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‘चेक बाउंस’ को लेकर सरकार उठाने जा रही है सख्त कदम, वित्त मंत्रालय को मिले हैं अहम सुझाव

हमें फॉलो करें ‘चेक बाउंस’ को लेकर सरकार उठाने जा रही है सख्त कदम, वित्त मंत्रालय को मिले हैं अहम सुझाव
, सोमवार, 10 अक्टूबर 2022 (20:13 IST)
चेक बाउंस के मामलों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए वित्त मंत्रालय चेक जारी करने वाले के अन्य खातों से पैसा काटने और ऐसे मामलों में नए खाते खोलने पर रोक लगाने जैसे कई कदमों पर विचार कर रहा है। दरअसल, चेक बाउंस के बढ़ते मामलों को देखते हुए मंत्रालय ने हाल में एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई थी, जिसमें इस तरह के कई सुझाव प्राप्त हुए हैं। यदि ऐसा होता है तो आने वाले समय में चेक बाउंस को लेकर अदालत पहुंचने मामलों की संख्‍या सीमित हो जाएगी। 
 
दरअसल, ऐसे मामलों से कानूनी प्रणाली पर भार बढ़ता है। इसलिए कुछ ऐसे सुझाव दिए गए हैं जिनमें कुछ कदम कानूनी प्रक्रिया से पहले उठाने होंगे मसलन चेक जारी करने वाले के खाते में पर्याप्त पैसा नहीं है तो उसके अन्य खातों से राशि काट लेने का प्रस्ताव है।
सूत्रों ने बताया कि अन्य सुझावों में चेक बाउंस के मामले को कर्ज चूक की तरह लेना और इसकी जानकारी ऋण सूचना कंपनियों को देना शामिल है, जिससे कि व्यक्ति के अंक कम किए जा सके। उन्होंने कहा कि इन सुझावों को स्वीकार करने से पहले कानूनी राय ली जाएगी।
ये सुझाव अमल में आते हैं, तो भुगतानकर्ता को चेक का भुगतान करने पर मजबूर होना पड़ेगा और मामले को अदालत तक ले जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे कारोबारी सुगमता बढ़ेगी तथा खाते में पर्याप्त पैसा नहीं होने के बावजूद जानते-बूझते चेक जारी करने के चलन पर भी रोक लगेगी।
 
चेक जारी करने वाले के अन्य खाते से राशि स्वत: काटने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया और अन्य सुझावों को देखना होगा। चेक बाउंस होने का मामला अदालत में दायर किया जा सकता है और यह एक दंडनीय अपराध है जिसमें चेक की राशि से दोगुना जुर्माना या दो वर्ष तक का कारावास या दोनों सजा हो सकती है।
 
उद्योग संगठन पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने हाल में वित्त मंत्रालय से अनुरोध किया था कि चेक बाउंस के मामले में बैंक से पैसा निकलने पर कुछ दिन तक अनिवार्य रोक जैसे कदम उठाए जाएं जिससे कि चेक जारी करने वालों को जवाबदेह बनाया जा सके।
 
क्या होगा फायदा : यदि इन प्रस्तावों को मंजूरी मिल जाती है तो चेक बाउंस से जुड़े मामले अदालत तक नहीं पहुंचेंगे और इससे अदालतों का बोझ भी कम होगा। 

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