बंगाल में ममता के राज में बचपन से खिलवाड़, 45.5% से अधिक किशोर-किशोरियां एनेमिया के शिकार

विशेष प्रतिनिधि
गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019 (09:46 IST)
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भले ही प्रदेश को खुशहाल बनाने का लाख दावा कर रही हो लेकिन केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट ने उनके दावे पर सवालिया निशान खड़े कर दिए है।

केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के देश में पहली बार कराए गए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में पता चला है कि पश्चिम बंगाल में 45 फीसदी से अधिक किशोर- किशोरियाँ एनेमिक हैं जोकि देश में सबसे अधिक है, जबकि स्कूली बच्चों में एनीमिया मे पश्चिम बंगाल 5-9 साल के 34% एनीमिक बच्चों के साथ शीर्ष 5 सबसे खराब राज्यों में से एक है।
 
रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल में 62.0% किशोर लड़कियां और 29.6% लड़के एनीमिक हैं। रिपोर्ट के अनुसार प्री-स्कूल के बच्चों में (1-4 वर्ष), 49.2% लड़के और 41.8 लड़कियां एनीमिक हैं, जबकि 5-9 साल की उम्र के बीच, 34.3% लड़के और 34.1% लड़कियां एनीमिक हैं।
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चाइल्ड राइट्स अड्न यू (पूर्व) की क्षेत्रीय निदेशक, त्रिना चक्रवर्ती बताती हैं की “सरकार का पहला व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS) पश्चिम बंगाल में कुपोषण से संबंधित सभी संकेतकों में सुधार दिखा रहा है।

CNNS में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में ठिगनापन और कम वजन के प्रतिशत में उल्लेखनीय गिरावट आई है, लेकिन एनीमिया अभी भी चिंता का प्रमुख मुद्दा है। पश्चिम बंगाल में किशोरों में एनीमिया देश में सबसे ज्यादा है। अनेमिया की स्थिति 10-19 वर्ष की लड़कियों के साथ और भी बदतर है। इस आयु वर्ग की 62.0% बच्चियाँ एनेमिक है।
 
उन्होंने आगे कहा कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्य, जो बाल विवाह में अव्वल है वहाँ इस स्तर पर  किशोरियों में एनीमिया होना मातृ और बाल स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता हैं।

“हमें भुखमरी के दुष्चक्र को तोड़ने की जरूरत है, क्योंकि हम सभी जानते हैं कि किशोरियों की जल्दी शादी, जल्दी बच्चे पैदा करने की ओर ले जाती है जो कम उम्र की माताओं और बच्चों दोनों की पोषण स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। बाल विवाह को रोकने के लिए हमें बच्चों और गरीब परिवारों के लिए बेहतर शिक्षा सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी योजनाएं बनाने की जरूरत है।
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बंगाल में कुपोषण चिंता का विषय - रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल में 5 साल से कम उम्र के 25.3% बच्चों को ठिगनापन (उम्र के लिए ऊंचाई) है, जबकि 20.1% बच्चो मे दुबलापन (ऊंचाई के लिए वजन) और 30.9% कम वज़न (उम्र के अनुसार वजन का न होना) के बच्चे हैं।

बंगाल में बच्चों में दुबलापन  अभी भी चिंता का एक प्रमुख विषय है। पश्चिम बंगाल में NFHS 4 मे 5 वर्ष से कम उम्र के 20.3% बच्चो मे दुबलापन दर्शाया गया था, जबकि CNNS में यह घटकर केवल 20.1% रह गई। यानि मात्र 0.2% का ही सुधार आया है।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का कहना है कि बच्चों में दुबलापन तीव्र कुपोषण का लक्षण है और यह प्रतिरक्षा प्रणाली की कार्यप्रणाली को बाधित करता है और संक्रामक रोगों की गंभीरता और संवेदनशीलता को बढ़ा सकता है।
 
राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS)  ने देश के 30 राज्यों में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 112,316  प्री-स्कूल, स्कूली बच्चों, और किशोरों को कवर करने वाला पहला राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण है। स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय ने यह सर्वेक्षण 2016-2018  के बीच किया है।

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