आपने पानी से लबालब खेत में किसानों और मजदूरों को धान की फसल रोपते हुए देखा होगा। धान की फसल को लेकर आम धारणा यह है कि यह फसल कम पानी में नहीं हो सकती। एक अनुमान के मुताबिक भारत में भारत में एक किलो चावल उगाने के लिए करीब 5000 लीटर पानी लगता है, जो कि कृषि में उपयोग किए जाने वाली का एक तिहाई हिस्सा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि समस्या का समाधान भी समाज के भीतर से ही आता है। दक्षिण भारत के एक किसान ने एक अजूबा लगने वाला काम कर दिखाया है। उन्होंने ऐसी विधि विकसित की है, जिसके जरिए परंपरागत धान की खेती से इतर कम पानी में धान उगाया जा सकता है। असल में, ज्यादा पानी में उगाई गई धान की फसल से मीथेन का भी करीब 20 फीसदी उत्सर्जन होता है, जो अन्य की तुलना में सर्वाधिक है।
बीबीसी की 'फॉलो द फूड' श्रृंखला के तहत पड़ताल कर रहे हैं प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी जेम्स वांग ने भारत में किसानों से मुलाकात की और पारंपरिक खेती में किए जा रहे सफल प्रयोग पर तमिलनाडु के स्थानीय किसानों से बातचीत की।
रविचंद्रन वनचिनाथन ऐसे ही किसान हैं, जिन्होंने ज्यादा पानी से धान की खेती करने संबंधी मिथ को झुठलाया है। बीबीसी के फॉलो द फूड सीरीज के तहत यह बात सामने आई कि रविचंद्रन धान उगाने के लिए एसआरआई (System of Rice Intensification-SRI) नामक विधि का उपयोग कर रहे हैं। इस विधि में न सिर्फ कम पानी का उपयोग होता बल्कि उपज में भी सुधार होता है। साथ ही मीथेन का भी तुलनात्मक रूप से कम उत्सर्जन होता है।
वे पानी खेतों में लगातार डालते हैं, खेत को भरते नहीं है। इस दौरान पौधे की जड़ों को अधिक ऑक्सीजन मिलती है, जिससे उन्हें पनपने में भी मदद मिलती है। इससे अधिक स्वस्थ पौधा तैयार होता है साथ ही फसल भी अच्छी प्राप्त होती है। वे कहते हैं कि इस विधि से फसल लेने में 30 से 40 फीसदी कम पानी लगता है।
धान की परंपरागत खेती का दूसरा पहलू यह है कि दक्षिणी भारत के राज्य भी मानसून की बारिश में बदलाव के कारण पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं। पानी की कमी के कारण कई किसानों ने चावल की खेती भी छोड़ दी है। लेकिन रवि ने साबित किया है यह एक मिथक है।
इस संदर्भ में नेताफिम इंडिया के रिजनल मैनेजर (दक्षिण) श्रवण कुमार मणि कहते हैं कि भारत का 54 फीसदी हिस्सा पानी की से जूझ रहा है। इतना ही नहीं बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य उत्पादन भी बड़ी चुनौती है। ऐसे में हमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना होगा साथ ही पानी पौधों को देना होगा न कि मिट्टी को।