Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

दिल्ली हाई कोर्ट ने पूछा, बिना कक्षाओं के स्कूल कैसे संचालित किए जा सकते हैं?

Advertiesment
हमें फॉलो करें Delhi High Court

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

नई दिल्ली , गुरुवार, 17 जुलाई 2025 (14:44 IST)
Delhi High Court's question to MCD: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court ) ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि बिना कक्षाओं के और केवल चारदीवारी, शौचालय और पेयजल की सुविधा के साथ कोई स्कूल कैसे संचालित किया जा सकता है? उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी तब की जब उसे बताया गया कि संबंधित अधिकारियों ने खिड़की गांव में एमसीडी (MCD) द्वारा संचालित एक प्राथमिक विद्यालय में कक्षाओं को छोड़कर कुछ स्थानों की मरम्मत और नवीनीकरण की अनुमति दे दी है। इस विद्यालय की दीवार सूफी संत यूसुफ कत्तल के मकबरे से मिलती है।
 
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गडेला की पीठ ने 2 जुलाई के आदेश में कहा कि यदि स्कूल संचालित करना है तो उसे, उन सुविधाओं के अलावा कक्षाओं की भी आवश्यकता होगी जिनकी मरम्मत या नवीनीकरण की अनुमति सक्षम प्राधिकारी ने 14 मई 2025 के पत्र के माध्यम से दी है।
 
पीठ ने कहा कि यह समझ से परे है कि कोई स्कूल बिना कक्षाओं के और केवल चारदीवारी, शौचालय और पेयजल की सुविधा के साथ कैसे संचालित किया जा सकता है। याचिका उस स्कूल से संबंधित है जिसका निर्माण 1949 में दक्षिणी दिल्ली के खिड़की गांव के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए मकबरे के साथ एक दीवार साझा करते हुए किया गया था।ALSO READ: अदालतों में टॉयलेट की कमी का मामला, रिपोर्ट दाखिल न करने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज
 
याचिकाकर्ता खिड़की गांव निवासी कल्याण संघ के वकील ने अदालत को बताया कि 60 वर्षों की अवधि के बाद उन्हें स्कूल के पुनर्निर्माण की आवश्यकता महसूस हुई, क्योंकि खिड़की गांव और आसपास के क्षेत्रों की जनसंख्या बढ़ गई है। स्कूल के पुराने ढांचे को 2012 में ध्वस्त कर दिया गया था और इसके 350 छात्रों को एमसीडी के एक अन्य स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने स्कूल के पुनर्निर्माण पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि मकबरे के निषिद्ध क्षेत्र में किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं है और स्कूल के पुनर्निर्माण के लिए उससे अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना आवश्यक है।
 
एएसआई से नई अनुमति के लिए आवेदन किया था : अदालत ने टिप्पणी की कि निवासी कल्याण संघ की पूर्व याचिका का पिछले वर्ष निपटारा कर दिया गया था, क्योंकि एमसीडी ने स्कूल के पुनर्निर्माण या मरम्मत के लिए एएसआई से नई अनुमति के लिए आवेदन किया था। उच्च न्यायालय ने पूर्व याचिका का निपटारा करते हुए एएसआई को निर्देश दिया था कि वह एमसीडी द्वारा दायर आवेदनों पर कानून के अनुसार तथा यथासंभव शीघ्रता से 6 सप्ताह के भीतर निर्णय ले।
 
उच्च न्यायालय ने कहा कि हालांकि आदेश पारित होने के बाद एक वर्ष बीत चुका है लेकिन कुछ भी नहीं किया गया जिसके कारण 2025 में नई याचिका दायर की गई। पीठ ने कहा कि हमें ऐसा लगता है कि एएसआई और एमसीडी दोनों ही नगर निकाय द्वारा संचालित स्कूल के पुनर्निर्माण या मरम्मत के लिए मंजूरी लेने के प्रति गंभीर नहीं है।ALSO READ: मोदी और आरएसएस पर आपत्तिजनक कार्टून का मामला, कार्टूनिस्ट को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत
 
पीठ ने कहा कि वह आश्चर्यचकित है कि इस अदालत द्वारा पारित आदेश जिसका 6 सप्ताह के भीतर पालन किया जाना था, लेकिन 1 वर्ष बाद भी उस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है। पीठ ने कहा कि यह हमारी समझ से परे है कि एमसीडी और एएसआई दोनों के अधिकारी इस तरह से कैसे काम कर रहे हैं जिससे अवमानना कार्यवाही शुरू होने का खतरा है।
 
2 जुलाई को अदालत को सूचित किया गया था कि एएसआई ने संबंधित स्कूल में मौजूदा संरचनाओं- पोर्टा कैबिन, चारदीवारी, शौचालय ब्लॉक और पेयजल स्थान की मरम्मत या नवीनीकरण के लिए अनुमति दे दी है। हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि इसमें कक्षाओं के निर्माण के लिए कोई अनुमति शामिल नहीं है। एमसीडी के वकील ने कहा कि कक्षाओं के निर्माण के लिए भी सक्षम प्राधिकारी से अनुमति लेने के लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।
 
उच्च न्यायालय ने एमसीडी को निर्देश दिया कि वह कक्षाओं के निर्माण के लिए एएसआई से अपेक्षित अनुमति प्राप्त करने के वास्ते एक आवेदन प्रस्तुत करे और कहा कि यदि ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो अधिकारियों को स्कूल संचालन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इस पर विचार करना चाहिए। अदालत ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी आवेदन की तिथि से 2 महीने के भीतर निर्णय लें और उसने मामले को अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या है ‘धर्मान्तरण’ का असली एजेंडा, कहीं सॉफ्ट कन्वर्शन तो कहीं सामुहिक धर्मपरिवर्तन, समझिए क्या है ‘धर्मसंकट’