बाप का किया बच्चे भुगत रहे हैं कश्मीर में

सुरेश एस डुग्गर
श्रीनगर। पिचहत्तर हजार से अधिक कश्मीरियों पर वह कहावत पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है जिसमें कहा जाता है कि लम्हे अगर खता करते हैं तो सजा सदियों को मिलती है। असल में 75 हजार से अधिक कश्मीरी नागरिकों को रीजनल पासपोर्ट आफिस ने पासपोर्ट जारी करने से इसलिए इंकार कर दिया है क्योंकि वे किसी न किसी रूप में आतंकियों या उनके सहयोगियों के रिश्तेदार रहे हैं। इन सभी को ब्लैक लिस्ट में डाला गया है।
 
जिन कश्मीरियों को पासपोर्ट जारी करने से इंकार किया गया है उनमें से अधिकतर छात्र हैं जो या तो विदेशों में पढ़ाई करने के लिए जाना चाहते हैं या फिर विदेशी स्कूलों-कॉलेजों या प्रोफेशनल विश्वविद्यालयों से स्कालरशिप पाकर विदेश जाना चाहते हैं। उसके बाद दूसरे नंबर पर बिजनेसमैन आते हैं, जिन्हें व्यापार के लिए अन्य देशों में जाना है।
 
इंटरनेशनल लॉ की धारा 12 के तहत घूमने-फिरने का दिया गया अधिकार कश्मीर की विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां इन लोगों से इसलिए छीन रही हैं क्योंकि वे तो नहीं बल्कि उनके सगे संबधी सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर आतंकी गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। ऐसे मामलों में पासपोर्ट के लिए आवेदन करने वालों का कहना था कि आखिर हमारा क्या कसूर है अगर हमारा कोई रिश्तेदार या परिवार का सदस्य आतंकी था या फिर आतंकी गतिविधियों में शामिल रहा था।
 
ताजा घटना में पासपोर्ट आफिस ने अलगाववादी नेता शब्बीर शाह की बेटी समां शब्बीर शाह को पासपोर्ट देने से इंकार कर दिया। वह लंदन में एलएलबी की पढ़ाई करना चाहती है। पिछले साल भी पाकिस्तान में रह रहे आतंकी नेता मुश्ताक जरगर की बेटी को पासपोर्ट इस तर्क के साथ नहीं दिया गया था कि उसका बाप आतंकी है।
 
हालांकि पिछले कुछ साल पहले ऐसे ही कई मामलों में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दखलंदाजी करते हुए कुछ उन कश्मीरियों को पासपोर्ट दिलवाने में सहायता की थी जिनका कोई न कोई रिश्तेदार किसी न किसी तरह से आतंकवाद से जुड़ा हुआ था। पंपोर का साकिब इतना खुशकिस्मत नहीं था जिसके बाप के आतंकी होने की सजा उसे भुगतनी पड़ी थी। 
 
उसका बाप गुलाम मोहिउद्दीन 1998 में सुरक्षाबलों के हाथों मारा गया था और अब साकिब लंदन के एक संस्थान से मिली स्कालरशीप पर पढ़ने के लिए जाना चाहता था पर सुरक्षा एजेंसियों ने उसे इस आधार पर रोक लिया कि उसके बाप ने जो कसूर किया है, उसकी सजा उसका बेटा भुगते।
 
ऐसे करीब 75 हजार मामले हैं जिनमें सुरक्षा एजेंसियों द्वारा आपत्ति इसी आधार पर दर्ज की गई है कि उनके सगे-संबंधी या रिश्तेदार आतंकी थे या फिर आतंकवाद का समर्थन करते रहे हैं। ऐसे लोगों में वे भी शामिल हैं जो हज पर जाना चाहते हैं, लेकिन इसी के चलते वंचित हो गए। ऐसा सिर्फ कश्मीर में ही नहीं बल्कि जम्मू संभाग में भी हो रहा है।

इस संबंध में श्रीनगर के रीजनल पासपोर्ट अधिकारी का कहना था कि वे तो सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट मिलने के बाद ही संबंधित लोगों को पासपोर्ट जारी कर सकते हैं। अतः उनका इस मामले में सीधा कोई लेना-देना नहीं है। याद रहे बिना सीआईडी रिपोर्ट के राज्य में पासपोर्ट नहीं मिलता है जबकि तत्काल पासपोर्ट की सुविधा जम्मू कश्मीर के लोगों को प्राप्त नहीं है। ऐसे में अगर पाक कब्जे वाले कश्मीर में 6 दिनों में पासपोर्ट मिल जाता है तो जम्मू कश्मीर में इसके लिए आपको 6 साल भी इंतजार करना पड़ सकता है।
 

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