भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन'

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राष्ट्रगान हो या राष्ट्रध्वज इनकी अनुभूति मात्र से ही मन में राष्ट्रभक्ति हिलोरे लेने लगती है। राष्ट्र के  सम्मान का प्रतीक राष्ट्रगान 'जन गण मन' हिन्दुस्तानियों की रग-रग में जोश भरता है। उन्हें अपने देश और देशवासियों के प्रति सम्मान की प्रेरणा भी देता है राष्ट्रगान।
 
 
1. रचनाकार : राष्ट्रगान जन गण मन की रचना नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने की थी। राष्ट्रगान को मूलत: बंगाली में लिखा गया था, जिसका बाद में हिन्दी अनुवाद किया गया। स्वयं रवींद्रनाथ टैगोर ने ही इसका अंग्रेजी अनुवाद 'दि मॉर्निंग सांग ऑफ इंडिया' शीर्षक से 1919 में किया था। 
2. पांच पद : रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे गए गान में पांच पद हैं, ज‍बकि राष्ट्रगान के रूप में इसके पहले पद को ही अपनाया गया। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपनी आजाद हिंद फौज में 'जय हे' नाम से इस गीत को स्वीकार किया था।
 
3. पहली बार प्रकाशन : राष्ट्रगान का पहली बार प्रकाशन 1912 में 'तत्वबोधिनी' नामक पत्रिका में हुआ था। इसका शीर्षक था ‘भारत विधाता'। 
 
4. पहली बार गायन : इसे सर्वप्रथम 27 दिसंबर 1911 को कांग्रेस के कलकत्ता (अब कोलकाता) अधिवेशन में बंगाली और हिन्दी दोनों भाषाओं में गाया गया। आर्थिक-सामाजिक नजरिए से परिपूर्ण इस राष्ट्रगान में सांप्रदायिक सद्भाव झलकता है। 
5. राष्ट्रगान के रूप में मान्यता : संविधान समिति ने 24 जनवरी, 1950 को 'जन गण मन' को राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया। तेलंगाना के जम्मीकुंटा गांव और हरियाणा में फरीदाबाद जिले के भनकपुर गांव में हर सुबह सामूहिक रूप से राष्ट्रगान गाया जाता है। 
 
6. अवधि : राष्ट्रगान के गायन की अवधि 52 सेकंड है। कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है। इसमें प्रथम और अंतिम पंक्तियां ही बोलते हैं। इसमें लगभग 20 सेकंड का समय लगता है। 
 
7. राष्ट्रगान का सम्मान : भारतवासियों से अपेक्षा की जाती है कि जिस समय राष्ट्रगान बज रहा हो या फिर उसे गाया जा रहा हो तो वे उसके सम्मान में सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाएं। 
8. नियम : राष्ट्रध्वज फहराने और परेड के साथ केन्द्र और राज्य सरकारों के विभिन्न कार्यक्रमों में राष्ट्रगान बजाया और गाया जाता है। दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर भी राष्‍ट्रपति के राष्‍ट्र को संबोधन से तत्‍काल पूर्व और उसके पश्‍चात राष्ट्रगान बजाने का नियम है। इसके अतिरिक्त ऐसे अवसरों की लंबी सूची है, जिनमें राष्ट्रगान बजाने और गाने की परंपरा है। 
 
9. राष्ट्रगान की गरिमा : सामूहिक रूप से राष्‍ट्रगान को गाने पर तब तक कोई आपत्ति नहीं है, जबकि इसे मातृभूमि को सलामी देते हुए आदर के साथ गाया जाए और इसकी गरिमा को बनाए रखा जाए। विद्यालयों में भी सामूहिक रूप से दिन की शुरुआत में राष्ट्रगान गाने की परंपरा है। 
 
10. विवाद : सबसे पहले राष्ट्रगान से विवाद 1987 में जुड़ा था, जब सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बिजोय एम्मानुएल बनाम केरल राज्य के एक वाद में उठाया गया था। इस मामले में कुछ विद्यार्थियों को स्कूल से इसलिए निकाल दिया गया था, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रगान गाने से मना कर दिया था। हालांकि यह विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्रगान के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे। अदालत ने इनकी याचिका स्वीकार कर कहा था कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान करता है, पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। ऐसे में उस व्यक्ति को प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। 
इसके अलावा एक विवाद राष्ट्रगान से इसकी शुरुआत से जुड़ा रहा। इसके बारे में कहा जाता था कि यह जॉर्ज पंचम की प्रशस्ति में लिखा गया है। हालांकि स्वयं गुरुदेव ने इसका खंडन किया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक आदेश में कहा था कि सिनेमाघरों में फिल्म खत्म होने पर राष्ट्रगान बजाया जाना चाहिए। इसका काफी विरोध भी हुआ था, बाद में शीर्ष अदालत ने अपना निर्णय वापस ले लिया। राष्ट्रगान के सिंध शब्द पर भी कई बार आपत्ति जताई गई और इसे हटाने के लिए अदालत का दरवाजा भी खटखटाया गया। दरअसल, सिंध इस समय पाकिस्तान का हिस्सा है।

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