जानिए क्या है गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार... Complete Story

Webdunia
गुरुवार, 2 जून 2016 (12:54 IST)
गोधरा कांड के बाद हुए जघन्य दंगों में अहमदाबाद के 14 साल पुराने चर्चित गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले में विशेष अदालत आज अपना फैसला सुना दिया है। गोधरा कांड के बाद हुए इस हत्याकांड ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी। इस मुद्दे पर तत्कालीन भाजपा सरकार और नरेंद्र मोदी जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे पर बहुत संगीन आरोप लगे थे। 
 
आखिर क्या हुआ था गुलबर्गा सोसाइटी में 27 फरवरी 2002 में!! 
 

गोधरा कांड के बाद दंगाईयों ने 27 फरवरी 2002 को अहमदाबाद में स्थित गुलबर्ग सोसायटी में हमला कर भारी तबाही मचाई थी, इस दंगे में कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी सहित 69 लोगों की जान चली गयी थी। अहमदाबाद शहर में हुए दंगे के बाद दंगाइयों ने गुलबर्ग सोसायटी पर हमला बोल दिया था, जहां कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी अपने परिवार के साथ रहा करते थे। इस सोसाइटी में रहने वाले लोगों में से उनतालीस लोगों के तो शव मिले भी, लेकिन बाकी तीस के शव तक नहीं मिले, जिन्हें सात साल बाद कानूनी परिभाषा के तहत मरा हुआ मान लिया गया। 

कानून के पेंच और अदालती कार्यवाही : गुलबर्ग सोसायटी कांड की जांच पहले अहमदाबाद पुलिस ने की और जून 2002 से अक्टूबर 2004 के बीच इस मामले में पांच सप्लीमेंट्री सहित कुल छह चार्जशीट दाखिल की, लेकिन उसी दौरान राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दंगों की निष्पक्ष जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर 2003 के अपने आदेश के तहत गुलबर्ग सोसायटी कांड सहित 2002 दंगों के नौ बड़े मामलों पर स्टे लगा दिया, जिसमें गोधरा कांड भी शामिल था।
 
लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च 2008 को अपने आदेश में इन सभी नौ बड़े मामलों की जांच के लिए विशेष जांच टीम यानी एसआईटी के गठन का आदेश दिया। जिसके अध्यक्ष बनाए गए सीबीआई के पूर्व निदेशक आर के राघवन। राघवन की अगुआई वाली इस एसआईटी ने ही इस मामले में नए सिरे से जांच शुरु की और 2008 में तीन सप्लीमेंट्री चार्जशीट संबंधित मेट्रोपोलिटन अदालत में फाइल की।
 
सुप्रीम कोर्ट ने एक मई 2009 को दिए आदेश में गुजरात दंगों के सभी बड़े मामलों की सुनवाई करने पर लगे अपने स्थगन आदेश को हटा दिया। इसके बाद 11 फरवरी 2009 के अपने एक और आदेश के तहत सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ इन मामलों की जांच बल्कि अदालत में उनकी प्रगति पर निगाह रखने का भी आदेश एसआईटी को दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 26 अक्टूबर 2010 के अपने एक और आदेश में बाकी आठ मामलों में फैसले सुनाने का आदेश तो दे दिया, लेकिन गुलबर्ग सोसायटी कांड मामले में फैसला सुनाने पर रोक लगाई यानी इस मामले की सुनवाई तो चल सकती थी, लेकिन फैसला नहीं सुनाया जा सकता था।
मोदी से भी हुई थी पूछताछ!! आगे पढ़ें...  

अहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की, जिसमें 2002 दंगों और गुलबर्ग हत्याकांड के लिए राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भी 62 लोगों के साथ जिम्मेदार ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एसआईटी ने याचिका में उठाए गए मुद्दों की जांच की, एसआईटी ने  2010 में  नरेंद्र मोदी से भी लंबी पूछताछ की।

हालांकि मोदी ने इस बात से साफ इंकार किया कि 28 फरवरी 2002 के दिन एहसान जाफरी की तरफ से उन्हें मदद के लिए फोन आया था,पूरी जांच के बाद एसआईटी की तरफ से इस मामले में अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई, जिसे 26 दिसंबर 2013 को अदालत ने मंजूर कर लिया।
 
सालों तक अदालती कार्यवाही का दौर चलता रहा। जनवरी 2011 में इस मामले में सुनवाई पूरी भी हुई।  22 फरवरी 2016 सुप्रीम कोर्ट ने  कहा कि अगले तीन महीनों में इस मामले में फैसला सुनाया जाए।  इस मामले में कुल 68 लोगों के सामने चार्जशीट फाइल हुई, जिसमें से चार नाबालिग हैं, जबकि 66 वयस्क।

गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड पर गुरुवार 2 जून 2016 को स्पेशल कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। 24 लोगों को दोषी करार दिया गया है और 36 लोग बरी कर दिए गए।
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