नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में मार्च और मई के बीच 5 बार लू चली और तापमान रिकॉर्ड 49.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इससे दिल्ली की उस आधी आबादी का जोखिम बढ़ गया जिनकी आय निम्न है और जो अनौपचारिक बस्तियों में रहती है। विश्व मौसम विभाग (डब्ल्यूएमडी) की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
'यूनाइटेड इन साइंस' शीर्षक वाली रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई जिसमें एक हालिया अध्ययन का भी हवाला दिया गया है जिसमें यह बात सामने आई थी कि जलवायु परिवर्तन ने दिल्ली में लंबे समय तक गर्म मौसम की संभावना 30 गुना अधिक बढ़ा दी है और ऐसी ही स्थिति पूर्व औद्योगिक मौसम में लगभग 1 डिग्री सेल्सियस ठंडी रही होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक 970 से अधिक शहरों में रहने वाले 1.6 अरब से अधिक लोग नियमित रूप से 3 महीने के औसत तापमान के संपर्क में आएंगे जिस दौरान तापमान कम से कम 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा।
डब्ल्यूएमडी के अनुसार पिछले 50 वर्षों में मौसम संबंधी आपदाओं की संख्या में 5 गुना वृद्धि हुई है जिससे औसतन 115 लोगों की जान जाती है और प्रतिदिन 20.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है। रिपोर्ट से पता चला है कि ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता रिकॉर्ड ऊंचाई तक बढ़ रही है। लॉकडाउन के कारण अस्थायी गिरावट के बाद जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन दर अब पूर्व-महामारी के स्तर से ऊपर है।
इसमें कहा गया है कि 2030 के लिए उत्सर्जन में कमी की प्रतिबद्धता पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के अनुरूप 7 गुना अधिक होनी चाहिए। डब्ल्यूएमओ ने एक बयान में कहा कि पिछले 7 साल रिकॉर्ड पर सबसे गर्म रहे। इसकी 48 प्रतिशत संभावना है कि अगले 5 वर्षों में कम से कम 1 वर्ष के दौरान वार्षिक औसत तापमान अस्थायी रूप से 1850-1900 के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा। इसके अनुसार जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ेगा, जलवायु प्रणाली में 'टिपिंग पॉइंट्स' (यानी जब महत्वपूर्ण बदलाव होता है) से इनकार नहीं किया जा सकता।
ऐसे शहर बढ़ते सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का सामना करेंगे, जहां अरबों लोग निवास करते हैं और जो मानवजनित उत्सर्जन में 70 प्रतिशत तक की हिस्सेदारी के लिए जिम्मेदार हैं। इस साल दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चरम मौसम के उदाहरणों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे जोखिम वाली आबादी सबसे अधिक प्रभावित होगी।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने एक वीडियो संदेश में कहा कि बाढ़, सूखा, लू, अत्यधिक तूफान और जंगल की आग बदतर होती जा रही है, इसकी बढ़ती संख्या रिकॉर्ड तोड़ रही है। यूरोप में लू, पाकिस्तान में भीषण बाढ़, चीन, अफ्रीका और अमेरिका में लंबे समय तक गंभीर सूखा। वहां इन आपदाओं के नए पैमाने के बारे में कुछ भी स्वाभाविक नहीं है। वे मानवता के जीवाश्म ईंधन की लत की कीमत हैं।(भाषा)