प्रलय की घड़ी में कौन हिन्दू, कौन मुस्लिम और कौन सिख

Webdunia
शुक्रवार, 12 सितम्बर 2014 (22:22 IST)
-सुरेश एस डुग्गर
 
श्रीनगर। कश्मीर में भयंकर बाढ़ के कारण आई बाढ़ की प्रलय की घड़ी में सब लोग एक बात को भूला बैठे हैं। वह यह कि कौन हिन्दू है, कौन सिख है और मुस्लिम। कश्मीर में कई राहत शिविरों और शरणस्थलों में जो सौहार्द दिख रहा है, वह महात्मा गांधी के सपनों का भारत ही है।
 

 
ऐसे कई नजारे सेना और स्थानीय प्रशासन द्वारा लगाए गए राहत शिविरों में तो दिख ही रहे हैं साथ ही साथ स्थानीय लोगों द्वारा बनाए गए राह शरणस्थलों में भी आम हैं। कहीं मुस्लिमों ने गुरूद्वारों में शरण ले रखी है तो कहीं हिन्दुओं और सिखों ने मस्जिदों के भीतर पनाह ली हुई है।
 
अगर दूसरे शब्दों में कहें तो जम्मू कश्मीर में आई भीषण बाढ़, क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द का एक जीवंत उदाहरण बन गई है। ऐसा ही एक उदाहरण हैदरपुरा इलाके की जामा मस्जिद पेश कर रही है जो कश्मीर घाटी में बाढ़ से पीड़ितों के लिए एक बड़ी राहत केंद्र में बदल चुकी है। महिलाओं और बच्चों सहित सैंकड़ों लोगों ने यहां शरण ले रखी है।
 
महत्वपूर्ण बात यह है कि आपदा के इस पल में यह मस्जिद सांप्रदायिक सौहार्द का एक प्रतीक बनी हुई है। काम के लिए राज्य के बाहर से आए कुछ हिंदुओं ने भी यहां शरण ले रखी है। यह शिविर अभी बाढ़ से प्रभावित नहीं हुआ है। घाटी के विभिन्न हिस्से से आने वालों ने दु:ख और दर्द की आपबीती सुनाई है।
 
उन लोगों ने बताया कि किस तरह रिहायशी इलाके में पानी आने लगा, कैसे जलस्तर बढ़ता गया और कैसे कुछ खुद और कुछ सेना तथा अन्य स्थानीय लोगों की मदद से जान बचा पाए।
 
सरकारी कर्मचारी 58 वर्षीय बसीर अहमद अखून ने कहा कि जब पानी तेजी से बढ़ने लगा तो मैं परिवार के अन्य तीन सदस्यों के साथ रविवार की शाम घर से निकला। मैंने एक नाव की व्यवस्था की और सबसे पहले अपनी बेटी को मस्जिद में भेजा। इसके बाद बाकी लोगों को भेजा। उसके बाद से हम मस्जिद में रह रहे हैं। 
 
60 वर्षीय खालिदा अख्तर ने बताया कि वह और उनके परिवार के छह अन्य लोगों ने तंगपुरा में पानी बढ़ने पर रविवार की रात अफरातफरी में अपना घर छोड़ा था। अख्तर ने कहा कि हमने पहले एक अस्पताल में शरण ली। लेकिन, अस्पताल का भवन भी खतरे में था और पुलिस को मदद के लिए काल किया गया। आधी रात के वक्त सेना आई और हमें बचाया। मैं उन सबकी एहसानमंद हूं। बेघर लोगों को आश्रय देने के लिए मस्जिद के संचालकों का भी अख्तर ने शुक्रिया अदा किया।
 
उनके बेटे मोहम्मद हारुन ने कहा कि अस्पताल में 2000 लोग थे, जिन्हें उस रात सेना ने बचाया। उन्होंने कहा कि पुलिस को कॉल किया गया लेकिन, सेना हमें बचाने के लिए आई। हम अपनी नई जिंदगी के लिए उनके शुक्रगुजार हैं। हैदरपुरा जामा मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष हाजी गुलाम नबी डार ने कहा कि मस्जिद में हर दिन करीब 2400 लोग भोजन करते हैं। उन्होंने बताया कि बारामुल्ला, कुपवाड़ा और सोपोर जैसी जगहों पर प्रभावित लोग भी आश्रय के लिए आए हैं। 
 
उन्होंने कहा कि हमने शुक्रवार की रात शिविर लगाने का फैसला किया जब हमने देखा कि बाढ़ का पानी बढ़ता जा रहा है। डार ने कहा कि शिविर चलाने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है और राहत सामग्री आम लोगों की तरफ से आ रही है।
 
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