवानों के परिवार कितनी खराब स्थितियों में अपना जीवन यापन करते हैं, इसकी बानगी उड़ी में शहीद हुए सैनिक गंगाधर दोलुई की अंतिम यात्रा से समझी जा सकती है।
जब शहीद गंगाधर का शव उनके घर पर पहुंचा तो इस फौजी के पिता 64 वर्षीय ओंकारनाथ दोलुई के पास बेटे की अंतिम क्रियाकर्म के लिए भी पैसे नहीं थे। अंतिम संस्कार के लिए दुखी पिता को अपने पड़ोसियों से दस हजार रुपए कर्ज लेने पड़े तब जाकर कहीं एक शहीद का अंतिम संस्कार हो सका।
ओंकारनाथ के इस दर्द को बंगाल की सरकार ने आर्थिक सहायता के नाम पर और बढ़ा दिया। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दो लाख रुपए की आर्थिक सहायता और परिवार के एक सदस्य को होमगार्ड की नौकरी देने की घोषणा की। हालांकि इतनी कम आर्थिक सहायता को शहीद के परिवार ने अपमान बताया और लेने से इनकार कर दिया।
राज्य सरकारें जहां खिलाडि़यों और फिल्मी सितारों पर अकारण ही करोड़ों की राशि लुटाती हैं लेकिन इन सरकारों को यह शर्म भी नहीं आती है कि वे क्यों सहायता नाम पर पहले से मजबूर परिवार को और बेइज्जत कर रही हैं।
उल्लेखनीय है कि शहीद गंगाधर के पिता हावड़ा के पास जेबीपुर थाना के अंतर्गत आने वाले गांव जमुना बलिया गांव के रहने वाले थे और वे एक दिहाड़ी मजदूर हैं और वे प्रतिदिन 170-175 रुपए की कमा पाते हैं। इन्हीं पैसों से उनके परिवार की गुजर बसर होती है। ओंकारनाथ का कहना है कि इस मजबूरी के चलते उन्होंने बेटे की अंतिम यात्रा के लिए पड़ोसियों से पैसे रुपए उधार लिए थे।
समस्याएं यहीं खत्म नहीं होती हैं। एक मजदूर ओंकारनाथ हर्निया की समस्या से पीड़ित हैं और उनकी बाईं आंख भी खराब है। उनका घासफूस का घर है। करीब दो साल पहले ही गंगाधर की फौज में नौकरी लगी थी। गंगाधर ने दुर्गापूजा के बाद पक्का मकान बनाने के लिए कहा था। हालांकि अब परिवार का कहना है कि पक्का मकान अब सपना बनकर ही रह चुका है।
ओंकारनाथ ने राज्य सरकार की ओर से मिलने वाली आर्थिक सहायता को नाकाफी बताया है। उनका कहना है कि सरकार की ओर से दो लाख रुपए की सहायता राशि और परिवार के एक सदस्य के लिए होमगार्ड की नौकरी की घोषणा की है। यह एक शहीद सैनिक का अपमान है क्योंकि इतना तो जहरीली शराब पीकर मरने वालों के परिवारों को भी की देती है, फिर शराबियों और एक शहीद सैनिक के बीच अंतर क्या रहा ?