Kashmiri Pandit: 19 जनवरी 1990 का वो खौफजदा मंजर, जिसे याद कर आज भी चीख निकल जाती है

नवीन रांगियाल
यह वो तारीख है, जिसकी आहटभर से कश्‍मीरी पंडि‍तों की आह निकल जाती है। जब उनके घर उजाड़ दिए गए, जला दिए गए, पंडि‍त महिलाओं के साथ दुष्‍कर्म किए गए, उनके सामने उनके घरों को जमींदोज कर उन्‍हें कश्‍मीर घाटी से खदेड़ देने के बेदर्द फरमान सुना दिए गए। अपने उसी दर्द को याद दिलाने के लिहाज से कश्‍मीरी पंडि‍त हर साल 19 जनवरी को कश्‍मीर विस्‍थापन या निर्वासन दिवस मनाते हैं।

19 जनवरी की तारीख कश्मीरी पंडितों के दर्द का ताजा कर देती है, यह तारीख जब भी आती है उनकी विस्‍थापना के घाव हरे हो जाते हैं। कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 समाप्‍त होने के बाद कश्‍मीरी पंडि‍तों के लिए यह उम्‍मीद भी जागी है कि उनके विस्‍थापन का दर्द भी एक दिन खत्‍म होगा। अपनी जमीन और अपने पुरखों की निशानियां उन्‍हें एक दिन फि‍र से हासिल होगीं।

हालांकि कश्‍मीरी पंडि‍त कभी भी अपने इस दर्द को याद नहीं करना चाहते हैं, लेकिन वे हर साल 19 जनवरी को निर्वासन दिवस मनाकर यह याद दिलाना चाहते हैं कि यही वो दिन है जब उनके घरों को उजाड़ दिया गया था, आग लगा दी गई थी और उन्‍हें एक खौफनाक घोषणा के बाद उन्‍हें अपने इस पिंड से निर्वासित होना पड़ा था।

कई सालों से लगा रहे गुहार कश्मीरी पंडित बीते 30 सालों से देश-विदेश में विभिन्न मंचों पर अपने लिए इंसाफ की मांग कर रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षो में कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी के लिए कई कॉलोनियां बनाने के साथ उनके लिए रोजगार पैकेज का भी ऐलान किया है। बावजूद इसके अब तक कुछ ही परिवार कश्मीर वापसी पैकेज के तहत श्रीनगर लौट सके हैं।

प्रधानमंत्री पैकेज के तहत रोजगार पाने वाले भी ट्रांजिट कॉलोनियों में ही सिमट कर रह गए हैं। हालांकि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटने के बाद विस्थापित कश्मीरी पंडितों में भी उम्मीद की एक नयी किरण जागी है कि वे एक दिन फि‍र से अपनी घाटि‍यों में लौट सकेंगे।

ब‍ता दें कि 1990 में कश्‍मीरी पंडितों में खौफ पैदा करने के लिए उन्‍हें चुन-चुनकर मौत के घाट उतारा गया था। पंडित समुदाय की महिलाओं के साथ दुष्कर्म और हत्या की घटनाओं को अंजाम दिया गया। गली-बाजारों पोस्टर लगाकर, मस्जिदों की लाउड स्पीकरों पर कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने या मरने का फरमान सुनाया जाता था। पंडितों को उनके घर से खदेड़ा गया। हद तो तब हो गई जब पंडितों के निर्वासन और एग्जोडस को विस्थापन का नाम दे दिया है।

आज कश्‍मीरी पंडित अपने ही देश में निर्वासित हैं। उसके निर्वासन की उपेक्षा हो रही है। भारत को टुकड़े करने का नारा देने वालों की सुनी जा रही है, भारत बचाने की गुहार करने वालों को लताड़ा जा रहा है।

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