IMD अगले मानसून से जारी करेगा मलेरिया के प्रकोप का पूर्वानुमान

Webdunia
शनिवार, 7 नवंबर 2020 (18:54 IST)
नई दिल्ली। भारत का मौसम विज्ञान विभाग (IMD) अगले मानसून से मलेरिया के प्रकोप का पूर्वानुमान जारी करने की शुरुआत करेगा। यह जानकारी पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन ने शनिवार को दी।

भारतीय विज्ञान अकादमी द्वारा ‘मौसम एवं जलवायु पूर्वानुमान में हुई प्रगति’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोलते हुए राजीवन ने कहा कि भारत की योजना उच्च दक्षता कंप्यूटिंग (एचपीसी) क्षमता को मौजूदा 10 ‘पेटाफ्लॉप्स’ से बढ़ाकर 40 ‘पेटाफ्लॉप्स’ करने की है और इससे मौसम पूर्वानुमान में उल्लेखनीय मदद मिलेगी।उन्होंने बताया कि इस समय एचपीसी के मामले में भारत का अमेरिका, ब्रिटेन और जापान के बाद स्थान है।

उल्लेखनीय है कि पिछले हफ्ते पृथ्वी विज्ञान विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि राष्ट्रीय मानसून मिशन और एचपीसी पर करीब 990 रुपए खर्च किए गए हैं और इसका लाभ इस निवेश के मुकाबले 50 गुना अधिक है।

संगोष्ठी के बाद राजीवन ने कहा कि ‘वेक्टर जनित’ (मच्छर आदि से फैलने वाली बीमारी) बीमारियों के प्रकोप का पूर्वानुमान लगाने के बारे में आईएमडी ने मलेरिया होने का वर्षा एवं तामपान से संबंध का अध्ययन किया है।

उन्होंने कहा, आईएमडी ने सबसे पहले नागपुर से मिले मलेरिया के आंकड़ों का अध्ययन किया है। यह अन्य स्थानों पर भी लागू होगा। इससे बड़े पैमाने पर मलेरिया का पूर्वानुमान लगाना संभव हो सकेगा।राजीवन ने कहा कि इसी तकनीक का इस्तेमाल डेंगू और हैजा जैसी मानसून संबंधी बीमारियों के पूर्वानुमान में किया जाएगा।

उन्होंने कहा, आईएमडी मलेरिया का पूर्वानुमान लगाने की सेवा अगले मानसून में शुरू कर देगा।उल्लेखनीय है कि विश्व मलेरिया रिपोर्ट- 2019 के अनुसार अफ्रीका के उप सहारा क्षेत्र में बसे 19 देशों और भारत में दुनिया के करीब 85 प्रतिशत मलेरिया के मामले आते हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के मुताबिक, देश में मलेरिया के सबसे अधिक मामले पूर्वी और मध्य भारत व उन राज्यों से आते हैं जहां जंगल, पहाड़ और आदिवासी इलाके हैं। इन राज्यों में ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर के राज्य जैसे त्रिपुरा, मेघालय मिजोरम शामिल हैं।

भारत में मलेरिया के मामलों में लगातार कमी आ रही है। वर्ष 2001 में देश में मलेरिया के 20.8 लाख मामले आए थे जबकि वर्ष 2018 में इनकी संख्या चार लाख के करीब रही।(भाषा)

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