होली ने भरा विधवाओं के जीवन में रंग

उमेश चतुर्वेदी
वृंदावन का गोपीनाथ मंदिर इक्कीस मार्च को नई परंपरा का गवाह बना...सदियों से जिंदगी के रंगों से दूर रही विधवाओं की जिंदगी तब रंगीन हो उठी...जब करीब पंद्रह कुंतल गुलाब की पंखुरियों और बारह कुंतल गुलाल मंदिर के सुविस्तारित प्रांगण में उड़ने-बिखरने लगे। 
सिर्फ सफेद साड़ी में लिपटी रहने वाली हजारों विधवाओं ने जमकर गुलाल उड़ाया और फूलों से श्रीकृष्ण संग होली खेलीं। गुलाल और फूलों की बौछार के बीच जैसे विधवाओं की जिंदगी में नया रंग नजर आ रहा था। जानी-मानी सामाजिक संस्था सुलभ इंटरनेशनल द्वारा आयोजित वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में मंगलवार को जबर्दस्त नजारा रहा। इस दौरान वृंदावन और वाराणसी से आई हजारों महिलाओं ने एक-दूसरे को जमकर गुलाल लगाया और फूलों की बौछार की। ये पहला मौका रहा, जब किसी महत्वपूर्ण मंदिर के भीतर विधवाओं ने होली खेली। इस मौके पर पंडित और संस्कृत के छात्रों ने मंत्रोच्चार भी किया। रंगों और पंखुड़ियों के बीच सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक पहचान में ही नहीं आ रहे थे। 
इस खास सामाजिक आयोजन के मौके पर डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक ने कहा कि मंदिरों के शहर वृंदावन में यह पहला मौका है, जब विधवाओं के बीच इन विद्यार्थियों और पंडितों ने भागीदारी की है। डॉक्टर पाठक के मुताबिक, सदियों से वृंदावन में रह रही विधवाओं की जिंदगी में पंडितों की ऐसी भागीदारी उनकी उपेक्षित रही जिंदगी में नई ज्योति लेकर आई है और इसका दूरगामी असर पड़ेगा। 
आपको बता दें कि साल 2012 से वृंदावन और वाराणसी की करीब 1500 विधवाओं की सुलभ इंटरनेशलन देखभाल कर रहा है। सुलभ इन विधवाओं की जिंदगी में रंग भरने और सामाजिक मुख्यधारा में लाने की कोशिशों के तहत तीन साल से उनके लिए होली के त्योहार को मनाने का इंतजाम कर रहा है। तीन साल से विधवाओं के आश्रम में भी सुलभ की पहल पर खासतौर पर होली का त्योहार मनाया जा रहा है। लेकिन यह पहला मौका है, जब किसी जाने-माने और प्रतिष्ठित मंदिर में उनके लिए होली का त्योहार मनाया गया। 
संस्कृत पंडितों और विद्यार्थियों के बीच विधवाओं का होली मनाने का भी यह पहला मौका रहा। डॉक्टर पाठक का कहना है कि इस आयोजन के जरिए उनकी कोशिश विधवाओं को लेकर समाज में सदियों से जारी कुरीतियों को खत्म करना है, जिसके तहत उनके होली मनाने पर रोक रही है।
आमतौर पर सफेद साड़ी पहनने वाली विधवाओं के लिए कई रंगों के करीब 1200 किलो गुलाल और करीब 1500 किलो गुलाब और गेंदे के फूल की पंखुड़ियों का इंतजाम किया गया था। जिनके साथ विधवाओं ने जमकर होली खेली और सदियों पुरानी कुरीति के खिलाफ नई परंपरा स्थापित की। 
 
सुलभ की पहल पर पिछले साल वृंदावन और वाराणसी के आश्रमों में रहने वाली विधवाओं के लिए चार दिनों तक चलने वाले होली महोत्सव का आयोजन वृंदावन में किया गया था। यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि देश के कई हिस्सों में आधुनिकता के दौर में भी होली मनाने पर सामाजिक पाबंदी है। 
 
डॉक्टर पाठक का कहना है कि विधवाओं का होली खेलना दरअसल उनके रंगीन साड़ी पहनने और रंग खेलने जैसे कामों पर रोक के खिलाफ नई पहल का प्रतीक है। पूरी दुनिया में ब्रज की होली मशहूर है, जिसे देखने के लिए दुनियाभर से सैलानी यहां आते हैं। 
 
डॉक्टर पाठक के मुताबिक, ब्रज में यह होली वृंदावन और वाराणसी की विधवाओं के जीवन में निश्चित तौर पर नया रंग भरने में कामयाब होगी, जो दशकों से अपने परिवारों से दूर अकेले जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर हैं।

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