जम्मू। कश्मीर में 32 साल से जारी आतंकवाद से निपट रहे सुरक्षाधिकारियों के लिए यह सोच का विषय हो गया है कि आखिर पत्थरबाज कहां चले गए हैं। साथ ही वे इस बात को लेकर चिंतित होने लगे हैं कि कश्मीर के परिदृश्य में एक बार फिर स्थानीय की जगह विदेशी पाकिस्तानी आतंकी छाने लगे हैं।
हालांकि सुरक्षाबलों ने कई स्लीपर सेलों को नेस्तनाबूद किया है तथा दर्जनों ओजीडब्ल्यू को हिरासत में लिया है, पर वे उन पत्थरबाजों को फिलहाल तलाश नहीं कर पा रहे हैं जो 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर के दो टुकड़े कर दिए जाने के बाद से ही लगातार गायब होते जा रहे हैं।
अगर अधिकारियों पर विश्वास करें तो एलओसी तथा इंटरनेशनल बार्डर से उस पार आने-जाने की कोशिशें नाकाम बना दिए जाने के उपरांत आतंकी स्थानीय पत्थरबाजों को ही हाइब्रिड आतंकी बना रहे हैं। जानकारी के लिए हाइब्रिड आतंकी स्लीपर सेल की ही तरह काम करते हैं जो मौका मिलने वाले पर सुरक्षाबलों पर हमले करने तथा हथियारों की सप्लाई इत्यादि का काम करते हैं।
चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन यह भी है कि इन हाइब्रिड आतंकियों को कश्मीर में ही कई जंगलों में स्थित प्रशिक्षण शिविरों में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसे पकड़े जाने वाले कुछ हाइब्रिड आतंकियों ने भी स्वीकार किया है।
इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि स्थानीय आतंकियों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। अधिकारी दावा करते हैं कि इस साल अभी तक मात्र तीन ही युवा आतंकवाद की ओर मुड़े हैं, जबकि पाकिस्तानी आतंकियों की संख्या बढ़ गई है।
कश्मीर पुलिस इसे आप स्वीकार कर चुकी है कि कश्मीर में अभी भी एक्टिव 200 के करीब आतंकियों में आधे से अधिक पाकिस्तानी हैं जिनके प्रति चौंकाने वाली बात यह है कि वे एलओसी या इंटरनेशनल बार्डर के रास्ते से नहीं बल्कि अन्य रास्तों से कश्मीर में दाखिल हुए हैं और वे श्रीनगर को ही ठिकाना बनाए हुए हैं। यह इससे भी साबित होता है कि कश्मीर में इस साल जनवरी में मारे गए आतंकियों में आधे पाकिस्तानी ही थे।