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नशे में है टीवी मीडिया, गंजेड़ी IIT बाबा की तरह उसे भी समझ नहीं आ रहा है कि वो क्‍या कहे और क्‍या दिखाए?

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नवीन रांगियाल

देश में जनसंख्‍या, बेरोजगारी और बीमारियों के साथ ही दो ऐसी चीजें भी हैं, जिनकी संख्‍या में लगातार इजाफा होता जा रहा है— एक है मदारी और दूसरे तमाशबीन। मदारी यानी तमाशा दिखाने वाला और तमाशबीन यानी वे लोग जो ये तमाशा देखने के लिए उत्‍सुक और तत्‍पर हैं। देश में तमाशबीनों की संख्‍या इसलिए बढ़ रही है, क्‍योंकि वे बेराजगार हैं, उनके पास देखने के अलावा कोई काम नहीं है। जबकि मदारियों की संख्‍या इसलिए बढ़ रही है, क्‍योंकि उन्‍हें अपने आकाओं ने ऐसा करने के लिए आदेश दिया है और उन्‍हें ऐसा कर के अपना रोजगार भी बचाना है। एक बेरोजगार है और दूसरा रोजगार का मारा।

कुछ दशक पहले बंदर और भालू आदि नचाकर जीविकोपार्जन करने वाले दृश्‍य सिर्फ सड़कों पर नजर आते थे, किंतु अब यह तमाशा नेशनल न्‍यूज चैनल में तकरीबन रोजाना शाम को प्राइम टाइम में किया जा रहा है। जो काम आमतौर पर बगैर किसी स्‍क्रिप्‍ट पर सड़कों पर होते हैं— वो अब स्‍क्रिप्‍ट के साथ टीवी चैनल्‍स पर किए जा रहे हैं। मीडिया मदारी बन गया है और जनता न चाहते हुए भी तमाशबीन बन गई है। भारतीय टीवी मीडिया भले ही टीआरपी के झंडे गाडकर नंबर वन के ग्राफ को छू रही है, लेकिन ठीक इसी वक्‍त में वो अपनी जेहनी मुफलिसी के दौर से भी गुजर रही है। जहां सामाजिक सरोकार से लेकर वैचारिक बहसों के लिए कहीं कोई जगह नहीं है।

देश के मीडिया को वायरल कंटेंट के नाम पर आईआईटी बाबा, हर्षा रिछारिया और मोनालिसा नाम के कुछ झुनझुने मिल गए हैं। ये झुनझुने देश के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन कुंभ की पैदाइश हैं। इन्‍हें पैदा करने में यूट्यूबर और रीलबाजों का श्रम है तो टीवी मीडिया इन्‍हें अपनी टीआरपी के लिए ‘इनकैश’ कर रहा है। क्‍योंकि भारतीय इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया के पास इतनी कुव्‍वत नहीं बची है कि वो देश के दूसरे मुद्दों पर काम करें।

ऐसा नहीं है कि मीडिया को नहीं पता है कि शेयर बाजार में लगातार गिरावट हो रही है और छोटे निवेशक डूब रहे हैं। या उन्‍हें ये नहीं पता है कि बेरोजगारी भी एक मुद्दा है। महंगाई एक स्‍थाई मुद्दा बन गया है। तकरीबन हर राज्‍य में क्षेत्रीय मुद्दों की भरमार है। मीडिया सब जानती है, जैसे जनता सब जानती हैं, लेकिन मीडिया उन तमाम मुद्दों में क्‍यों हाथ डालेगी, जहां उनकी टीआरपी के ग्राफ को कोई फायदा नहीं। उन्‍हें पता है तमाशा ही बिकेगा और तमाशा ही चलेगा।

अगर उसे सामाजिक सरोकार की चिंता होती तो महाकुंभ की भगदड़ में मरने वाले लोगों के आंकड़े पर वो सरकारी विज्ञप्‍ति के भरोसे नहीं रहता, यह पता लगाने के लिए कि हकीकत में कितने लोग मरे हैं वो इन्‍वेस्‍टिगेट करता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अगर मीडिया को फिक्र होती तो वो चमोली में बर्फ में फंसे मजदूरों की बात करता, किंतु कई दिनों तक ऐसा नहीं हुआ, जब टीवी चैनल्‍स को हर्षा रिछारिया के इंटरव्‍यू दिखाने से फुर्सत मिली तब जाकर उसने कुछ फुटेज चमोली हादसे के दिखाए। भारतीय टीवी मीडिया के पतन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुंभ के समुद्र मंथन में निकले गंजेड़ी आईआईटी बाबा की हरकतों के दृश्‍यों को लगातार टीवी स्‍क्रीन पर दिखाया जा रहा है। यहां तक कि उसे एक टीवी डिबेट में भी बुला लिया गया। पाकिस्‍तान से आई सीमा हैदर की गोद भराई आज ट्रेंड में है। सोमवार को एक्‍स पर बने सीमा हैदर ट्रेंडिंग के बाद टीवी वालों ने इसे लपक लिया है। यह सब नहीं होने पर टीवी वालों के पास कोई सनसनीखेज क्राइम या पत्‍नी से पीड़ित पति की आत्‍महत्‍या का सुसाइड वीडियो होता है।

ये वही मीडिया है जिसने पाकिस्‍तान से आई सीमा हैदर की कुंडली खंगाल ली थी, लेकिन यह नहीं बता सका था कि मणिपुर हिंसा में कितनी हत्‍याएं और गैंगरेप हुए हैं। यह वही मीडिया है जो एक नृशंस हत्‍या और कुछ राजनीतिक बयानबाजी का इंजतार करता है। ये हो जाए तो बस, इतनेभर से मीडिया का काम चल जाता है।

तो कुल मिलाकर मीडिया ने तो अपनी भूमिका तय कर के उसे सरेआम कर दिया है कि वो तो यही तमाशें दिखाएगा। वो सिर्फ अपनी टीआरपी के लिए काम करेगा। तो अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्‍या जनता ने भी यह घोषणा कर दी है कि हमेशा तमाशबीन की भूमिका में रहेगी। क्‍या उसके पास अब चैनल स्‍विच करने का भी विकल्‍प नहीं रहा। या उसे भी गंजेड़ी आईआईटी बाबा का ड्रामा और मोनालिसा की आंखें और मोहक मुस्‍कान देखने का रस आने लगा है।

आईआईटी बाबा के खीसे से तो गांजे की कुछ मात्रा ही मिली है, लेकिन भारतीय टीवी मीडिया आखिर किस नशे में है कि उसे यह समझ नहीं आ रहा है कि वो अपनी स्‍क्रीन पर क्‍या कहे और क्‍या दिखाए।

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