दोगुनी तेजी से पिघल रही है हिमालय के ग्लेशियरों में जमी बर्फ

Webdunia
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021 (12:37 IST)
नई दिल्ली, बर्फ के विपुल भंडार के कारण दुनिया का तीसरा ध्रुव कहे जाने वाले हिमालयी ग्लेशियर जलवायु-परिवर्तन-जन्य खतरों के साये में हैं।

एक अध्ययन में पता चला है कि बढ़ते तापमान के कारण हिमालयी ग्लेशियर 21वीं सदी की शुरुआत की तुलना में आज दोगुनी तेजी से पिघल रहे हैं। वर्ष 1975 से 2000 और वर्ष 2000 से 2016 तक के दो अलग-अलग कालखंडों में ग्लेशियरों के पिघलने का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन हिमालयी ग्लेशियरों को निगल रहा है। अध्ययन में पता चला है कि वर्ष 1975 से 2000 तक का औसत तापमान; वर्ष 2000 से 2016 की अवधि में एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया था।

शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि इस अंतराल में हिमालय के ग्लेशियर कितनी तेजी से पिघल रहे हैं, इससे स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता है। हालांकि, लगभग चार दशकों में इन ग्लेशियरों ने अपना एक-चौथाई घनत्व खो दिया है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ये ग्लेशियर पतली चादर में परिवर्तित हो रहे हैं, और उनमें टूट-फूट हो रही है।

अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 1975 से 2000 तक जितनी बर्फ पिघली थी, उसकी दोगुनी बर्फ वर्ष 2000 से अब तक पिघल चुकी है। अध्ययन में, भारत, चीन, नेपाल और भूटान के हिमालय क्षेत्र के 40 वर्षों के उपग्रह चित्रों का विश्लेषण किया गया है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए करीब 650 ग्लेशियरों के उपग्रह चित्रों की समीक्षा की है। ये ग्लेशियर हिमालय के क्षेत्र में पश्चिम से पूर्व की ओर 2000 किलोमीटर के दायरे में फैले हुए हैं।

अध्ययन में शामिल अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता जोशुआ मॉरेर ने कहा है कि “यह स्पष्ट है कि हिमालयी ग्लेशियर किस तेजी से, और क्यों पिघल रहे हैं।” उन्होंने कहा है कि भारत समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते तापमान के कारण हर साल करीब औसतन 0.25 मीटर ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जबकि, वर्ष 2000 के बाद से हर साल आधा मीटर ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि हिमालय के ग्लेशियरों की ऊर्ध्वाधर सीमा और और उनकी मोटाई लगातार कम हो रही है। भारत, चीन, नेपाल और भूटान जैसे देशों के करोड़ों लोग सिंचाई, जल विद्युत और पीने के पानी के लिए हिमालय के ग्लेशियरों पर निर्भर करते हैं। इन ग्लेशियरों के पिघलने से इस पूरे क्षेत्र के जल-तंत्र और यहाँ रहने वाली आबादी का जीवन प्रभावित हो सकता है।

उत्तराखंड के चमोली में हुए ताजा हादसे के बाद करीब 18 महीने पुराने इस अध्ययन में दी गई चेतावनी एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गई है। यह अध्ययन, शोध पत्रिका साइंस एडवासेंज में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Reels पर तकरार, क्यों लोगों में बढ़ रहा है हर जगह वीडियो बनाने का बुखार?

क्या है 3F का संकट, ऐसा कहकर किस पर निशाना साधा विदेश मंत्री जयशंकर ने

कौन हैं स्‍वाति मालीवाल, कैसे आप पार्टी के लिए बनी मुसीबत, पिता पर लगाए थे यौन शौषण के आरोप?

रायबरेली में सोनिया गांधी की भावुक अपील, आपको अपना बेटा सौंप रही हूं

कांग्रेस, सपा सत्ता में आई तो राम मंदिर पर बुलडोजर चलाएंगी

सचिन पायलट का बड़ा आरोप, बोले- भारत को विपक्ष मुक्त बनाना चाहती है BJP

Weather Update : राजस्थान-दिल्ली समेत कई राज्यों में प्रचंड गर्मी का अलर्ट, नजफगढ़ में पारा 47 के पार

ममता बनर्जी का दावा, 200 भी पार नहीं कर पाएगी BJP, सत्ता में आएगा विपक्षी गठबंधन

Prajwal Revanna Case : प्रज्वल रेवन्ना का VIDEO, डीके शिवकुमार का नाम और 100 करोड़ की डील, आखिर क्या है सच

शिवपुरी कलेक्टर कार्यालय में भीषण आग, कई विभागों के दस्तावेज जलकर खाक

अगला लेख