Bihar Assembly Election Results: बिहार—यह केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि सदियों से ज्ञान, शक्ति और परिवर्तन का केंद्र रहा है। गौतम बुद्ध ने यहीं अपने 'विहार' (बौद्ध मठ) स्थापित किए और शांति का संदेश दुनिया को दिया। आज वही भूमि गठबंधन की राजनीति का प्रमुख अखाड़ा बन चुकी है। प्राचीन गौरव से आधुनिक चुनौतियों तक की यह यात्रा 'विहार' से 'बिहार' बनने की कहानी है। इसमें बहुत कुछ बदला है, लेकिन जाति, अर्थव्यवस्था और राजनीति जैसी जटिलताएं आज भी वैसी ही बनी हुई हैं।
प्राचीन गौरव और प्राचीन काल में यह क्षेत्र मगध साम्राज्य की राजधानी था। पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) से सम्राट अशोक ने विशाल साम्राज्य पर शासन किया। नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने इसे 'विश्व गुरु' का दर्जा दिलाया। 'बिहार' नाम तुर्कों ने बौद्ध भिक्षुओं के विहारों की बहुतायत से दिया। लेकिन मध्यकाल में राजनीतिक केंद्र कमजोर पड़ गया। मुगलकाल और ब्रिटिश शासन के दौरान यह क्षेत्र अपनी चमक खो बैठा। धीरे-धीरे यह कृषि-प्रधान और पिछड़े प्रांत में सिमट गया।
आधुनिक बिहार के तीन जटिल ध्रुव : वर्तमान बिहार को नीतीश कुमार के 'सुशासन' और प्रधानमंत्री मोदी के 'विकास' के नजरिए से देखें, तो यह तीन ध्रुवों—जाति, अर्थव्यवस्था और राजनीति—पर टिका है।
जाति : अटल सत्य और राजनीतिक हथियार : बिहार की राजनीति में जाति एक अटल सत्य है। लालू प्रसाद यादव ने MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण से सामाजिक न्याय को चरम पर पहुंचाया। वहीं, नीतीश कुमार ने EBC (अति पिछड़ा वर्ग) और महादलितों को जोड़कर अपना आधार मजबूत किया।
हालिया बदलाव : 2023 के जाति-आधारित सर्वेक्षण ने OBC (27.12%) और EBC (36.01%) की बड़ी आबादी को उजागर किया, जो कुल 63.13% है। यादव OBC में सबसे बड़ा समूह हैं। राजनीतिक दल इसे जरूरी नीतियों का आधार बता रहे हैं। लेकिन आलोचक इसे चुनावी गठजोड़ मजबूत करने का हथियार मानते हैं। यह सर्वेक्षण नीतियों को दिशा दे सकता है, यदि सच्ची प्रतिबद्धता हो।
अर्थव्यवस्था : पलायन और औद्योगिक सन्नाटा
बुद्ध के समृद्ध मगध से आज बिहार आर्थिक मानदंडों पर पिछड़ा राज्य है। प्रति व्यक्ति आय ₹69,321 (2024-25) है, जबकि राष्ट्रीय औसत ₹1.7 लाख से अधिक। रोजगार सृजन और औद्योगिक निवेश में कमी है। कृषि के अलावा कोई बड़ी आर्थिक गतिविधि नहीं।
पलायन की समस्या: राज्य की सबसे बड़ी त्रासदी युवाओं का पलायन है। 2025 तक लगभग 3 करोड़ बिहारी अन्य राज्यों में काम कर रहे हैं। 2011 जनगणना के अनुसार, 74.54 लाख प्रवासी थे— उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर। बेहतर शिक्षा और नौकरियों की तलाश में युवा दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों का रुख करते हैं।
सरकार के प्रयास : नीतीश सरकार ने 'सुशासन' के तहत सड़कें, बिजली और आधारभूत संरचना पर जोर दिया। बिजली कवरेज अब 99% तक पहुंच चुका है। लेकिन औद्योगिक विकास धीमा है। मोदी के 'विकास' मॉडल से निवेश आकर्षित करने की कोशिश जारी है, फिर भी पलायन रुकना बाकी है।
राजनीति : साझेदारी का खेल और 'सुशासन' का नारा
बिहार की राजनीति तेजस्वी यादव की युवा अपील और नीतीश-मोदी की जोड़ी के बीच बंटी है। हालिया 2025 के विधानसभा चुनावों में NDA ने 202 सीटें जीतीं—BJP को 89 और JD(U) को 85। RJD को 32 और लोजपा (रा) को 19 सीटें मिलीं। मतदान 67.13% रहा, जो अब तक का सर्वोच्च है। विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) से मतदाता सूची शुद्ध हुई, जिसने चुनावों को नई दिशा दी।
साझेदारी की शक्ति : चुनाव हमेशा जातीय वफादारी और गठजोड़ पर निर्भर रहते हैं। RJD का MY संयोजन या NDA का सामाजिक संतुलन—जीत इन्हीं से आती है। लेकिन 2025 में विपक्ष की हार MY समीकरण की कमजोरी से हुई। तेजस्वी की अपील युवाओं तक सीमित रही, जबकि NDA ने EBC और महिलाओं को साधा। उदाहरण स्वरूप, पटना की एक रैली में तेजस्वी ने बेरोजगारी पर चुटकी ली, लेकिन मतदाताओं ने स्थिरता को प्राथमिकता दी।
महिलाओं की निर्णायक भूमिका : शराबबंदी ने महिलाओं को सशक्त बनाया। 2025 चुनावों में महिला मतदाताओं का प्रतिशत बढ़ा, जो NDA की जीत का प्रमुख कारक बना। नीतीश के फैसलों—जैसे पंचायती राज में महिलाओं को 50% आरक्षण और कैश बेनिफिट स्कीम—ने उनकी छवि सामाजिक सुधारक की बनी रही।
विकास बनाम सामाजिक न्याय : राजनीति अब विकास (मोदी फैक्टर) और सामाजिक न्याय (जाति-नीतियां) के बीच संतुलन खोज रही है। क्या मोदी का उद्योग-केंद्रित मॉडल बिहार की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त है? नीतीश ने बुनियादी सुधार किए, लेकिन जाति के गणित से ऊपर उठकर आर्थिक गुणनफल पर फोकस जरूरी है।
गौतम बुद्ध के विहारों से आज के राजनीतिक केंद्र तक, बिहार ने ज्ञान और सत्ता के उत्थान-पतन देखे हैं। आज यह दोराहे पर है—एक ओर जातिगत बेड़ियां और आर्थिक पिछड़ापन, दूसरी ओर सुशासन व विकास की आकांक्षाएं। नीतीश-मोदी नेतृत्व में बुनियादी बदलाव हुए हैं, जैसे बिजली और सड़कों का विस्तार। लेकिन सच्ची प्रगति तभी संभव, जब राजनीति जाति से आगे बढ़े। बिहार के सजग मतदाता हमेशा याद दिलाते हैं: यह राज्य जाति, बाहुबल और सुशासन के अंतर्विरोधों के बीच विकास और पलायन-मुक्ति चाहता है। प्राचीन गौरव की वापसी इसी संतुलन से होगी।