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एक्सप्लेनर: लखनऊ की सत्ता के लिए किसका 'एक्सप्रेस-वे' बनेगा पूर्वांचल ?

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल को साधने के लिए सियासी दलों का पूरा जोर, बड़ा सवाल पूर्वांचल किसकी ओर?

विकास सिंह
मंगलवार, 16 नवंबर 2021 (14:40 IST)
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर पूर्वांचल और यहां की सियासत चर्चा के केंद्र में है। लखनऊ की सत्ता का रास्ता जिस पूर्वांचल से होकर जाता है उस पर भाजपा और समाजवादी पार्टी ने अपना पूरा फोकस कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 341 किलोमीटर लंबे पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का लोर्कापण किया। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ को पूर्वांचल से जोड़ेगा। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि एक्सप्रेस वे को पूर्वांचल को समर्पित कर वह धन्य महसूस कर रहे है।

वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्वांचल में आने वाले जिलों का लगातार दौरे कर रहे है। वहीं पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर समाजवादी पार्टी अपना दावा करते हुए कहती है कि पूर्वांचल एक्सप्रेस वे उसकी सरकार की देन है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पूर्वांचल एक्सप्रेस की शिलान्यास की फोटो को सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहते है कि “एक तस्वीर इतिहास के पन्नों से जब समाजवादियों ने किया था, पूर्वांचल के आधुनिक भविष्य के मार्ग का शिलान्यास। जिसने उप्र व पूर्वांचल के विकास का नक़्शा खींचा वो बीता कल हमारा था और अब ‘नव उप्र’ के लक्ष्य को लेकर चल रहा कल भी हमारा ही होगा”।
 
पूर्वांचल एक्सप्रेस वे और पूर्वांचल को लेकर आखिर उत्तर प्रदेश की सियासत क्यों चरम पर पहुंच गई है और आखिर पूर्वांचल पर सियासी घमासान की वजह क्या है इसको समझने के लिए पूर्वांचल की सियासी इतिहास को समझा देखना होगा। 
 
इतिहास बताता है कि पूर्वांचल में जिस भी पार्टी ने जीत हासिल की है, राज्य में उसकी सरकार बनी है। 2017 में बीजेपी ने 26 जिलों की 156 विधानसभा सीटों में से 106 पर जीत हासिल की थी और उत्तरप्रदेश में भाजपा पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी थी। इससे पहले भी 2012 में सपा को 85 सीटें मिली थीं जबकि 2007 में बसपा को भी पूर्वांचल से 70 से ज्यादा सीटें मिली थीं।
 
पूर्वांचल एक्सप्रेस वे लखनऊ से शुरू होकर बाराबंकी, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, सुलतानपुर, अमेठी, आजमगढ़, मऊ और बलिया जिले से होते हुए गाजीपुर तक जाएगा। इन सभी जिलों में विधानसभा की 55 सीटें हैं। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में इनमें से 34 सीटें भाजपा ने जीती थी। वहीं सपा के खाते में 11 सीटें और बसपा 8 सीटें जीत पाई थी।
2014 का लोकसभा हो या फिर 2017 का विधानसभा चुनाव रहा। फिर 2019 चुनाव हो पूर्वांचल में भाजपा को अच्छी सफलता मिली है और भाजपा 2022 के चुनाव में इसको बनाए रखने के लिए पूरी ताकत लगा रही है।
 
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक-पूर्वांचल की सियासत को करीब से देखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक मनोज कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की सियासत में पूर्वांचल की अहमियत होने का कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से आते है और यूपी के चुनाव में सबसे बड़े प्रतिद्ंदी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजमगढ़ का प्रतिनिधित्व करते है।


इसके साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ और उसके आसपास के जिलों मऊ और बलिया में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी जबकि शेष पूर्वांचल में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की थी। 2022 के चुनाव में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस सफलता को दोहराना करना है। 
 
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में मनोज कहते हैं कि किसान आंदोलन के चलते पश्चिम उत्तरप्रदेश में ऐसी स्थिति और समीकरण बन गए है जो भाजपा के खिलाफ जा रहे है। 2017 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज की तुलना में ठीक उलट स्थिति थी। मुजफ्फरनगर हिंसा के बाद जो ध्रुवीकरण हुआ था उसका सीधा फायदा भाजपा को मिला था और भाजपा ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में तगड़ी जीत हासिल की थी। 
 
इस बार किसान आंदोलन के कारण पश्चिमी उत्तरप्रदेश में एक एंटी बीजेपी का माहौल बन गया है। ऐसे में भाजपा को पश्चिम में जब बहुत उम्मीद नहीं लग रही है। ऐसे में जब सत्ताधारी दल को पश्चिम इलाके में सफलता की उम्मीद न हो तो दूसरा सबसे बड़ा इलाका पूर्वांचल ही होता है और यहां पर 150 से ज्यादा सीटें आती है और भाजपा का इस पर फोकस करना स्वाभिवक है। 
 
इसके साथ उत्तर प्रदेश की जातिगत राजनीति में सबसे ज्यादा लड़ाई पूर्वांचल में ही है। पूर्वांचल की जातिगत वोटों को देखे तो यहां निषाद, राजभर, मौर्य और कुशवाह यहां पर एक ताकत के रुप में है। पूर्वांचल में जो पार्टी जातिगत समीकरण को साध लेगी उसको चुनाव में सीधा फायदा होगा। इसलिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार पूर्वांचल का दौरा कर रहे है वहीं प्रधानमंत्री महीने भर में दो बार पूर्वांचल के जिले कुशीनगर और सिद्धार्थनगर आ चुके है । इसके साथ अमित शाह भी पूर्वांचल पर फोकस कर रहे है।
 
इसके साथ खास बात यह है कि पूर्वांचल में 2017 से पहले या कहे की मोदी लहर से पहले पूर्वांचल में सपा और बसपा को यहां बड़ी सफलता मिलती रही है। मंडल कमीशन के बाद उत्तरप्रदेश की राजनीति में जो दलित और ओबीसी राजनीति का उभार हुआ उसमें भाजपा को बहुत नुकसान होता था। ऐसे में अब 2022 के चुनाव में सपा को एक बार फिर जीत की उम्मीद जग रही है और सपा ने जातिगत वोटरों को साधने के लिए कास्ट पर आधरित पार्टियों से गठबंधन किया है। ऐसे उत्तर प्रदेश चुनाव में बैटल फील्ड पूर्वांचल बना हुआ है। 
 

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