नई दिल्ली। भारत ने साल 2018 में 1.1 करोड़ नौकरियां गंवाईं और इनमें से 90 लाख नौकरियां तो केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही खत्म हुई हैं। भाजपा नीत राजग सरकार के 5 साल के कार्यकाल पर सिविल सोसाइटी संगठनों के एक समूह ने एक आरोप पत्र जारी कर यह दावा किया।
आम चुनाव शुरू होने से हफ्तेभर पहले जारी किए गए दस्तावेजों के मुताबिक नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के चलते 35 लाख नौकरियां खत्म हुईं। इसने दावा किया है कि 2015 से राज्यों में भूख से बच्चों सहित कम से कम 75 लोगों की मौत हुई। इसने मौत की वजह लंबे समय तक भूखे रहने को बताया है।
आरोप पत्र के मुताबिक इनमें से 42 लोगों की मौत इस वजह से हुई कि उन्हें राशन देने से इंकार कर दिया गया, क्योंकि उनके आधार को योजना से नहीं जोड़ा गया था या योजना में उन्हें शामिल नहीं किया गया था, हालांकि इसने अपने आंकड़ों का स्रोत नहीं बताया है।
विभिन्न अभियानों के प्रतिनिधियों ने यहां पीपुल्स एजेंडा या जन सरोकार 2019 की घोषणा करते हुए राजनीतिक दलों से जवाबदेही की मांग की। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वे दिन गए, जब राजनीतिक दल खोखले वादे किया करते थे।
यह घोषणा भी की गई कि विभिन्न सिविल सोसाइटी समूह अपनी चिंताएं मुखरता से उठाने के लिए दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में 6 अप्रैल को जुटेंगे। उस दिन जन सरोकार कार्यक्रम में शामिल होने वाले राजनीतिक दलों में कांग्रेस, माकपा, भाकपा, द्रमुक, राजद, तृणमूल कांग्रेस, आप, तेदेपा, राकांपा, जेडीएस, भाकपा (एमएल), लोजद और स्वराज इंडिया शामिल हैं।
उनकी मांगों में संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने, वन अधिकार अधिनियम को अक्षरश: लागू करने, पीडीएस को सार्वभौम करने और जन स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि करना शामिल है।
दस्तावेज के मुताबिक आरोप पत्र में यह भी आरोप लगाया गया है कि राजग सरकार ने 'मिड डे मील' के खर्च में कटौती की। इसे वर्ष 2014-15 के 10,523 करोड़ रुपए से घटाकर 2018-19 में 9,949 करोड़ रुपया कर दिया गया। दस्तावेज में आरोप लगाया गया है कि आरटीआई अर्जियों का लंबित रहना 2014-15 के 8.5 लाख से बढ़कर 2017-18 में 14.5 लाख हो गया। (भाषा)