ऑक्सीजन को तरसते हैं फेफड़े यहां...

सुरेश डुग्गर
गली पिंडी (पुंछ-राजौरी)। इसे सुनकर हैरान हो सकते हैं कि सिर्फ कारगिल के पहाड़ों में ही नहीं बल्कि राजौरी और पुंछ के सेक्टरों में भी कई सीमा चौकियां एलओसी पर ऐसी हैं, जहां खड़े होकर आप सामान्य रूप से सांस नहीं ले सकते। फेफड़े ऑक्सीजन के लिए परेशान होने लगते हैं और सांस फूलने लगती है। यही नहीं रक्त वाहिनियां भी ऑक्सीजन के लिए फड़फड़ाने लगती हैं। यह सच है कि 11 से 12 हजार फुट की ऊंचाई पर सामान्य रूप से कैसे रहा जा सकता है।
और यहीं पर हमारे जवान डटे हुए हैं। गली पिंडी सीमा चौकी के एक ओर गुंतरियां और सामने पाकिस्तान का शाहपुर इलाका है। चारों ओर बर्फ से ढंका हुआ। बर्फ यहां पर अप्रैल के अंत तक रहती है। यहां तैनात हमारे जवान दुश्मन के गोले और गोलियां झेल रहे हैं, बर्फ भी उन्हें मौत देती है अक्सर। ये वे जवान हैं जो तोपखानों को भी संभालते हैं। दुनिया में सबसे बेहतरीन सिपाही अगर किसी को कहा जा सकता है तो सिर्फ इन्हें।
 
वाहन नीचे चार किमी दूर तक ही आता है। उसके बाद प्रत्येक सिपाही को अपनी पीठ पर सामान को उठाकर चौकी तक पहुंचना होता है। यहां तक कि गोला-बारूद और तोपखाने भी। प्रत्येक पीठ पर अक्सर दिन में 40 से 50 किलो का वजन ढोया जाता है सांस उखाड़ देने वाली चार किमी की चढ़ाई में।
 
जवानों की दशा भी अच्छी नहीं होती। तनाव और दुश्मन की उकसावे वाली कार्रवाइयों का परिणाम यही है कि जवानों के पास दैनिक नित्यकर्म की जरूरतों से निबटने का समय भी नहीं होता। जीवन तो कुछ है ही नहीं। मौत का खौफ अवश्य होता है ऐसी चौकियों पर जिससे जूझना ठीक उसी प्रकार होता है जिस प्रकार ऑक्सीजन की कमी से फेफड़े तथा धमनियां जूझती हैं। हालांकि यह तो उनका साहस कहा जा सकता है तो ऐसी परिस्थितियों को झेलते हैं। 
 
वर्तमान परिस्थितियों में दुश्मन कब गोलों की बरसात शुरू कर दे या फिर चौकी पर कब्जा जमाने के लिए कमांडों रेड कर दें, कहा नहीं जा सकता। जवानों को इससे जूझना होता है। इसके लिए हरदम तैयार रहना होता है। ऐसी कई चौकियां हैं इन दोनों सेक्टरों में, जहां तक पहुंचने के लिए मौत के रास्ते से गुजरकर जाना होता है। मौत का रास्ता इसलिए क्योंकि, दुश्मन की सीधी निगाह और तोपों का मुंह होता है आपकी ओर। मौत का खौफ तो है ऐसी चौकियों पर लेकिन दुश्मन की गोलियों या गोलों से नहीं, बल्कि सांस के रुक जाने का, प्रकृति के क्रूर हाथों में पड़ जाने का। तन्हाई और अकेलेपन का।
 
यह तो कुछ भी नहीं, कश्मीर सीमा के पहाड़ों में स्थित ऊंचाई वाले क्षेत्रों की सीमा चौकियों की हालत और भी बुरी है। आप जवान के जीवन की कल्पना तक नहीं कर सकते। बर्फीली हवाएं आपके दिमाग को ठंडा कर देती हैं तो आंखें खुद-ब-खुद पीड़ा से रोने लगती हैं। इन सबके बावजूद अगर इन पहाड़ों और दुश्मन पर कोई फतह पा रहा है तो वह है भारतीय जवान। 
 
सच में ये सैनिक बहादुर हैं जो प्रकृति से लड़ रहे हैं और दुश्मन से भी। उन्हें डर नहीं है, वे बोफोर्स को अपना साथी मानते हैं। अपने से अधिक हथियारों का ख्‍याल और देखभाल करते हैं। सुबह उठकर यही प्रार्थना और दुआ की जाती है कि हथियार कहीं रास्ते में धोखा न दें, क्योंकि दुश्मन चालाक है और बिल्ली की माफिक झपटने की कोशिश में सदा रहता है।
 
ऐसे जवानों के साथ एक रात गुजारी है इस संवाददाता ने। ऑक्सीजन की कमी से जुझे इस संवाददाता को तभी जाकर मालूम पड़ा कि जवान कैसी परिस्थितियों में दुश्मन का मुकाबला कर रहे हैं। बावजूद इसके उनके हौसले बुलंद हैं। उन्हें इसकी परवाह नहीं है कि दुश्मन क्या चाल चल रहा है। वे कहते हैं कि दुश्मन की हर चाल को नाकाम कर देंगे। चाहे प्रकृति हमारा साथ दे या न दे, बस हमारे हथियारों का साथ हमें चाहिए। 
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