बड़ी खबर, भोजन सामग्री से समुद्री पानी को बनाएंगे मीठा, तकनीक का कराया पेटेंट

Webdunia
शनिवार, 12 दिसंबर 2020 (10:25 IST)
नई दिल्ली। पंजाब में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने अपशिष्ट भोजन का उपयोग करके समुद्र के पानी के खारेपन को दूर करने की एक नई और पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकी विकसित की है। विश्वविद्यालय ने कहा कि इस प्रौद्योगिकी का पेटेंट भारतीय पेटेंट कार्यालय से हासिल किया जा चुका है।
 
विश्वविद्यालय ने कहा कि वह अब प्रक्रिया के व्यावसायीकरण को लेकर प्रयासरत है। उसका कहना है कि बड़े उद्योगों द्वारा बड़े स्तर के संयंत्र में इस प्रौद्योगिकी के उपयोग से एक लीटर समुद्री जल समुद्री पानी के खारेपन को दूर करने में सिर्फ दो रुपए का खर्च बैठेगा।

समुद्री पानी के खारेपन को दूर करने की मौजूदा पद्धति से भारी मात्रा में हानिकारक रासायनिक अपशिष्ट का निर्माण होता है, जबकि एलपीयू शोधकर्ताओं द्वारा आविष्कार की गई इस नई प्रक्रिया में मकई, चावल या किसी अन्य खाद्य पदार्थ के स्टार्च का उपयोग किया जाता है और यह 'शून्य अपशिष्ट' उत्पन्न करता है।

इस नई प्रक्रिया का प्रयोगशाला में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है और इसे 75-80 प्रतिशत तक प्रभावी पाया गया है, जिससे समुद्र के पानी को नियमित घरेलू कामों के लिए उपयुक्त बनाया गया है, जैसे- कपड़े और बर्तन धोना, स्नान करना और सिंचाई करना इत्यादि।

इस शोध का संचालन लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तनय प्रमाणिक और रुनझुन टंडन ने किया।(भाषा) 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

CM धामी ने बदले 18 स्थानों के नाम, औरंगजेबपुर हुआ शिवाजी नगर

कौन हैं निधि तिवारी, बनीं पीएम मोदी की Personal Secretary?

जानिए कौन हैं घिबली' आर्ट की शुरुआत करने वाले हयाओ मियाजाकी, कितनी संपत्ति के हैं मालिक

सावधान! अप्रैल-जून में पड़ेगी सामान्य से ज्यादा गर्मी, लू से होगा सामना

1 अप्रैल की रात से बैंकिंग से लेकर यूपीआई तक बदल रहे हैं ये नियम

सभी देखें

नवीनतम

MP : अहमदाबाद-बरौनी एक्सप्रेस के डिब्बे में लगी आग, यात्रियों में मचा हड़कंप, कोई हताहत नहीं

बंगाल में गैस सिलेंडर विस्फोट, 4 बच्चों समेत 7 लोगों की मौत

साइबर अपराधियों ने ओडिशा के पूर्व IT मंत्री से ठगे 1.4 करोड़

Chhattisgarh : बीजापुर में 13 माओवादी गिरफ्तार, बारूदी सुरंग विस्फोट में थे शामिल

जल संवर्धन के साथ उसका संरक्षण आज की महती आवश्यकता : मोहन यादव

अगला लेख